December 24, 2024

क्या असर दिखाएगी दलबदलू की छबि

lok sabha elections 2014 dates

लोकसभा चुनाव-रतलाम झाबुआ संसदीय सीट परिदृश्य – 1

रतलाम,8 अप्रैल(इ खबरटुडे)। लोकसभा चुनाव के लिए होने वाले मतदान में अब महज सौलह दिन बाकी बचे है,लेकिन शहर में कहीं चुनावी माहौल नजर नहीं आ रहा है। नाDilipSingh Bhuriya तो माइक का शोर शराबा है और ना ही ढोल ढमाकों का जनसम्पर्क। चुनावी सभाओं का भी दूर दूर तक नामो निशान नहीं है। दोनो पार्टियों ने हांलाकि अपने कार्यकर्ताओं को सक्रीय करने के लिए कोशिशें शुरु कर दी है,लेकिन आम मतदाता तक पंहुचने का सिलसिला अब तक शुरु नहीं हुआ है।
पिछले करीब तीन दशकों से रतलाम झाबुआ संसदीय सीट पर भूरियाओं का कब्जा रहा है। पहले दिलीपसिंह भूरिया कांग्रेस के सांसद थे। वे भाजपा में आ गए तो क्षेत्र के मतदाताओं ने कांग्रेस के कांतिलाल भूरिया को अपना प्रतिनिधित्व सौंप दिया। कांग्रेस छोडकर भाजपा में आए दिलीपसिंह को भाजपा ने चुनाव लडाया और चुनाव हारने के बावजूद भाजपा की वाजपेयी सरकार में दिलीपसिंह को मंत्री का दर्जा भी दिया गया। लेकिन इसके बाद जब पार्टी ने दिलीपसिंह को एक बार टिकट नहीं दिया,वे पुन:कांग्रेस में चले गए। कांग्रेस में अपेक्षित सम्मान नहीं मिलने से वे फिर भाजपा में चले आए।
पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा ने दिलीपसिंह पर ही भरोसा जताया था,लेकिन शायद मतदाता दिलीपसिंह की आयाराम गयाराम वाली छबि को पचा नहीं पाए। उन्होने एक बार फिर दिलीपसिंह को नकार दिया।
इस बार पूरे देश में मोदी लहर है,और दिलीपसिंह भूरिया फिर से रतलाम झाबुआ संसदीय सीट के लिए भाजपा का टिकट ले आए है। उन्हे उम्मीद है कि संसदीय क्षेत्र से लम्बे समय का उनका राजनीतिक निर्वसन  इस बार समाप्त हो जाएगा। हांलाकि उनकी इस उम्मीद में उनकी स्वयं की छबि का कोई महत्व नहीं है। देश में चल रही मोदी लहर पर उन्हे भरोसा है। पिछले विधानसभा चुनाव में संसदीय क्षेत्र की सभी विधानसभा सीटों पर भाजपा को भारी जीत मिली है और भाजपा और कांग्रेस के मतों में करीब ढाई लाख मतों का अन्तर भी है,इसलिए दिलीप सिंह को यकीन है कि इस बार उन्हे सत्तासुख मिल ही जाएगा।
उन्हे टिकट दिलाने और चुनाव के प्रबन्धन में शहर विधायक उद्योगपति चैतन्य काश्यप का महत्वपूर्ण रोल रहा है। उद्योगपति श्री काश्यप और दिलीपसिंह के नजदीकी सम्बन्ध उन दिनों से हैं,जब श्री काश्यप राजनीति में नहीं आए थे और एक उद्योगपति के रुप में प्रत्येक राजनेता से नजदीकी रखना पसन्द करते थे। इस नजदीकी के लिए वे भारी कीमत चुकाने के लिए भी तैयार रहते थे। उन दिनों दिलीपसिंह भूरिया कांग्रेस के मजबूत सांसद माने जाते थे। बाद में समय बदला और उद्योगपति श्री काश्यप ने राजनीतिज्ञ का चोला औढ लिया। दिलीपसिंह को भाजपा में लाने में भी उनका ही खासा रोल माना जाता है।
इस बार के चुनावी परिदृश्य में भाजपाई हल्कों में सामान्यतया यह माना जा रहा था कि भाजपा के रणनीतिकार रतलाम झाबुआ संसदीय क्षेत्र के लिए किसी नए चेहरे को मौका देंगे। इस मान्यता के पीछे तर्क यह था कि पूरे देश में चल रही मोदी लहर सभी को नजर आ रही थी। इसके अलावा पूरे रतलाम  झाबुआ संसदीय क्षेत्र में भाजपा जीत का परचम लहरा चुकी थी। नए चेहरे को लाने में एक फायदा यह भी था कि कांग्रेस के परंपरागत गढ रहे इस ईलाके में भाजपा को अपनी स्थाई पकड बनाने में आसानी रहती। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। शिवराज लहर पर चुनाव जीते शहर विधायक उद्योगपति श्री काश्यप ने अपने पुराने विश्वस्त साथी दिलीपसिंह को ही भाजपा का टिकट दिलवा दिया।
भाजपा में आने के बाद एक भी चुनाव नहीं जीत पाए पूर्व कांग्रेसी सांसद दिलीपसिंह की हार के बावजूद भाजपा का नेतृत्व इस तथ्य को मानने से इंकार करता है,कि शहरी तो ठीक आदिवासी मतदाता भी दलबदलू छबि वाले नेता को पसन्द नहीं करता। इतना ही नहीं भाजपा का अनुशासित कहा जाने वाला कार्यकर्ता वर्ग भी दिल से इस तरह के संदिग्ध निष्ठा वाले नेताओं को पसन्द नहीं करता और पूरी ताकत से काम में नहीं जुटता।  इस चुनाव के नतीजों पर यह तथ्य भी खासा असर डाल सकता है कि सांसद का चुनाव लड रहे दिलीपसिंह भूरिया पूरी तरह शहर विधायक चैतन्य काश्यप के दायरे में कैद होकर रह गए है। इसलिए भाजपा के आम कार्यकर्ता से उनका सीधा जुडाव नहीं हो पा रहा है। शिवराज लहर पर चुनाव जीत कर आए चैतन्य काश्यप भी इन दिनों अतिआत्मविश्वास के शिकार नजर आने लगे है। उन्होने अपना चुनाव कारपोरेट ढंग से लडा था। उनकी जीत में इस कारपोरेट ढंग के चुनाव प्रचार का उतना योगदान नहीं था जितना कि प्रदेश में छाई शिवराज लहर का। लेकिन उन्हे लगता है कि उनके कर्मचारियों के भरोसे किया गया प्रचार अभियान ही अधिक प्रभावी था। यही वजह है कि संसदीय चुनाव में भी उसी फार्मूले को दोहराया जा रहा है।
आजादी के बाद से अब तक रतलाम झाबुआ संसदीय सीट पर केवल एक बार कांग्रेस ने पराजय का मुंह देखा है। भाजपा अपने दम पर आज तक यह सीट नहीं जीत पाई है। भाजपा के कुछ लोग ऐसा कहते थे कि जब भाजपा रतलाम झाबुआ संसदीय सीट अपने बलबूते पर जीत जाएगी,जब देश में भाजपा की ढाई सौ से अधिक सीटें आ जाएगी। यह पैमाना सही भी प्रतीत होता है।
कार्यकर्ताओं से दूरी,मतदाताओं में नकारात्मक छबि और अस्तव्यस्त चुनाव प्रचार के बावजूद अगर दिलीपसिंह रतलाम झाबुआ क्षेत्र में अपना परचम लहराने में कामयाब हो जाते है,तो निश्चित ही देश में भाजपा को ढाई सौ से अधिक सीटें मिल जाएगी। यह भी कहा जा सकता है कि तब असंदिग्ध रुप से साबित हो जाएगा कि देश में मोदी की लहर नहीं आंधी है। यह देखना मजेदार होगा कि बचे हुए मात्र सौलह दिनों में दिलीपसिंह रतलाम की तीन विधानसभी सीटों से कितने वोट खींच पाते है?

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