गहनों में नए चलन के बावजूद पुरानी फैशन बरकरार
रतलाम के कारीगरों ने विकसित की एक नई शैली
रतलाम,25 अक्टूबर (इ खबरटुडे)। अपनी चमक दमक के लिए देश भर में विख्यात रतलाम के सर्राफा बाजारों के गहनों में नई डिजाइनों की पूछपरख तो है ही,लेकिन पुरानी फैशन का महत्व भी बरकरार है। मारवाडी कारीगरों के कारण जहां गहनों के डिजाइन पर जहां मारवाडी शैली का असर साफ नजर आता है,वहीं बंगाली कारीगरों के आने के कारण अब बंगाली डिजाईन भी चलन में आने लगे है। बंगाली और राजस्थानी शैली के सम्मिलन से रतलाम की एक नई शैली भी विकसित हो चुकी है।
स्वर्णाभूषण बनाने वाले युवा कारीगर ब्रजेश सोनी बताते हैं कि वर्तमान में बंगाली कारीगरों के आने से कलकत्ती गहनोंके प्रति लोगों की रुचि काफी बढ गई है। कलकत्ती गहनों में बेहद बारीक नक्काशी का काम होता है। ये गहने सुन्दर तो होते है,लेकिन मजबूत नहीं होते। इसके विपरित रतलाम की पारंपरिक रजवाडी या राजस्थानी शैली के गहने भारी होते है। इनकी कलात्मकता भी कम नहीं होती। ये गहने कलकत्ती गहनों की तुलना में महंगे होते है।ब्रजेश सोनी के मुताबिक
कलकत्ती गहनों में खासतौर पर अंगूठी,पैडल,रानीहार,सोभासठ(चूडियां) आदि बनाए जाते है। जबकि राजस्थानी शैली के गहनों के नाम भी राजस्थानी ही होते है। राजस्थानी गहनों में आड (गले का विशेष प्रकार का हार),रखडी या बोर (सिर पर पहने जाने वाला गहना) आदि होते है। गले में पहने जाने वाले हार भी अलग अलग नामों के होते है। इनमें टिमनिया,गलसरी,लंगर आदि नामों के हार होते है। इसी तरह गोखरु और बाजूबंद भी राजस्थानी या मारवाडी शैली के खास गहने है।
पारंपरिक ज्वैलरी में कुंदन के गहने सबसे महंगे होते है। रजवाडी गहनों में कुन्दन के गहनों का विशेष स्थान है। कुन्दन के गहनों में नैकलेस सेट,काकटेल रिंग पैडल सैट आदि बनाए जाते है। कुन्दन के गहनों की खासियत यह होती है कि इसमें गहनें में नगीने जडे जाते है। गहनों में नगीनों की जडाई सूरमें से की जाती है। इसके बाद इन नगीनों पर खरे सोने की पालिश की जाती है। कुन्दन के गहनों में नगीनों का वजन सोने के साथ नहीं किया जाता,लेकिन नगीनों पर की जाने वाली खरे सोने की पालिश के कारण ये महंगे होते है। कुन्दन की ज्वैलरी बनाने में कारीगरों की मजदूरी भी अधिक लगती है।
रतलाम के सर्राफे में आदिवासियों की अपनी डिजाईनों का भी काफी चलन है। इस इलाके में आदिवासी समुदाय की महिलाएं आमतौर पर ठोस चांदी के जेवर पहनती है। इसके साथ ही आदिवासी समुदाय में सोने के जेवरों का भी चलन है। आदिवासी महिलाएं सोने के गहनों में खासतौर पर कान में पहने जाने वाले गहने मुरकी और सुलया,नाक में पहने जाने वाली छावडी और कापजोड,और टड्डे (बाजूबंद) इत्यादि पहनती है। आदिवासी गहनों की खासियत यह होती है कि मुरकी और सलया में 98 प्रतिशत शुध्दता वाले सोने का उपयोग होता है और छावडी व टडडे में 94 से 96 प्रतिशत शुध्दता वाले सोने का प्रयोग किया जाता है। जबकि आमतौर पर रतलाम में बनने वाले सोने के अन्य प्रकार के गहने 92 प्रतिशत शुध्दता वाले होते है। इसी तरह आदिवासी समुदाय की महिलाएं चांदी से बने गहनों में कडी,आवले (सिर का बोर) ठोसकडी (पैर के कडे) कंदोरा (कमर में पहने जाने वाला गहना) नाके के काटे आदि का उपयोग बहुतायत में करती है।