नयी शिक्षा नीति-सा विधा या विमुक्तये,मैकाले संक्रमण से मुक्ति
-पंडित मुस्तफा आरिफ
पिछला सप्ताह नयी शिक्षा नीति के उदय का रहा। माँ सरस्वती के उपासक देश में आजादी के बाद से लार्ड मैकाले की शिक्षा पद्धति को गुलामी का प्रतीक माना जाकर ये कुंठा थी कि कहीं न कहीं हमारी शिक्षा नीति गुलामी के एहसास से संक्रमित है। 2013 मे जब दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर दिनेश सिंह थे, तब मैकाले की शिक्षा पद्धति से छुटकारा मिले और देश में इससे इतर कुछ नया किया जाये, इस दिशा में सफल प्रयोग हुए, नयी शिक्षा नीति उसी की प्रतिछाया या विस्तारित रूप है, ऐसा कहा जाए तो ग़लत नहीं होगा। इसके प्रस्तावों और प्रावधानों का अध्ययन करने पर कहा जा सकता है कि नयी शिक्षा सर्वथा उपयुक्त व स्वागत योग्य हैं। आलोचकों के पास भी इसे नकारने का कोई कारण नहीं है, सिर्फ यहीं कह सकते हैं कि ये राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से प्रभावित है, क्योंकि इसमें संस्कृति और संस्कृत को शामिल करने पर भी ज़ोर दिया गया है। लेकिन अनादिकाल से चली आ रही संस्कृति और संस्कृत हमारी सभ्यता का अंग, इसे स्वीकार करने में ही भलाई है। कुल मिलाकर नयी शिक्षा नीति देर से आई है लेकिन दुरुस्त आई है, इससे देश का भला ही होगा। भले ही इसके आलोचक शिक्षाविद् इसे नयी बोतल में पुरानी शराब कहें और कहे कि सिर्फ पैटर्न बदला है और बाकी सब यथावत हैं। इसमें हिंदी को राष्ट्र भाषा के रूप में स्थापित करने की कोई योजना नहीं दिखाई देती।।।
आलोचना सिर्फ इसलिए कि जाए कि विपक्ष में होने के नाते आलोचना करना जरुरी हैं, ये रचनात्मक दृष्टिकोण और राष्ट्र हित की बात नहीं है, क्योंकि सत्य तो सत्य होता है। इस संबंध में कांग्रेस नेता खुशबू सुन्दर ने एक बहुत ही खूबसूरत बयान देते हुए कहा है कि नई शिक्षा नीति 2020 एक स्वागत योग्य कदम हैं, इस पर मेरा रुख निश्चित रूप से पार्टी के रुख से अलग है। मैं इसके लिये राहुल गांधी से माफी मांगती हूँ “मैं रोबोट या कठपुतली की तरह सिर हिलाने के बजाय सच्चाई बोलती हूँ। अपने नेता की हर बात से सहमत होना जरूरी नहीं है। खुशबू सुन्दर का रचनात्मक स्वरूप शून्य पङे विपक्ष को नयी दिशा देने के लिए प्रयाप्त संकेत है। इससे पहलें 1986 में शिक्षा नीति लागू की गई थी, 1992 इस नीति में कुछ संशोधन किए गए थे, यानि 34 साल बाद देश में नयी शिक्षा नीति लागू की जा रहीं हैं। पूर्व इसरो प्रमुख के. कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में विशेषज्ञों की एक समिति ने इसका मसौदा तैयार किया था, जिसे प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता मे कैबिनेट ने पिछले सप्ताह मंजूरी दे दी। नयी शिक्षा नीति में स्कूली शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक कईं बङे बदलाव किये गये हैं।।।
विद्यमान शिक्षा पद्धति का मोटा मोटा रूप यहीं है कि वो नौकरी पाने के लिए न्यूनतम योग्यता उपलब्ध कराती हैं। इसलिए अधिकांश रिक्तियों मे न्यूनतम योग्यता 10वीं, 12वीं, स्नातक, स्नातकोत्तर मांगी जाती है। उम्मीदवार कौन सी स्ट्रीम से है कोई मायने नहीं रखता, इसलिए तकनीकी और वाणिज्य संबंधी विभागों कला संकाय की योग्यता वाले व्यक्ति बहुतायत में मिलेंगी। विशेषकर बैंकिग में खाता, तलपट, बेलेंस शीट सबको समान रूप से सीखना होता है और सब सीख जाते हैं। वाणिज्य के स्नातकों को किताबी ज्ञान तो होता है, व्यवहारिक ज्ञान नहीं होता। नयी शिक्षा नीति में व्यवहारिक ज्ञान को प्राथमिकता दी गयीं हैं, और 12वीं तक पहुंचते पहुंचते वो वोकेशनल एजुकेशन के माध्यम से अपनी रूचि के व्यवसायिक ज्ञान में पारंगत हो जाएं, उसकी पूरी व्यवस्था की गयी है। इसके लिए हर बच्चा शिक्षित होकर अपने पैरों पर खङे होने योग्य बने इसकी संपूर्ण प्रस्तावना नयी शिक्षा नीति में की गई है। अभी स्कूल से दूर रह रहे दो करोड़ बच्चों को दोबारा मुख्यधारा में लाया जाएगा। इसके लिये स्कूलों के बुनियादी ढांचे का विकास और नवीन शिक्षा केन्द्रों की स्थापना की जाएगी।।।
स्कूल पाठ्यक्रम के 10+2 के ढांचे की जगह 5+3+3+4 की नया पाठ्यक्रम संरचना लागू की जाएगी। इसमें अब तक दूर रहें 3 से 6 साल के बच्चों को स्कूली शिक्षा तक लाने का प्रावधान है, जिसे विश्व स्तर पर बच्चे के मानसिक विकास के लिए मान्यता दी गई है। स्कूली शिक्षा के अंतर्गत 10वीं और 12वीं बोर्ड की शिक्षा यथावत रहैगी, लेकिन पद्धति और स्वरूप में परिवर्तन होगा। उच्च शिक्षा के स्वरूप में भी परिवर्तन किया गया है। 12वीं के बाद अब 4 वर्ष का स्नातक शोध स्तर तक का प्रावधान होगा। प्रथम वर्ष पर सर्टिफिकेट, द्वितीय वर्ष में डिप्लोमा, तृतीय वर्ष में स्नातक व चतुर्थ वर्ष में शौध स्नातक का प्रमाण पत्र मिलेगा। शोध स्नातक का प्रमाण पत्र प्राप्त विद्यार्थी एमफिल के समकक्ष होगा वो पीएचडी के लिये सीधे प्रवेश पा सकेगा। वो स्नातकोत्तर के द्वितीय वर्ष में सीधे प्रवेश पा सकेंगे। नयी शिक्षा नीति में पांचवीं कक्षा तक मातृभाषा, स्थानीय या क्षेत्रीय भाषा में पढाई का माध्यम रखने की बात कही गई है। इसे क्लास आठ या उससे आगे भी बङाया जा सकता है। विदेशी भाषाओं की पढाई सेकेंडरी लेवल से होगी, हालांकि नयी शिक्षा नीति में यह भी कहा गया है कि किसी भी भाषा को थोपा नहीं जाएगा।।।
कुल मिलाकर नयी शिक्षा नीति में देश का विद्यार्थी यहीं पर शिक्षा पाए और विदेश जाने की जरूरत न पङे, इसी मूल आधार को ध्यान में रखते हुए बनाई गयी है। भारत का विद्यार्थी बाहर न जाएं, लेकिन बाहर का विद्यार्थी उच्च शिक्षा के लिए भारत आएं, विश्व के लिए भारत गुरूकुल बने इस बात का पूरा ध्यान रखा गया है। विदेशी विश्वविद्यालयों के उच्च शिक्षा के क्षेत्र में भारत आकर काम करने और अपनी शाखाएं खोलने की योजना को भी नयी शिक्षा नीति में शामिल किया गया है। भाजपा सांसद व शिक्षाविद् प्रोफेसर राकेश सिंहा के अनुसार सोशल साइंस के क्षेत्र में बाहर की संस्थाएं देश में नहीं आएगी, केवल मैनेजमेंट, इंजीनियरिंग और दूसरे विज्ञान के क्षेत्र में आएगी, इससे हमारी मूलभूत अस्मिता पर प्रभाव नहीं पङता है, इसको इस रूप में देखा जाना चाहिए कि हमनें दुनिया से खुद को काटा भी नहीं है और अपने मौलिक सिद्धांतो पर भी क़ायम है। जहां तक संसकृत की बात है वो विश्व के बीस से अधिक विश्वविद्यालयों मे पढाई जाती हैं तो फिर भारत में क्यूँ नहीं? कुल मिलाकर नयी शिक्षा नीति का स्वागत किया जाना चाहिए, क्योंकि इसी से हमें सदियों पुरानी विदेशी मानसिकता से मुक्ति मिलेगी, जिसके लिए हम आज तक एक स्वर में गा रहैं है: वर दे वीणा वादिनी वर दे,प्रिय स्वतंत्र रव, अमृत मंत्र नव भारत में भर दे। हमें नयी शिक्षा नीति को माँ सरस्वती के वरदान के रूप में स्वीकार करना चाहिए।