November 15, 2024

चुनावी चकल्लस-1/जय परशुराम के सहारे प्रतिष्ठा बचाने की लडाई

रतलाम,14 नवंबर(इ खबरटुडे)। पिछले एक हफ्ते से पंजा और फूल दोनो पार्टियों के नेता बागियों को पटाने की कोशिशों में जुटे थे। सियासत से जुडे लोगों को साफ दिख रहा था कि जिले की पांच में से सिर्फ जावरा में दोनो ही पार्टियों के बागी टिके रहने वाले है। इसके अलावा जितने बागी थे,वे सारे तो अपना वजन बढाने के लिए बागी बनने का नाटक कर रहे थे। सैलाना वाली मैडम से लेकर ग्रामीण वाली मैडम तक सिर्फ इसी इंतजार में थे कि कोई बडा नेता पूछ परख कर ले। बहरहाल अब पूरा दृश्य साफ हो गया है। जिले की चार सीटों पर सीधा मुकाबला है। जावरा में मामला उलझा हुआ है।

विकास की इबारत पर जय परशुराम का नारा

शहर में फूल छाप वाले भैयाजी का भरोसा विकास कार्यो पर है,तो पंजा छाप वाली बहूरानी अपने मरहूम ससुर जी और परशुराम जी के भरोसे लडाई लडना चाहती है। हांलाकि शहर में पिछले कई चुनावों से जय परशुराम और हर हर महादेव की कहानी चलाने की कोशिशें होती रही है,लेकिन नारा लगाने वाले इवीएम पर पंहुचने के बाद इन नारों की बजाय असलियत को देखकर ही बटन दबाते रहे है। पंजा पार्टी को अल्पसंख्यकों का भी बडा भरोसा है,लेकिन सियासी गुणा भाग लगाने वालों का मानना है कि पूरी लडाई अब हारजीत की नहीं बल्कि पंजा छाप की प्रतिष्ठा को बचा कर रखने भर की है।

ग्रामीण में भारी मामा-भांजा फैक्टर

रतलाम ग्रामीण में पंजा पार्टी प्रत्याशी का प्रचार शुरु ही हुआ था कि मंच टूटने से बेचारे का पैर टूट गया। अब जहां बेचारा शब्द आया वहीं सहानुभूति की लहर चलने लगती है। दूसरी तरफ फूल छाप पार्टी पर मामा-भांजा फैक्टर भारी पड रहा है। फूल छाप पार्टी के बडे बडे लोग मास्टर जी को कह चुके है कि समस्या मामा भांजा ही बनेंगे। मास्टर जी की मजबूरी ये है कि वो मामा-भांजे से चाहकर भी पीछा नहीं छुडा सकते। मामा-भांजे का दावा है कि टिकट उन्ही ने दिलवाया है।

बागी बिगाडेंगे गणित

जावरा में फूल छाप वाले भैया को पिपलौदा वाले बागी का टेंशन है,तो पंजा छाप के ठाकुर सा.को डाक्टर सा.की परेशानी है। अब तक गणित ही नहीं लग पा रहा है कि कौन किसे कितना निपटायेगा। पंजा छाप वाले ठाकुर सा.के लिए श्रीमंत खुद सभा करने आए। उनके सभा मंच से भी पंजा छाप के नेता डाक्टर सा.से नाम वापस लेने की दरख्वास्त करते नजर आए। उधर फूल छाप पार्टी के बडे नेता चीलगाडी में पिपलौदा के बागी को समझाने आए,लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। अब उम्मीद आने वाले दिनों पर है,जब इस चुनावी मैदान पर छाया कोहरा कुछ छंटेगा,तब समझ में आएगा कि हवा किधर बह रही है?

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