देश का पहला और अनूठा प्रयास-शौर्य स्मारक
शहीदों और आम नागरिकों के बीच बनायेगा शौर्य का जीवंत रिश्ता
भोपाल ,10 अक्टूबर(इ खबरटुडे)।यह पहला और अनूठा प्रयास है। सीमा पर देश की रक्षा करने वाले अमर शहीदों से सीधा और जीवंत साक्षात्कार करवाने का। आम जनता जो शहीदों के प्रति नत-मस्तक तो है, लेकिन उसका कहीं सीधा रिश्ता नहीं जुड़ता उसकी शहादत से। आखिर सीमा पर रक्षा करने में चुनौतियाँ क्या हैं, उसके संघर्ष की गाथा कैसे गढ़ी जाती है, जिस पर हम सभी को, पूरे देश को गर्व होता है।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इन्हीं कल्पनाओं को साकार रूप दिया है शौर्य स्मारक में। श्री चौहान के अनुसार सिर उठाकर गर्व से जीने का अधिकार उन्हीं को होता है, जिनके सिर देश की आन-बान के प्रहरियों और शहीदों के सम्मान में श्रद्धा से झुकना जानते हैं। यह मध्यप्रदेश का देश की जनता को एक ऐसा उपहार है, जो हमेशा नागरिकों को शहीदों की शहादत की याद दिलवायेगा और राष्ट्र भक्ति और राष्ट्र के लिये हर तरह के त्याग के प्रति हमारे नागरिकों को प्रतिबद्ध बनायेगा।
शौर्य स्मारक भोपाल
राष्ट्र की सुरक्षा में जीवन बलिदान करने वाले शहीदों की पावन स्मृति को अक्षुण्ण रखने के लिये मध्यप्रदेश में शौर्य स्मारक का निर्माण किया गया है। शौर्य स्मारक की परिकल्पना एक पवित्र स्थान को संबोधित करती है, जिसकी विवेचना परम्परागत एलोरा, खजुराहो तथा मोधेरा जैसे भारतीय मंदिरों से की गयी है। इस स्मारक में मंदिर-अक्ष की पवित्रता को अंतिम स्थान (मृत्यु पर विजय) में जीवन बलिदान करने वाले शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित कर दर्शाया गया है। शौर्य स्मारक रूप-रंग और सामग्री का सम्मिश्रण ही नहीं, वरन् एक जीवंत अनुभूति प्रदान करेगा। वास्तुविदीय परिकल्पना के अनुसार यहाँ आने वाला प्रत्येक दर्शक अपने निजी अनुभव, संसार और कल्पना के आधार पर शौर्य स्मारक के साथ तादात्मय स्थापित करे तथा ऐसा परिवेश निर्मित हो, जहाँ आगंतुकों के मन में सहज ही शहीदों के प्रति श्रद्धा-भाव जागृत हो, ऐसा प्रयास किया गया है।
वास्तु-कला की दृष्टि से यह स्मारक भवन नहीं, वरन् अ-भवन है। वास्तु-कला की स्थापित परम्परा के विपरीत शौर्य स्मारक का विन्यास, निर्माण-स्थल के भौगोलिक स्वरूप में एकाकार हो जाता है। अरेरा पहाड़ी की भौगोलिक विशेषताओं, उतार-चढ़ाव, चट्टानों के बीच जीवन का उत्सव मनाते वृक्षों को प्रतीकों के रूप में शौर्य स्मारक के रूपांकन में बखूबी प्रयोग किया गया है। चूँकि यह स्मारक ऐसे शहर में स्थित है, जो प्राकृतिक सुंदरता से सराबोर है। इस स्मारक का भू-दृश्यीकरण भोपाल शहर के प्राकृतिक सौंदर्य में और निखार लाया है।
देश के लिये अपने प्राणों का बलिदान देने वालों पर समर्पित यह स्मारक भोपाल नगर के लौह-शिल्प आधारित चिनार पार्क के समीप 12.67 एकड़ (लगभग 51 हजार 250 वर्ग मीटर) भूमि पर बनाया गया है। शौर्य स्मारक का निर्मित क्षेत्रफल लगभग 8,000 वर्ग मीटर है। लागत लगभग 41 करोड़ है।
मेमोरियल
शौर्य स्मारक शहीद की राष्ट्र-सेवा से प्रेरित जीवन-यात्रा का रूपायन है। वास्तुविद ने शौर्य स्मारक को जीवन की विभिन्न अवस्थाओं यथा- जीवन, युद्ध का रंग-मंच, मृत्यु तथा मृत्यु पर विजय, चार प्रांगण की श्रंखला के रूप में, वास्तु कला की स्थापित परम्परा के विपरीत दर्शाया है। इसके रूपांकन में जीवन-मृत्यु, युद्ध-शांति तथा मोक्ष-उत्सर्ग जैसे जटिल अव्यक्त अनुभवों को सरल, सहज तरीके से रूपांकित करने के लिये आकार, रंग-रूप, सामग्री और तकनीक का रोचक ताना-बाना बुना गया है। मेमोरियल की अर्ध भूमिगत संरचना जो पृथ्वी पर दृष्टिगोचर होने से ज्यादा धरती-मग्न है, का पूर्ण उद्देश्य आत्मा से ध्यानपरायण करते हुए केवल आगंतुकों के अंतर्मन को प्रभावित करना है। यह आगंतुकों एवं शहीदों के मध्य संभवत: एक मूक संवाद प्रारंभ करेगा। दर्शक का यह भावनात्मक जुड़ाव एक व्यक्ति की विचार-प्रक्रिया को अग्रता प्रदान करेगा।
जीवन
स्मारक में प्रवेश करते ही पृथ्वी पर जीवन को एक चौकार अथवा सार्वजनिक वर्ग के रूप में दर्शाया गया है। जीवन के उतार-चढ़ाव की तुलना एक एम्फीथियेटर की सीढ़ियों से की गयी हैं, जो पृथ्वी की संगीन एवं शांत रचना को मिट्टी से बनी ईंट, घास तथा जल के रूप में परिभाषित करते हैं।
युद्ध का रंग-मंच
वृत्त का आकार देकर इस वृत्ताकार आँगन को युद्ध की विभीषिका से आहत धरती को दर्शाया गया है। युद्ध की निष्ठुरता से हुए विनाश एवं हानि के कारण मानवता कैसे व्यथित हो उठती है, इसे बखूबी असमतल धरती तथा तराशे हुए स्थानीय पत्थरों से वर्णित किया गया है। इससे दुख और अवसाद की अनुभूति होगी।
मृत्यु
मृत्यु की भयावहता एवं खोई आशाओं को दर्शाने के लिये एक छोटा वर्गाकार क्षेत्र पूरी तौर पर अंधकारमय एवं काला निर्मित किया गया है। इस क्षेत्र में प्रवेश करते ही मृत्यु से उत्पन्न अचानक अंधकार को अनुभव करने का अवसर प्राप्त होगा, केवल एक दीपक की लौ से प्रकाश विद्यमान होगा, जिसके कारण इस क्षेत्र के अंधकार तथा माप से मृत्यु पर विजय की आशा का आभास हो सकता है।
मृत्यु पर विजय
लोगों का विश्वास है कि मृत्यु में शरीर नश्वर है तथापि आत्मा अजर-अमर है। इस अंतिम अनुभूति के क्षेत्र में चूंकि आत्मा अनश्वर है, वास्तुविद ने सादृश्य का उपयोग करते हुए जीवन के इस अलौकिक और शाश्वत सत्य की अनुभूति को जीवंत बनाने के लिये स्मारक परिसर प्रांगण में 2 से 3 मीटर ऊँची धातु की छड़ों को सेना की टुकड़ियों की तरह सुव्यवस्थित रूप से स्थापित किया है। इन छड़ों के ऊपरी सिरों पर फाइबर ऑप्टिक्स लाइट्स के प्रकाश-पुंज रात के अंधेरे में जगमगायेंगे। धातु की छड़ों के तल पर बिछी जल की चादर, शांति तथा पवित्रता का प्रतीक होगी।
स्तम्भ
पृथ्वी से उभरता हुआ 62 फीट ऊँचा स्तम्भ, एक सैनिक के जीवन को दर्शाता है, जिसे उसने स्वयं अपनी स्वेच्छा से स्वीकारा है। यह स्तम्भ अंदरूनी शक्ति एवं साहस की बुनियाद पर निर्मित है, जिससे अपने देश के संरक्षक, देशभक्ति की भावना से प्रेरित होंगे। जीवन के विभिन्न पड़ावों पर सिपाहियों द्वारा किये गये त्याग और अंत में अपने जीवन का बलिदान, उनका देश के प्रति प्रेम, स्वामित्व तथा आत्मपूर्ति का द्योतक है, जो देश की रक्षा कर रहे उनके इस विशाल परिवार की समृद्धि से उन्हें प्राप्त हुआ है। अत: उन्हें सर्वशक्तिमान के प्रहरियों के रूप में उच्च शक्ति से उन्नत करता है। स्तम्भ की प्रत्येक ग्रेनाइट डिस्क इस आरोहण का वर्णन करती है। पृथ्वी (आर्मी), जल (नौसेना) तथा वायु (वायुसेना) के काले ग्रेनाइट स्तम्भ की संगीनता, जल-स्रोत एवं श्वेत ग्रेनाइट पेडेस्टल के हल्केपन के रूप में दर्शाया गया है।
स्तम्भ के आसपास के वातावरण से हमें जीवन के चरम लक्ष्य को प्राप्त शूरवीरों के बलिदान का अहसास होगा। आगंतुकों के मन में सहज ही उनके प्रति नमन का भाव जागृत होगा।
अनंत ज्योत
वास्तुविद द्वारा परम्परागत अनन्य ज्योत, जो एक शहीद के सम्मान में प्रज्जवलित की जाती है, को एक अत्याधुनिक होलोग्राफिक लौ के माध्यम से दर्शाया गया है।
ग्लास प्लाक्स
व्यक्तिगत शहीदों के नामों को उनके अनन्त स्मरण एवं श्रद्धांजलि के लिये एल्यूमीनियम की चादर पर उत्कीर्ण कर, ग्लास प्लाक्स पर लगाया गया है। ये प्लाक्स स्तम्भ के समीप लगाये गये हैं, ताकि स्तम्भ पर श्रद्धांजलि अर्पित करने आये आगंतुकों को निकट से प्रत्यक्ष हो सकें।
लाल स्कल्पचर
स्कल्पचर के अमूर्त रूप को साशय निर्वचनात्मक रखा गया है। मुख्य धुरी (एक्सिस) से वह एक ‘वंदना”, एक ‘नमस्कार” के रूप में तथा दूसरे दृष्टिकोण से एक ‘रक्त की बूंद” के रूप में दिखायी देता है। अत: इसे लाल रंग से दर्शाया गया है।
व्याख्या केन्द्र
व्याख्या केन्द्र को एक अर्ध-खुले सामूहिक स्थान के रूप में विकसित किया गया है। इसमें आगंतुकों को भौतिक अनुभूति के पूर्व, स्मारक का पूर्वावलोकन करवाया जायेगा। प्रदर्शन-प्रणाली (डिस्प्ले-सिस्टम) के माध्यम से शौर्य स्मारक का सारांश लघु चलचित्रों द्वारा निरंतर दिखाया जायेगा। साथ ही हिन्दी और अंग्रेजी, दोनों भाषाओं में उप-शीर्षक लिखे होंगे, जिससे स्मारक देखने आये भारतीय एवं विदेशी दर्शकों को मूल डिजाइन समझने में सुविधा होगी। इस केन्द्र में वास्तुविद द्वारा आकल्पित जीवन की विभिन्न अवस्थाओं यथा- जीवन, युद्ध का रंग-मंच, मृत्यु तथा मृत्यु पर विजय को किस प्रकार 4 प्रांगण की श्रंखला के रूप में डिजाइन किया गया है, समझाया जाता रहेगा।
संग्रहालय
जीवन प्रांगण में प्रवेश करने के पहले आधार-तल में संग्रहालय विकसित किया गया है। इसकी परिकल्पना स्मारक के साथ एकीकृत रूप में की गयी है। यह संग्रहालय हमारी भारतीय सेना-आर्मी, नौसेना तथा वायुसेना के शहीदों की देशभक्ति और शौर्य को विषयगत-तस्वीरों के रूप में शो-केस करता है, जो महाभारत काल से प्रारंभ होकर आजादी के संघर्ष को दर्शाते हैं तथा अपने देश के सांस्कृतिक इतिहास को भी प्रस्तुत करते हैं। इस संग्रहालय में परमवीर चक्र, महावीर चक्र जैसे शौर्य पुरस्कार विजेताओं को भी गर्वशील तस्वीरों से दर्शाया गया है। भारतीय सेना के तीनों सशस्त्र बलों के विभिन्न डायोरमाज तथा हवाई जहाज, टैंक्स, तथा पानी के जहाजों के लघु मॉडल्स, आगंतुकों के आकर्षण का केन्द्र-बिन्दु रहेंगे।पूर्ण रूप से यह संग्रहालय भारतीय सेना के शौर्य का एक कल्पनाशील एवं रंगीन प्रदर्शन केन्द्र होगा, जिसमें शहीदों को विनम्र परन्तु गरिमामय रूप में श्रद्धांजलि अर्पित कर प्रस्तुत किया गया है।
सियाचिन
संग्रहालय में ही एक स्थान पर सियाचिन की रचना भी की गयी है। इसमें उस स्थिति का अहसास करवाया गया है, जहाँ हमारे सैनिक माइनस टेंप्रेचर में भारतीय सीमा की रक्षा करने में कोई कोताही नहीं करते। निश्चित ही देखने वालों के लिये यह दृश्य रोमांचक तो होगा ही, साथ ही सैनिकों के प्रति उनके मन में अधिक सम्मान का भाव पैदा करेगा।
स्मारक परिसर में समय-समय पर शहीदों से संबंधित अनुष्ठानिक समारोह करने के लिये आवश्यक स्थान, संसाधन केन्द्र, खुला रंगमंच (एमफी थियेटर) तथा कैफेटेरिया जैसी अन्य मूलभूत सुविधाएँ भी उपलब्ध हैं।
पर्यावरण विभाग की संस्था एप्को को स्मारक के वास्तुविदीय रूपांकन का दायित्व सौंपा गया था। एप्को द्वारा राष्ट्रीय प्रतियोगिता के माध्यम से मुम्बई की वास्तुविदीय फर्म, यू.सी.जे. आर्किटेक्चर एण्ड एन्वायरमेंट का चयन किया गया। स्मारक परियोजना क्रियान्वयन राजधानी परियोजना प्रशासन द्वारा किया गया है। स्मारक का भूमि-पूजन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 23 फरवरी, 2010 को तत्कालीन थल सेना अध्यक्ष जनरल दीपक कपूर की उपस्थिति में किया था। स्मारक का लोकार्पण 14 अक्टूबर, 2016 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी करेंगे।