प्रधानमंत्री के सम्बोधन के मुख्य बिन्दु
भोपाल 10सितम्बर (इ खबरटुडे)।प्रधानमंत्री ने सम्मेलन के सफल होने की कामना करते हुए अपने शुभकामना संदेश में आशा प्रकट की कि इसमें भाग ले रहे विद्वान हिंदी के माध्यम से भारतीय संस्कृति के मूलमंत्र ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की भावना को आगे बढाएंगे और हिंदी जगत के विस्तार की संभावनाओं को चरम पर पहुंचाने के उपायों पर चर्चा करेंगे.
मुख्य बिन्दु
- हिन्दी सम्मेलन को बताया हिन्दी का महाकुंभ।
- हिन्दी भाषा की समृद्धि में मध्यप्रदेश का उल्लेखनीय योगदान है।
- भाषा के लुप्त होने पर ही उसकी महत्ता का पता चलता है। लुप्त होने से पहले चैतन्य हो जाए।
- हर पीढ़ी का दायित्व है कि भाषाई विरासत को सुरक्षित रखें और आने वाली पीढ़ी को प्रदान करें।
- चाय बेचते-बेचते हिन्दी सीखी।
- भाषा की ताकत का अंदाजा है। हिन्दी के संवर्धन के आंदोलन गैर हिन्दी मातृभाषा वालों ने चलाये, यही बात प्रेरणा देती है।
- जीवन की तरह भाषा में चेतना होती है।
- भाषा जड़ नहीं हो सकती। यह हवा का ऐसा झोंका है, जो अपने साथ सुगंध समेटते चलती है।
- भाषा अपने आप को परिष्कृत और नये शब्दों को समाहित करती है।
- सबका प्रयास होना चाहिए कि हिन्दी भाषा समृद्ध कैसे बनें।
- भारतीय भाषाओं के बीच कार्यशाला हो और वे एक दूसरे को समृद्ध करें।
- भाषाओं को जोड़ें और समृद्ध बनायें।
- भविष्य में हिन्दी का महत्व बढ़ने वाला है। भाषा का एक बड़ा बाजार बनेगा।
- 21वीं सदी के अंत तक 90 प्रतिशत भाषाओं के लुप्त होने की संभावना है।
- भाषा के दरवाजे बंद मत करो।
- भाषा नहीं बचेगी तो अनुभव और ज्ञान का भंडार भी नहीं बचेगा।
- डिजिटल दुनिया की मुख्य भूमिका होगी। भविष्य में अंग्रेजी, चीनी और हिन्दी का दबदबा होगा।
- भाषा को टेक्नालाजी के अनुरूप परिवर्तित करें।
- भाषा सबको जोड़ने वाली वाली होना चाहिये।
- संस्कृत भाषा में ज्ञान का अकूत भण्डार है लेकिन जानकारी के अभाव में हम उसका भरपूर लाभ नहीं ले सके। धीरे-धीरे हम उससे दूर हो गए।