December 24, 2024

Corona Vaccine Pork: सुअर के मांस वाली कोरोना वैक्सीन को लेकर 9 मुस्लिम संगठनों का एतराज, कहा- China की वैक्सीन का नहीं करेंगे इस्तेमाल,संयुक्त अरब अमीरात UAE को नहीं है दिक्कत

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मुंबई,25 दिसम्बर (इ खबरटुडे)। 9 मुस्लिम संघटनों (Muslim Organizations) ने बुधवार को फैसला लिया है कि चीन (China) में बनने वाली कोरोना वैक्सीन (Coronavirus Vaccine) का इस्तेमाल मुस्लिम नहीं करेंगे. इन मुस्लिम संगठनों का कहना है कि चाइना की वैक्सीन में सुअर (Pork) का इस्तमाल हुआ है. सुअर मुसलमानों के लिए हराम होता है. इसलिए चाइना वाली वैक्सीन का इस्तेमाल हमलोग नहीं करेंगे. बता दें कि कोरोना वैक्सीन को लेकर मुस्लिम संगठनों के सहमति और असहमति के लगातार बयान आ रहे हैं. हाल ही में अरब अमीरात (UAE) के शीर्ष इस्लामी संगठन फतवा काउंसिल ने कोरोना वायरस टीकों में पोर्क के जिलेटिन का इस्तेमाल होने पर भी इसे जायज करार दिया था.

चाइना का वैक्सीन मुस्लिम इसलिए इस्तेमाल नहीं करेंगे

बता दें कि आम टीकों में पोर्क जिलेटिन का इस्तेमाल होता है. इसी वजह से मुस्लिमों के बीच टीकाकरण को लेकर चिंता बढ़ गई है. इस्लामी कानून में पोर्क से बने कोई भी उत्पादों को हराम माना जाता है. मुंबई में बुधवार को 9 मुस्लिम संगठनों के महासचिव और रजा एकाडमी के मो सैय्यद नूरी ने कहा, ‘मुंबई में हमारे लोगों कि मीटिंग हुई, जिसमें 9 संघटन शामिल हुए. इसमें फैसला लिया गया कि चाइना में बनने वाली वैक्सीन का इस्तेमाल मुस्लिम न इस्तेमाल करें.’

नूरी आगे कहते हैं, ‘हमें पता चला है की चाइना में एक वैक्सीन बनाई है, जिसमें सुअर के बाल, चर्वी या उसके मांस का इस्तमाल हुआ है. मुसलमानों में सुअर पूरी तरह से हराम है. अगर सुअर का एक बाल भी कुएं में गिर जाता है तो वो पूरा कुआं ना-पाक हो जाता है. इसलिए यह तय हुया है कि चाइना वाली वैक्सीन का इस्तेमाल हम नही करेंगे.’

संयुक्त अरब अमीरात UAE को नहीं है दिक्कत

संयुक्त अरब अमीरात के टॉप इस्लामिक बॉडी ने कहा है कि अगर वैक्सीन में सुअर का मांस हो भी तो उन्हें दिक्कत नहीं है और वे टीका लगवाएंगे। समाचार एजेंसी एपी के मुताबिक, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के शीर्ष इस्लामी निकाय ‘यूएई फतवा काउंसिल’ ने कोरोना वायरस टीकों में पोर्क (सुअर के मांस) के जिलेटिन का इस्तेमाल होने पर भी इसे मुसलमानों के लिये जायज करार दिया है। मगर दुनियाभर के इस्लामिक धर्मगुरुओं के बीच इस बात को लेकर असमंजस है कि सुअर के मांस का इस्तेमाल कर बनाए गए कोविड-19 टीके इस्लामिक कानून के तहत जायज हैं या नहीं।

काउंसिल के अध्यक्ष शेख अब्दुल्ला बिन बय्या ने कहा कि अगर कोई और विकल्प नहीं है तो कोरोना वायरस टीकों को इस्लामी पाबंदियों से अलग रखा जा सकता है क्योंकि पहली प्राथमिकता ‘मनुष्य का जीवन बचाना है।’ काउंसिल ने कहा कि इस मामले पोर्क-जिलेटिन को दवा के रूप में इस्तेमाल किया जाना है न कि भोजन के तौर पर। दरअसल, टीकों में सामान्य तौर पर पोर्क जिलेटिन का इस्तेमाल होता है और इसी वजह से टीकाकरण को लेकर उन मुस्लिमों की चिंता बढ़ गई है जो इस्लामी कानून के तहत पोर्क से बने उत्पादों के प्रयोग को ‘हराम’ मानते हैं।

दुनियाभर में इस पर जारी है विवाद

दरअसल, दुनियाभर के इस्लामिक धर्मगुरुओं के बीच इस बात को लेकर असमंजस है कि सुअर के मांस का इस्तेमाल कर बनाए गए कोविड-19 टीके इस्लामिक कानून के तहत जायज हैं या नहीं। एक ओर कई कंपनियां कोविड-19 टीका तैयार करने में जुटी हैं और कई देश टीकों की खुराक हासिल करने की तैयारियां कर रहे हैं। वहीं, दूसरी ओर कुछ धार्मिक समूहों द्वारा प्रतिबंधित सुअर के मांस से बने उत्पादों को लेकर सवाल उठ रहे हैं, जिसके चलते टीकाकरण अभियान के बाधित होने की आशंका जताई जा रही है।

क्यों होता है पोर्क जिलेटिन का इस्तेमाल

टीकों के भंडारण और ढुलाई के दौरान उनकी सुरक्षा और प्रभाव बनाए रखने के लिये सुअर के मांस (पोर्क) से बने जिलेटिन का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जा रहा है। कुछ कंपनियां सुअर के मांस के बिना टीका विकसित करने पर कई साल तक काम कर चुकी हैं। स्विटजरलैंड की दवा कंपनी ‘नोवारटिस’ ने सुअर का मांस इस्तेमाल किए बिना मैनिंजाइटिस टीका तैयार किया था जबकि सऊदी और मलेशिया स्थित कंपनी एजे फार्मा भी ऐसा ही टीका बनाने का प्रयास कर रही हैं।

इन कंपनियों का क्या है कहना

हालांकि, फाइजर, मॉडर्न, और एस्ट्राजेनेका के प्रवक्ताओं ने कहा है कि उनके कोविड-19 टीकों में सुअर के मांस से बने उत्पादों का इस्तेमाल नहीं किया गया है, लेकिन कई कंपनियां ऐसी हैं जिन्होंने यह स्पष्ट नहीं किया है कि उनके टीकों में सुअर के मांस से बने उत्पादों का इस्तेमाल किया गया है या नहीं। ऐसे में इंडोनेशिया जैसे बड़ी मुस्लिम आबादी वाले देशों में चिंता पसर गई है।

किनका क्या है कहना

ब्रिटिश इस्लामिक मेडिकल एसोसिएशन के महासचिव सलमान वकार का कहना है कि ‘ऑर्थोडॉक्स यहूदियों और मुसलमानों समेत विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच टीके के इस्तेमाल को लेकर असमंजस की स्थिति है, जो सुअर के मांस से बने उत्पादों के इस्तेमाल को धार्मिक रूप से अपवित्र मानते हैं। सिडनी विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर डॉक्टर हरनूर राशिद कहते हैं कि टीके में पोर्क जिलेटिन के उपयोग पर अब तक हुई विभिन्न परिचर्चा में आम सहमति यह बनी है कि यह इस्लामी कानून के तहत स्वीकार्य है, क्योंकि यदि टीकों का उपयोग नहीं किया गया तो ‘बहुत नुकसान’ होगा।

इजराइल की रब्बानी संगठन ‘जोहर’ के अध्यक्ष रब्बी डेविड स्टेव ने कहा, ”यहूदी कानूनों के अनुसार सुअर का मांस खाना या इसका इस्तेमाल करना तभी जायज है जब इसके बिना काम न चले।” उन्होंने कहा कि अगर इसे इंजेक्शन के तौर पर लिया जाए और खाया नहीं जाए तो यह जायज है और इससे कोई दिक्कत नहीं है। बीमारी की हालत में इसका इस्तेमाल विशेष रूप से जायज है।

क्या है पोर्क जिलेटिन?

दरअलस, जिलेटिन जानवरों की चर्बी से प्राप्त होता है। सुअरों की चर्बी से मिलने वाले जिलेटिन को पोर्क जिलेटिन’ कहा जाता है। टीकों अथवा दवाओं के निर्माण में इस पोर्क जिलेटिन का इस्तेमाल होता है। कई कंपनियों का मानना है कि इसके इस्तेमाल से वैक्सीन का स्टोरेज सुरक्षित और असरदार होता है।

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