November 7, 2024

डॉक्टर का भाजपा में आना,किसको नफा किसको नुकसान ?

निगम चुनाव काउण्ट डाउन-09 दिन शेष

लम्बे समय तक कांग्रेस की राजनीति पर छाये रहे डॉ.राजेश शर्मा अब भाजपा में आ चुके है। उनके भाजपा में आने से किसे कितना नफा और नुकसान हुआ है। सारी चर्चा अब इसी बात को लेकर हो रही है। जो लोग राजनीति को गहराई से नहीं जानते,उनके लिए डॉ.शर्मा का कांग्रेस छोडना,कांग्रेस के नुकसान और भाजपा के फायदे के समान हो सकता है। लेकिन जो राजनीति की बारीकियां जानते हैं उन्हे पता है कि गणित इतना भी सीधा नहीं है। कांग्रेस के तो अधिकांश लोग इस बात से बहद खुश है कि उनकी बीमारी अब भाजपा के मत्थे मंढ दी गई है।
कुछ सालों पहले भी डॉक्टर ने भाजपा में घुसने की कोशिश की थी,लेकिन उस समय भाजपा के नेताओं ने डॉक्टर को रोकने के लिए पूरी ताकत लगा दी थी। आखिरकार डॉक्टर कांग्रेस में ही रह गए थे। डॉक्टर ने अपनी व्यावसायिक योग्यताओं का पूरा उपयोग करते हुए सांसद और मुख्यमंत्री के सर्वाधिक नजदीकी व्यक्ति होने का तमगा भी हासिल कर लिया था और कांग्रेस का अध्यक्ष पद भी हथिया लिया था। डॉक्टर को विधायक का टिकट मिलना तय ही थी,लेकिन आखरी समय में उसके सितारे रुठ गए। सितारे रुठे तो  ऐसे रूठे कि महापौर चुनाव आते आते भी ठीक नहीं हुए। आखिरकार डॉक्टर,अपने प्रिय आकाओं को छोडकर भाजपा के नए आकाओं की शरण में आ गए। नफे नुकसान का आकलन करने वालो का कहना है कि यह सौदा डॉक्टर के लिए तो फायदेमन्द रहा है। क्योकि सत्तारुढ पार्टी में शामिल होने से तमाम गडबडियों को ढंके रखने का लायसेन्स मिल जाता है। नफा सिर्फ डॉक्टर का ही है,इसके अलावा तो सभी नुकसान में है। यदि पार्टी की बात करें तो केडर बेस पार्टी में ऐसे लोग आ गए है जो चापलूसी में भी डाक्टरेट हासिल किए हुए है। ऐसे लोगों के आने से निष्ठावान और कर्मठ कार्यकर्ताओं  का नुकसान होगा। मजेदार बात इससे थोडी अलग है। डॉक्टर को पार्टी में लाने वाले भैय्याजी राजनीति की बडी भूल कर बैठे। अपने फोटों खिंचवाने और छपवाने का जितना शौक भैय्याजी को है,उससे ज्यादा शौक डॉक्टर को है। डॉक्टर के पास फोटो छपवाने की साधन सुविधाएं भी भैयाजी के बराबर ही है। ऐसे में यह तय है कि आने वाले दिनों में डॉक्टर के कारण भैयाजी के फोटो सेशन कम हो जाएगें और यह स्थिति उनके लिए बेहद दुखदायी होगी। वोटों का हिसाब देखें तो भाजपा को दो वोट का फायदा होने का भी अनुमान है।

बागियों का डर

बागी उम्मीदवारों के मामले में पंजा छाप से ज्यादा डर फूल वालों को सता रहा है। अब लोग कह रहे हैं कि यदि भैय्याजी ने टिकट बांटने में थोडी समझदारी दिखाई होती तो बागी इतने ज्यादा नहीं होते। फूल छाप संगठन के सबसे बडे मंत्री मंगलवार को शहर की बैठक में मौजूद थे। उनकी बातों से भी यह डर झलक रहा था। वे बोले कि आखिरकार ये बागी हमारे अपने ही है। इन्हे एक बार और समझाओ। फूल वालों की समस्या यह है कि वे बागियों को समझाएं तो कैसे? भैय्याजी की सदारत में पार्टी ने कई ऐसे लोगों को टिकट दिए है,जो कल तक बागी थे। इस बार के बागियों को इसी बात का सन्तोष है। वे जानते है कि जब पिछली बार के बागियों को इस बार टिकट मिल चुका है,तो इस बार के बागियों को अगली बार टिकट मिल सकता है। बागी यह भी जानते है कि यदि वे बागी होकर जीत दर्ज करवा लेंगे तो पार्टी घुटने टेक कर उनके द्वार आ जाएगी। और अगर वे हार गए तो अगली बार का अवसर तो है ही। ऐसे में उन्हे समझाने की तमाम कोशिशें बेअसर हो रही है। नतीजा यह है कि सीटों के आकलन में बागियों को बडी संख्या मिलने के अनुमान लगाए जा रहे है। वरिष्ठ नेता खुद कह रहे है कि यह चुनाव व्यक्तिगत सम्पर्कों का है। ऐसी स्थिति में जिस बागी के सम्पर्क अच्छे है,वे जीत का सपना संजो सकते है।

You may have missed

Here can be your custom HTML or Shortcode

This will close in 20 seconds

Patel Motors

Demo Description


Here can be your custom HTML or Shortcode

This will close in 20 seconds