December 24, 2024

कहीं भूखमरी…तो कहीं पार्टी…कहीं हम मानवता तो नही भूल गए?

-sendhwa_labour
  • वैदेही कोठारी

लॉकडाउन के समय में कई लोगो की नई-नई योग्यताएं सामने आई। कोई आईने में देख कर बाल काट रहा है,तो कोई घर पर कुछ पेंटिग कर रहा है,कोई टिक-टाक पर वीडियोज बना रहा है,कोई पाक कला में निपूर्ण बन रहा है। कहने का तात्पर्य यह है कि सभी की कुछ न कुछ योग्यताएं सामने आ रही है। सबसे ज्यादा, जो खास योग्यता हमने सोशल मीडिया पर देखी, वह है पाक कला,जब से लॉकडाउन शुरू हुआ,तब से सोशल मीडिया पर हर व्यक्ति कुछ न कुछ खाने की डिश बनाकर दिखा रहा है,और खा रहा है। यह तो (अपर मीडिल क्लास)उच्च सामान्य वर्ग की दिनचर्या है। रोज कुछ नया बनाकर सोशल मीडिया पर डालना और खाना। परिवार के साथ खेल खेलना,टी.वी देखना,वीडियो चेङ्क्षटग करना। सोशल मीडिया पर अधिक से अधिक सेल्फीयां डालना इत्यादि। मेरी एक दोस्त तो यहां तक बोली यार इतना तो त्यौहारों पर भी बना कर नही खाया जितना लॉकडाउन में बना कर खा रहै है। ऐसा लग रहा है, जैसे कोई त्यौहारो के दिन चल रहे हो। मैने भी स्माईल देदी। इसी तरह पुरूष वर्ग ने भी हर रोज रसोईघर में कड़ाही में, कुछ न कुछ बनाते हुए रोज फोटो शेयर किये है। लॉकडाउन के दौरान कई जगह तो आपसी प्रेम भाव व भाई चारा भी बढ़ रहा है। आस-पड़ोस में सब्जी व मीठी डिश का आदान-प्रदान हो रहा है,कई लोग तो लॉकडाउन का फुल आनन्द उठा रहे है। देखा जाए तो यह बहुत अच्छी बात है कि एक तबका सुरक्षित है। सम्भला हुआ है।
वही दूसरी ओर एक ऐसा वर्ग है जिन्हे रोज भोजन का इंतजार करना पड़ रहा है। भोजन के लिए लम्बी कतारों में शामिल होना पड़ रहा है। चिलचिलाती धूप में घंटो खड़े होकर भोजन लेना पड़ रहा है। भोजन,पानी,बीमारी,घरो की परेशानी ऐसी अनंत समस्याएं यह वर्ग झेल रहा है। हालाकि कई सामाजिक संस्थाएं व प्रशासन लगी हुई है, इस वर्ग की परेशानियां दूर करने में,भोजन, मास्क सेनिटाईजर,दवाइयां उपलब्ध करा रही है। जो अति गरीब स्तर के लोग है, वो तो भीड़ में खड़े होकर भी भोजन पैकेट लेकर खुश हो जाते है। और लॉकडाउन की मारामारी में अपना जीवन यापन कर रहे है। किंतु कई बार ऐसा भी होता है,विकलांग अपंग लोग भोजन लेने पहुंचते है, उससे पहले ही भोजन पैकेट खत्म हो जाते है। जिससे उनको कई बार भूखा ही रहना पड़ता है। कई लोगो को एक समय का ही भोजन मिल पा रहा है। ऐसी परिस्थिति में भी लोग जी रहे है। इसी तरह कुछ गरीब बस्तियां ऐसी भी है,जो बार-बार भोजन पैकेट व खाद्य सामग्री दोनो ले रहे है। कई लोग तो बहुत से भोजन पैकेट लेने के पश्चात पसंद करते है,जो पसंद नही आता उस भोजन को फैंक देते है। हमे कई जगह भोजन जमीन पर पड़ा हुआ मिला है। कई जरूरतमंद लोगो तक अन्न एक दाना भी नही पहुंच रहा है। तो कही भोजन बर्बाद हो रहा है।
इसी तरह कुछ ऐसे वर्ग भी है, जो मेहनती काम करके जीवन निर्वह करना पसंद करते है, मांग कर नही खा सकते। (सेकंड मीडिल क्लास)मध्यम वर्ग यह ऐसा वर्ग है जिसे किसी के आगे हाथ फैलाना नही आता है। लॉकडाउन में यह वर्ग सबसे ज्यादा पिस रहा है। जो रोज कमाते और खाते है। यह वर्ग अब पूरी तरह से हारने लगा है। यह वर्ग किसी के सामने अपनी तकलीफे भी बयंा नही कर सकता है। क्योंकि इस वर्ग ने समाज में अपनी एक अच्छी छबी बना रखी है। इस वर्ग में कई लोग दूध वाले का बिल देते है तो किराने वाले का बिल रोक देते,घर का किराया देना,बड़े नामी स्कूलों की फीस जमा करना, इत्यादि खर्चे। यह वर्ग कुछ नया समान भी खरीदता हे, तो दूसरे खर्चे पर रोक कर लेता है। इस तरह यह वर्ग अपना जीवन यापन करता है। ेलाकडॉउन के समय में कितने दिन बचत के रूपयों से घर चला सकते है।
(अति मध्यम)ऐसे ही कुछ लोग 43 के तापमान में। गेहूं कटाई के पश्चात जो अनाज खेत में गिर जाता है,वही बीन रहे है खाने के लिए। इसी तरह ऑटो,टेम्पो,चलाने वाले लोग गांव से सब्जियां खरीद कर बेच रहे है। इसी तरह ी करने वाले,गोलगप्पे बेचने वाले,कुम्हार,घरों में काम करने वाले,अपना गुजारा मुश्किल से कर पा रहे है। साथ ही ऐसे मजदूर जो दूसरे गांव से शहरों में बसे हुए है। यह वर्ग शहरो में रास्तों के किनारों पर खाने व अन्य वस्तुओं के ठेले लगाते है। कई बार जिनका राशन कार्ड भी नही बना हुआ है। ऐसे लोगो को राशन भी नही मिल रहा है। यह वर्ग किसी भी तरह की आपदाओं में सबसे अधिक परेशानियों का सामना करता है।
बड़े शहरो की चकाचोंध ग्रामिण व छोटे शहरो के लोगो को, हमेशा से ही आकर्षित करते आ रहे है। बड़े शहरवासियों का रहन-सहन चमक-धमक आकर्षण का केंद्र रहा है। इसी आकर्षण के कारण लोग अपना गांव व घर छोड़ कर शहरो में बस रहे है। लेकिन गांव वालो को ये कौन समझाएं, कि हर चमकती वस्तु सोना नही होती है। शहरो में चमक-दमक तो है, पर मानवता नही है। शहरो में आस-पड़ोस वाले भी एक दूसरे को नही जानते है। पड़ोस में कौन भूखा है? कौन बीमार है? इससे किसी कोई लेना देना नही है। बड़े शहरो में अधिकतर लोग पत्थर दिल हो जाते है। इस संकट काल में भी लोग एक दूसरे की मदद नही कर रहै है। मकान मालिक किराये के लिए परेशान कर रहा है, तो किराना वाला उधार नही दे रहा है। हमारे धर्म व संस्कृति में कहा जाता है, कि पड़ोसी को कभी भूखा नही सोने देना चाहिए। मतलब उसकी हमेशा मदद करना चाहिए। कहने को तो हमारा देश विकास की ओर निरंतर बढ़ रहा है। क्या यही हमारा विकास है? हमारे समाज का ये फर्ज नही बनता है कि हम हमारे आस-पड़ोस की मदद करे। आज हजारो गरीब लोग पेदल,ट्रकों में,सायकलो पर,हजारो मील चल रहे है। उनको रास्ते में खाना पानी भी नसीब नही हो रहा है। इस विकट स्थिति में आखिर क्यों लोगो को इस तरह जाना पड़ रहा है? हमे सरकार को दोष देने के बजाय,कभी कभी स्वयं के गिरहबान में भी झांक कर देखना चाहिए। कहीं हम अपनी मानवता तो नही भूल गए?

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