चुनावी चकल्लस-9/दिग्गी राजा की बातों का अलग अलग मतलब निकाल रहे है लोग, सुलझने लगी नवाबी शहर की उलझन
-तुषार कोठारी
रतलाम,२२ नवंबर। उन्हे पंजा पार्टी का चाणक्य कहा जाता था। दस साल तक उन्होने पूरे प्रदेश को अपनी उंगलियों पर नचाया था। इसके बाद उन्होने खुद ही घोषणा कर दी थी कि वे कोई पद नहीं लेंगे। लेकिन उनका महत्व कम नहीं हुआ। बढता ही रहा, सत्ता से लम्बे समय तक दूरी रखने के बावजूद भी अगर वे पंजा पार्टी के केन्द्र में ही बने रहे तो उनकी विशीष्ट योग्यताओं के कारण ही बने रहे। अब जब इतनी खूबियों वाले दिग्गी राजा कुछ भी बोलते है,तो सुनने वाले उन शब्दों के पीछे के अर्थ ढूंढने लगते है। दिग्गी राजा की खासियत है कि जो वे कहते है,उससे ज्यादा महत्वपूर्ण वह होता है,जो वे नहीं कहते। रतलाम आए दिग्गी राजा ने फिर से ऐसा कुछ कहा कि जो नहीं कहा,वो महत्वपूर्ण हो गया। खबरचियों को दिग्गी राजा ने जिले की सारी सीटों का हाल बताया। उन्होने साफ साफ कहा कि पंजा पार्टी को तीन सीटों पर संघर्ष करना पड रहा है। जो नही कहा वह यह कि जावरा में पंजा पार्टी के प्रत्याशी को पंजा पार्टी के बागी निर्दलीय प्रत्याशी के कारण समस्या आ रही है। हिसाब लगाने वालों ने फौरन हिसाब लगाना शुरु किया कि जावरा का टिकट श्रीमंत के कोटे का है और दिग्गी राजा के कोटे वाले सारे नेता बागी प्रत्याशी के साथ है। पंजा पार्टी ने इन्हे बाहर का रास्ता भी दिखा दिया है। इसलिए दिग्गी राजा ने बिना कुछ बोले अपने समर्थकों को इशारा कर दिया है कि उन्हे क्या करना है। जावरा ही नहीं दिग्गी राजा ने आलोट सीट के बारे में जो नहीं कहा,लोग उसी को समझने की कोशिश कर रहे है। दिग्गी राजा ने कहा कि आलोट में नया प्रत्याशी ढूंढना पडा,इसलिए कांग्रेस को संघर्ष करना पड रहा है। दिग्गी राजा ने फूल छाप के भैयाजी के बारे में भी बोला। उन्होने कहा कि भैयाजी पहले तो हमारे ही थे। फिर उन्होने यह भी जोड दिया कि वो अभी भी हमारे ही है। अब लोग इस बात का भी अलग अलग मतलब निकाल रहे है।
सुलझने लगी नवाबी शहर की उलझन
जिले की पांच में से केवल एक नवाबी शहर जावरा के चुनावी माहौल में सबसे ज्यादा धुंध छाई हुई थी। जावरा की उलझनों में कोई समझ ही नहीं पा रहा था कि चुनावी उंट किस करवट बैठेगा। लेकिन जैसे जैसे दिन गुजरने लगे धुंध छंटने लगी है। चार नामचीन उम्मीदवारों की मौजूदगी के बाद अब धीरे धीरे यह साफ होने लगा है कि कौन आगे है और कौन पीछे। फूल छाप के पिपलौदा वाले बागी का शुरुआती शोर बहुत ज्यादा था,लेकिन जैसे जैसे प्रचार के दिन गुजरने लगे,वो चुनावी दौड में पिछडते हुए नजर आने लगे। पंजा छाप की कहानी उलझी हुई दिखाई दे ही रही थी,कि दिग्गी राजा के संकेतों के बाद अब चुनावी जोड बाकी लगाने वालों को यहां फूल छाप ताकतवर नजर आने लगी है। फूल छाप वाले भैया की चुनावी गाडी सबसे आगे दिखाई दे रही है। हिसाब लगाने वालों का कहना है कि फूल छाप वाले बागी के कमजोर होने और पंजा छाप के बागी के मजबूत होने का पूरा फायदा फूल छाप के भैया को मिलेगा।
दादा का क्या होगा..?
जब वो पावर में थे,उस जमाने में वो जिसके भी कन्धे पर हाथ रख देते थे,उसका बण्टाधार हो जाता था। जैसे ही राजा ने किसी के कन्धे पर हाथ धरा,लोग उसकी उलटी गिनती शुरु कर देते थे। तब से अब तक बहुत कुछ बदल गया है। पन्द्रह साल भी गुजर गए है। अब वो किसी के कन्धे पर हाथ रखेंगे तो उसका क्या होतो है,किसी को नहीं पता…। इधर टिकट की आस लगाकर पंजा पार्टी में आए दादा बेहद निराश है। न तो टिकट मिला और ना ही किसी ने स्टार प्रचारक का सम्मान दिया। बस इतनी ही गनीमत रही कि रतलाम आए राजा साहब ने उडन खटोले में चढने से पहले दादा को पास बुलाया और गले लगा लिया। अब लोग यही गणित लगा रहे है कि राजा के गले लगाने से दादा को क्या मिलेगा…?