November 23, 2024

कैसे कैसे अंधविश्वासी

(डॉ.डीएन पचौरी)
श्री नंदलाल चोयल एम.एस.सी पास है,कालेज में प्रवक्ता है परन्तु उनकी दोनो हाथों की आठों अंगुलियों में आठ अंगूठी शोभायमान रहती है। हीरा,पुखराज,नीलम,लहसुनिया,पन्ना और भी ना जाने किस किस मूल्यवान पत्थरों से बनी अंगूठियां श्रीमान पहने रहते है। यदि आपके पास समय है तो आप उनके पास बैठ जाएं फिर वो आपको हर अंगूठी के बारे में विस्तार से बताएंगे। प्रत्येक के गुण दोषों की विवेचना करेंगे और आपके दो चार घण्टे कब   बीत गए पता नहीं चलेगा। लेकिन इतनी अंगूठियां पहनने वाले नन्दलाल जी अपने जीवन से न संतुष्ट है और न सुखी। एक अनजाना भय उन पर हमेशा सवार रहता है। न जाने कौन कौन से ग्रहों की शांति के लिए उन्होने नग धारण किए है,पर कष्ट है कि कम होने का नाम नहीं ले रहे हैं।

 दीपक ग्रेवाल रेलवे कर्मचारी हैं,बीबी,दो बच्चे,देखा जाए तो सुखी परिवार है। अच्छा वेतन मिलता है। परन्तु ऐसा नहीं है,बिचारे जब मिलेंगे हमेशा तनाव में। दुखी और मानसिक रुप से परेशान। उनका सोचना है कि लोगों ने उन पर तंत्र मंत्र की चौकियां बिठा रखी है। लगभग छ: माह पूर्व उनका कहना था कि उनपर दस चौकियां बिठाई गई थी,परन्तु आठ उन्होने आठ अपने प्रभाव से काट दी है,केवल दो बाकी हैं। उनके मित्रों को लगा कि ग्रेवाल साहब शीघ्र ही समस्यामुक्त व सुखी हो जाएंगे। परन्तु कुछ दिन पूर्व पता चला कि उन पर चार नई चौकियां और बिठाई गई हैं,जिनसे उन्हे निपटना हैं। चौकियां आदि कुछ नहीं,उनके दिमाग का फितूर है,और न जाने किस अन्धविश्वास के सहारे दीपक जी अपने घर को नर्क बनाए हुए हैं। उनकी बीबी अधिकतर मायके में रहती है। बच्चे कभी दीपक जी के पास तो कभी मां के पास धक्के खाते फिर रहे हैं।
 पं.शिवलाल शर्मा जी नगर निगम में क्लर्क है। उनके मात्र आठ बच्चे हैं। परिवार नियोजन को धता बताते हुए प्रतिवर्ष या प्रति दो वर्ष में एक नये बालक के पिता होने का गौरव प्राप्त करते हैं। यूपी के रहने वाले हैं। वहीं की परम्परा को निभाते हुए उनकी धर्मपत्नी प्रत्येक दीपावली के दूसरे दिन पडवा तिथी कर प्रात: ५ बजे अनाज साफ करने का सूपडा खट-खटाती हुई घर के हर कोने में मंत्र जैसा उच्चारित करती हैं। निकल दलिद्दर लक्ष्मी जी आई। पर आज तक उनके यहां लक्ष्मी जी नहीं आईं,सदैव दरिद्रता ही पसरी रहती है। लक्ष्मी जी आएं कहां से? कमाने वाला एक व खाने वाले दस प्राणी।
मिस्टर तोमर टेलीफोन विभाग में कर्मचारी हैं। पढे लिखे परिवार से है। एक लडका बैंक मैनेजर व दूसरा कम्प्यूटर इंजीनियर है। कॉलोनी में इनका मकान सबसे छोटे प्लाट पर बना है। दूसरे बडे और सुन्दर मकान व शानदार बंगले भी बने है। परन्तु तोमर साहब को डर है कि उनके मकान को लोगों की नजर लग जाएगी। इसलिए मकान के ऊ पर काली हांडी लटका रखी है। एक दिन आंधी आने पर हांडी गिर चुकी है। गनीमत थी कि किसी के उपर नहीं गिरी। पर तोमर साहब को इससे क्या? उन्होने दूसरी काली हांडी पुन: लटका दी है।
 मदनलाल चौरसिया को उनके पिताजी ने आज से लगभग पचास वर्ष पूर्व एक सायकल खरीद कर दी थी। मदनलाल जी अपने को अत्यन्त भाग्यशाली समझते है। समय समय पर साईकिल की सीट,हैण्डल,फ्रैम,पहिए,मडगार्ड,यहां तक कि चैन,चेसिस व पैडल तक बदले जा चुके है,पर मदनलाल जी की नजर में साईकिल वही की वही है। आप इसे अंधविश्वास नहीं तो और क्या कहेंगे?
श्री कुशवाह जी के पर्स में उनकी जन्मतिथी से मिलते जुलते नम्बर का दस का नोट है। पिछले २० वर्षोंसे इसे खर्च करने में कुशवाह जी डरते हैं। उनका मानना है कि जिस दिन ये नोट खर्च हो गया,उनका पर्स खाली हो जाएगा।
डा.अजय जोशी एम.एस.सी. पी.एच.डी.हैं। उनके लिए उनका एक बैग लकी है। सदैव बैग लटकाए रहते हैं। कालेज हो या कोई आफिस,शादी ब्याह का समारोह हो या धार्मिक आयोजन या अन्य कोई आमंत्रण निमंत्रण,जोशी जी बैग लिए ही मिलेंगे। लोगों ने उनका नाम मैन विद बैग रख दिया है,पर उससे क्या?बैग लकी है तो लकी है। घर पर वे बैग कितनी देर अपने से अलग रखते होंगे,यह सोचने का विषय है।
ये कुछ उदाहरण हैं,समाज में हमारे आपके चारों ओर अनेकों अंधविश्वासी लोग मिल जाएंगे,जो विभिन्न प्रकार के भ्रम पाले हुए हैं। अंधविश्वास एक फितूर,दिमागी पागलपन है और इसका कोई ईलाज नहीं हैं। अनपढ या कम पढे लिखे लोग इसके शिकार हो तो माना जा सकता है। परन्तु अच्छे अच्छे पढे लिखे,अपने को सुसंस्कृत और सुसभ्य समझने वाले लोग जब अंधविश्वास का कार्य करते हैं तो दु:ख होता है।
 चम्बल के डाकुओं के अंधविश्वास की कुछ झलकियां देखिए। डाकू मानसिंह के दायें हाथ डाकू रुपराग उर्फ रुपा के पास एक कठपुतली थी। उसकी पुतली का मुंह जिस दिशा में रहता था,डाकू रुपा उस दिशा में धावा बोलता था। उसका मानना था कि उस दिशा में पुलिस नहीं आएगी,और आएगी तो उसका कुछ नहीं बिगाड पाएगी। परन्तु जिस दिन मौत आनी थी,उस दिन कठपुतली का अंधविश्वास कुछ न कर सका।
 डाकू महाराजङ्क्षह को एक आधे अधूरे ज्ञान वाले ज्योतिषी ने बती दिया कि जिस दिन वह किसी बच्चे को गोद में उठाएगा,उसकी मौत हो जाएगी। इसके पहले वह नहीं मरेगा। इशसे महाराजसिंह डाकू इतना भयग्रस्त हो गया कि वह छोटे बच्चों की क्रूरता पूर्वक हत्या करने लगा। पर जिस दिन पुलिस एनकाउण्टर में मारा गया,उस दिन उसकी गोद में कोई बच्चा तो अलग,दूर दूर तक बच्चों का नामनिशान नहीं था। डाकू भीखा तो एक तांत्रिक ने बताया था कि वह हर मास की अमावस को एक नरबलि देता रहेगा तो उसका यमराज भी कुछ नहीं कर सकेंगे। डाकू भीखा को जब कोई आदमी नहीं मिलता था तो वह अपने दल के किसी साथी को ले जाता और श्मशान में बलि दे देता था।  जब दल में कुछ डाकू कम हुए तो बाकी को संदेह हो गया और उन्होने छुपकर भीखा का कृत्य देख लिया। फिर सबने उसे गोलियों से भून दिया। तांत्रिक की भविष्यवाणी धरी की धरी रह गई।
 अनेकों उदाहरण है,जिनमें अंधविश्वासी लोगों ने ऐसे ऐसे जघन्य काण्ड किए हैं कि सुनकर रुह कांप उठती है और आज भी ऐसे काण्ड हो रहे हैं। हमें समाचार पत्रों और टीवी चैनलों से रोज ही ऐसे काण्ड देखने सुनने को मिलते हैं। काश इंसान अपने कर्म को बुध्दि व तर्क की कसौटी पर कसकर देखे तो शायद अंधविश्वास से छुटकारा मिल जाए।

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