जाने कहां गए वो दिन
रंगपंचमी पर विशेष
– डॉ.डीएन पचौरी
बीसवीं सदी का उत्तराध्र्द है। सन 1980 से पहले का जमाना,जब टेलीविजन और खास तौर से रंगीन टेलीविजन का प्रवेश नहीं हो पाया था। होली के एक हफ्ते पहले अष्टमी से ही होली के डांडिये गाड दिए जाते थे और होली के दिन सुबह से बच्चे,नौजवान झण्डियों व झालरों से एकत्रित लकडी अर्थात होली का श्रृंगार प्रारंभ कर देते थे। लाउड स्पीकर पर गाने और नृत्य दिन भर चलते थे। होलिका दहन का मुहूर्त का कोई ध्यान न रखते हुए रात के बारह बजे बाद जब नाचते गाते थक जाते थे,तो होली जलाई जाती थी। चारों ओर गुल गपाडा और धूम मची रहती थी। रात के अंतिम पहर में चार बजे के लगभग शहर में शांति स्थापित हो पाती थी। लेकिन सुबह करीब नौ बजे से पुन:रंग खेलना शुरु हो जाता था।बच्चों,जवानों और वृध्दों की टोलियां की टोलियां गली मोहल्लों में चक्कर लगाती हुई दिखाई देती थी। कोई परिचित हो या अपरिचित,उसे बिना रंगे नहीं छोडा जाता था। कुछ उत्साही लाल गालियां भी बकते थे,जिसका कोई बुरा नहीं मानता था। शाम चार बजे माहौल ठण्डा होता था,अन्यथा दिनभर चारों ओर शोर सुनाई देता था। ये उस समय की होली हुआ करती थी।
सन 2014 की होली। शहर में चारों ओर शान्ति है। न अब लाउड स्पीकर बजते है और न नृत्य,गीत संगीत का माहौल दिखाई देता है। अब केवल रस्म अदायगी भर है कि परम्परा है तो निर्वाह करना ही है। स्कूल कालेजों में परीक्षाएं चल रही है अत: बच्चे व्यस्त है। जबकि पहले शायद होली का ध्यान रखा जाता था और परीक्षाएं अप्रैल में ही प्रारंभ होती थी। जो बच्चे परीक्षाओं में व्यस्त नहीं है,वे कम्प्यूटर,लैपटाप और टीवी देखने में व्यस्त है। उन्हे होली से कुछ लेना देना नहीं है। गीत संगीत का आनन्द टीवी पर उठाया जा रहा है। चारों ओर शान्ति है। कुछ कालोनियों में तो ये भी पता नहीं चलता कि कब होली आई और कब चली गई। आप साफ कपडे पहन कर घूम कर आ जाईए,मजाल है जो आप के कपडों पर रंग का कोई छींटा लग जाए। एक वो भी होली थी और एक आज के जमाने की होली है। कौन सी अच्छी है। आईए,विश्लेषण करें।
मानव जीवन में काम क्रोध,मद लोभ मोह,राम द्वेष,ईष्र्या,चिन्ता आदि अनेकों मन के विकार सतत उत्पन्न और नष्ट होते रहते है। इन विचारों में प्रमुख क्रोध और चिन्ता रक्तचाप या ब्लडप्रैशर को बढाते है और तनाव उत्पन्न होता है। अति तनाव की स्थिति हार्ट अटैक का कारण बनती है। हार्ट अटैक पुरुषों को अधिक आते है,क्योकि पुरुष आत्मकेन्द्रित होते है और अपनी चिन्ता दुख आदि को व्यक्त नहीं करते। जबकि महिलाएं अधिक सामाजिक होती है। अपना दुख दूसरों को बता कर या फिर आंसू बहाकर कम कर लेती है। इन सब दुखों का निवारण करने के लिए ही उत्सवों का आयोजन किया जाता है। विशेषकर होली तनाव कम करने का सबसे अच्छा साधन है। हमारा शरीर हारमोन से संचालित होता है,जिनका संतुलन स्वास्थ्य और सुखी जीवन के लिए अतिआवश्यक है। जैसे जब हम चिन्ता या क्रोध करते है,तो एड्रीनलीं व डोपेमाइन हारमोन श्रवित होने लगता है। जिससे आंखे लाल हो जाती है,ब्लडप्रैशर बढ जाता है और शरीर एकदम गर्म हो जाता है। इसके विपरित जब हम किसी गीत संगीत की लयताल पर प्रसन्न होते है तो रक्त में सिरेटोनिन,मैलाटोनिन व कार्टिसोल जैसे हारमोन मिल जाते है। ये मूड ठीक करते है और रक्तचाप घटाते है। इनसे अवसाद या दुख कम होता है। आज के गतिशील जीवन में जहां गलाकाट प्रतियोगिताएं हर क्षेत्र में चल रही है इन ब्लडप्रैशर घटाने वाले और आनन्ददायी हारमोन का शरीर में उत्पन्न होना अनिवार्य होता जा रहा है। अत:गाना ,गुनगुनाना,नृत्य करना हास परिहास आदि के लिए होली जैसे त्यौहार से अच्छा और क्या हो सकता है? परन्तु आजकल जैसी केवल औपचारिकता का निर्वाह करने वाली होली नहीं,बल्कि पुराने जमाने की कपडाफाड होली,जिनमें बडे छोटे का अंतर मिट जाता था,जरुरी है। बिहार के मुख्यमंत्री रहे लालू की होली तो जगप्रसिध्द थी जिसमें उनके बंगले पर होली में सब एक दूसरेके कपडे फाड देते थे और लालू जी के कपडे यहां तक कि बनियान तक उनका ड्राइवर फाड देता था। ये सत्य है। सोचिए ऐसी होली में जब छोटे से छोटा पद वाला व्यक्ति,बडे से बडे पद वाले व्यक्ति के साथ समानता का व्यवहार करता होगा,तो मन की कुण्ठाऔर मन के मैल को स्थान कहां? अवसाद या डिप्रैशन अपनेआप कम रहता था। और उन दिनों आत्महत्या के प्रकरण भी कम हुआ करते थे।
आज बच्चे जिस प्रकार आत्महत्या के लिए प्रेरित हो रहे है,वैसा पहले नहीं था। नब्बे प्रतिशत अंक लाने की प्रतियोगिता ने दीवाली की मिठास और होली के रंग,सब फीके कर दिए है।
मान लिया जाए कि होली सिर्फ हिन्दुओं का ही त्यौहार है,जो भारत,नेपाल,मारिशस,सूरिनाम आदि में मनाया जाता है। तो यह भी सही है कि इसी से मिलते जुलते उत्सव सभी यूरोपिय देशों में मनाए जाते है। जो मन की कुण्ठाएं,अवसाद,डिप्रैशन आदि कम करके जीवन में उत्साह और उमंग का रंग भरते है। उदाहरण- स्पेन में अगस्त माह में एक दूसरे पर टमाटर फेंक उत्सव मनाया जाता है। दक्षिण कोरिया में कींचड फेंक होली जैसा त्यौहार मनाते है। आस्ट्रेलिया के क्वीन्स लेण्ड में फरवरी माह में एक दीसरे पर तरबूजे का गूदा फेंक कर,और एक दूसरे पर थूक के ,होली से ज्यादा धमाल मस्ती का उत्सव मनाते है। यहां मुक्के से अधिक से अधिक तरबूज तोडने की प्रतियोगिता भी होती है। थाइलैण्ड में अप्रैल माह में और सेनफ्रान्सिस्को में मई के माह में एक दूसरे पर पानी फेंकने का होली जैसा ही त्यौहार मनाया जाता है। लास एंजिल्स में रंगों के साथ गीत नृत्य और विचित्र वेशभूषा या फेन्सीड्रेस का आयोजन किया जाता है। इटली में एक दूसरे पर नारंगियां फेंक कर मारने का रिवाज है।
इन सब उत्सवों का उद्देश्य एक ही है,कि कटुता भुलाकर एक दूसरे के साथ हिलमिल कर जीवन में नई ऊ र्जा का संचार करना है। जीवन में अवसाद या तनाव घटाना है। निष्कर्ष यह है कि होली जैसे त्यौहार में गीत संगीत,नृत्य की कला,आमोद प्रमोद और जीवन की रचनात्मकता शामिल है। यह हमारे जीवन के क्षितिज का विस्तार करते है और जीवन की अनन्त संभावनाओं को व्यापकता प्रदान करते है। ये उत्सव हमारी भावनाओं और अवधारणाओं के लिए महत्वपूर्ण है। आईए और नवऊ र्जा,नव स्फूर्ति और नवचेतना के साथ होली नहीं तो कम से कम खुले मन से रंगपंचमी तो मनाईए।