जिला शिक्षा केन्द्र बना भ्रष्टाचार का गढ़
नियुक्तियों से लेकर निर्माण कार्यों तक सिर्फ अनियमितताएं
रतलाम,14 सितम्बर(इ खबरटुडे)। शिक्षा का प्रकाश दूर दराज के गांवों तक और प्रत्येक बच्चे तक पंहुचाने के लिए शिक्षा विभाग से अलग जिला शिक्षा केन्द्र प्रारंभ किए गए है। प्रतिवर्ष करोडों रुपए की राशि शिक्षा मिशन पर व्यय की जा रही है ताकि शिक्षा देने का मिशन पूरा हो सके ,लेकिन शिक्षा मिशन कमीशन कमाने का माध्यम बनकर रह गए है। रतलाम का जिला शिक्षा केन्द्र तो और भी दो कदम आगे है। यहां जनशिक्षकों के चयन जैसे कामों में भी भारी वसूली की जा रही है। जिला शिक्षा केन्द्र में हर स्तर पर सिर्फ गडबडियां है और उपलब्धि के नाम पर कुछ नहीं। इतना सबकुछ होने के बावजूद मिशन लीडर अर्थात कलेक्टर और राज्य शिक्षा केन्द्र इस सबसे आंखे मून्दे बैठे है।
चयन का गोरखधन्धा
राजीव गांधी शिक्षा मिशन शुरु होने के बाद से ही शिक्षकों के लिए जनशिक्षक बनना भारी फायदे का सौदा साबित होता रहा है। जनशिक्षक बनाए गए शिक्षकों को शिक्षा देने की बजाय प्रशासनिक अधिकार मिल जाते है। उन्हे संकुल की शालाओं का निरीक्षण,छात्रावासों और शिक्षकों के कार्यों पर नियंत्रण इत्यादि के अधिकार मिल जाते है। इन्ही कामों में मोटी उपरी कमाई भी होती है। नतीजा यह है कि शिक्षकों में जनशिक्षक बनने की होड लगी रहती है। राज्य शिक्षा केन्द्र ने हाल के दिनों में जनशिक्षकों के चयन के लिए कडे नियम बना दिए है। जिले में गत वर्ष १०८ जनशिक्षकों के चयन के लिए चयन प्रक्रिया की गई थी। कडे मापदण्डों और मनचाहा स्थान नहीं मिलने जैसे कारणों से उस समय केवल ६०-६५ पद भरे जा सके थे। जनशिक्षकों के रिक्त पद अब शिक्षा केन्द्र के अधिकारियों की कमाई का साधन बन गए है।
जिला शिक्षा केन्द्र से जुडे सूत्रों के मुताबिक जनशिक्षकों के रिक्त पदों को चयन प्रक्रिया से भरने की बजाय इन पदों पर प्रभारी जनशिक्षकों को रखा जा रहा है। अध्यापक संवर्ग के कर्मचारियों को प्रभारी जनशिक्षक के रुप में नियुक्त किया जा रहा है। सूत्रों के मुताबिक प्रभारी जनशिक्षक बनने की एकमात्र योग्यता भुगतान करने की क्षमता है। बताया जाता है कि प्रभारी जनशिक्षक के रुप में नियुक्ति के लिए अध्यापकों से बीस हजार रु.तक वसूले जा रहे है। कमाई का बंटवारा उपर तक हो रहा है।
गडबडी सिर्फ इतनी ही नहीं है। अध्यापक के प्रभारी जनशिक्षक बनने के बाद शाला में जो स्थान रिक्त हो जाता है,उसे अतिथी शिक्षक बुलाकर भरा जा रहा है। प्रभारी जनशिक्षक बन चुके अध्यापकों के कई पद अब भी रिक्त पडे है।
मजेदार बात यह है कि राज्य शिक्षा केन्द्र ने अटैचमेन्ट पर पूरी तरह से रोक लगा रखी है,लेकिन जिले में राज्य शिक्षा केन्द्र के निर्देशों को ताक पर रखा जाना सामान्य बात है।
डीपीसी भी नहीं
राज्य शिक्षा केन्द्र ने जिला समन्वयक का पद रिक्त होने की दशा में जिला शिक्षा अधिकारी को इसका प्रभार दिए जाने के स्पष्ट निर्देश दिए है। लेकिन रतलाम में इस निर्देश को भी नहीं माना जा रहा। डिप्टी कलेक्टर निशा डामोर को जिला शिक्षा केन्द्र के समन्वयक का प्रभार दिया गया है। पहले यह माना जाता था कि प्रशासनिक अधिकारी को किसी विभाग का प्रभार दिए जाने से व्यवस्थाएं चुस्त दुरुस्त हो जाती है,लेकिन जिला शिक्षा केन्द्र में इसके ठीक विपरित हो रहा है। यहां प्रशासनिक अधिकारी के हाथों में कमान होने के बावजूद हर स्तर पर गड़बडियां है।
निर्माण कार्य भी अधूरे
शिक्षा मिशन में निर्माण कार्यों के लिए प्रतिवर्ष करोडों रुपए का बजट स्वीकृत किया जाता है। निर्माण कार्यों की गुणवत्ता और हालत बेहद खराब है। यहां तक कि जिला मुख्यालय रतलाम में ही नगर निगम सीमा के भीतर दर्जनों निर्माण कार्य लम्बे समय से अधूरे पडे है। शहर के जावरा रोड,हाट की चौकी समेत कई ईलाकों में अधूरे पडे निर्माण कार्यों को देखा जा सकता है। निर्माण कार्यों में भी कमीशन का लम्बा सिलसिला है।
जानकार सूत्रों के मुताबिक प्रशासनिक अधिकारी के हाथों में कमान होने के बावजूद हर स्तर पर गडबडी और अनियमितताएं होने का सीधा सा अर्थ यह है कि सब कुछ अधिकारियों की जानकारी और सहमति से हो रहा है। शिक्षा मिशन का कमीशन उपर तक बराबर बंट रहा है।