कपटी चीन से सतर्कता ही हमारी सुरक्षा हैं
–पंडित मुस्तफा आरिफ
भारत के अडिग व आक्रामक रुख से विचलित चीन सकारात्मक रवैया अपना हुए हैं और पंगा लेने के मूड में नहीं है। भारत के 20 जवानों की शहादत के बाद विदेशी मिडिया ने खुलकर इस बात को पेश किया है। यहीं वजह की भारत से प्रत्यक्ष युद्ध में उलझनें के बजाय वो पहले पाकिस्तान और अब नेपाल व बंगला देश के कंधों पर बंदूक चला रहा है। नेपाल के संशोधित नक्षे पर नेपाली राष्ट्रपति की मोहर लगने के बाद अब उसने बंगला देश से आयातित 97% वस्तुओं पर आयात शुल्क हटा कर बंगला देश को साधने का नया पेतरा अपनाया है। 2014 में सत्ता संभालने के बाद प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की सरकार ने एलएसी के निकट वाले क्षेत्र में बुनियादी सुविधाओं के निर्माण का जो अभूतपूर्व कार्य किया है, बस वहीं चीन की बोखलाहट की मुख्य वजह है। हाल ही कि सीमा पर झङप इसी बोखलाहट का एक अंग है, जिसमें भारत के 20 निहत्थे सैनिक शहीद हो गये। चीन द्वारा आक्रमण के लिए उपयोग में लाई गई लोहे की कंटीली रोडो का जवाब हमारे बहादुरों ने जिस प्रकार दियें, उसने चीनियों को ये आभास करा दिया है कि भारत हर मोर्चे पर हर प्रकार से चीन को माकूल जवाब देने में सक्षम हैं। “आयरन कर्टेन” की नीति के लिए प्रसिद्ध चीन इस खबर को छिपा रहा है कि उसके कितने सैनिक शहीद और हताहत हुए हैं। लेकिन ये तय है कि 1962 में माओ की अपेक्षा जीनपींग को जवाब देने में भारत की सरकार और सेना दोनो अधिक शक्तिशाली व सक्षम हैं।।।
हाल ही में सर्वदलीय बैठक में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने ये स्पष्ट कर दिया है न तो कोई हमारे क्षेत्र में घुसा और न ही किसी ने हमारी चौकी पर कब्जा किया है। विपक्षी दलों में विशेषकर कांग्रेस ने भी ऐसी कोई बात नहीं की है। कांग्रेस का खास दबाव ये जानने की कोशिश है कि हमारे सैनिक निहत्थे क्यूँ थे, जिसकी वजह से 20 सैनिकों को जान से हाथ गंवाना पङा। इस आरोप का जो जवाब विदेश मंत्री श्री जयशंकर ने दिया है उसके अंतर्गत 1996 से 2005 के मध्य भारत सरकार द्वारा लिए गए नीतिगत निर्णय की वजह से दोनो देशो की सेनाएं एलएसी पर निहत्थी तैनात होती है। स्पष्ट है कि उपरोक्त वर्षो में केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी और निर्णय उसी समय लिये गयें। श्रीमती सोनिया गांधी और राहुल गाँधी को इस प्रश्न को उठाने से पहले राजीव गांधी के प्रधानमंत्री काल में उनके द्वारा किए गए उस मनमाने और सुरक्षा एजेंसियों की सलाह की अनदेखी कर लिये गये उस निर्णय की भी समीक्षा करना चाहिए जिसमें श्रीलंका में तैनात 1200 से अधिक सैनिकों को अपने प्राणों की आहुति देना पङी। इसमें से 200 की मृत्यु तो एक ही दिन में जाफना यूनिवर्सिटी में स्थित एलटीटीई मुख्यालय पर कब्जा करने के प्रयास में हुईं, जहां किसी लोकल सपोर्ट और सटीक इंटेलिजेंस के बगैर हमारे सैनिकों को एयर ड्राप किया गया और वे एलटीटीई का आसान शिकार हो गयें। एलटीटीई के लङाके स्थानीय लोग थे जिन्हें वहां की एक एक सङक, गली व जंगलों की जानकारी थी। जबकि हमारे सैनिक वहां पर नये थे, इसके उपरान्त श्रीलंका की सेना ने भी उनके साथ असहयोग किया। इसके अतिरिक्त हाल ही में मोदी जी की सर्वदलीय बैठक पर भी सवालिया निशान लगाएँ गये। राष्ट्रीय एकता में इस प्रकार के विवादों को आपत्तिजनक बताते हुए आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री ने कहा कि में बैठक को लेकर सोची समझ कर पैदा किए गए विवाद से दुखी हूँ। यह वक्त अपनी सशस्त्र बलों के साथ एकता दिखाने का है ना कि गलतियाँ ढूंढ कर उंगली उठाने का।।।
आज भारत आंतरिक और बाहरी दोनो मोर्चों पर चीन के कोरोना और चीन की सेना से डट कर मुकाबला कर रहा है। ऐसे में राष्ट्रीय एकता शक्ति सबसे बङा संबल है। सारे किंतु परंतु को तिलांजली देकर आज हमें एक जुटता की जरूरत है। कोविड 19 के आगमन से पूर्व प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी को विपक्ष जिन उपमाओं से नवाजता था, वो सब नदारद है। आबादी के मान से अगर तुलनात्मक अध्ययन किया जाए तो श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत ने कोविड पर नियंत्रण पाने में सराहनीय प्रयास किये है। यहीं वजह कि छुट पुट आरोपों को छोड़कर विपक्ष इस मामले में इतना मुखर नहीं रहा। चीन से सीमा विवाद विश्व स्तर पर चीन की कोरोना को लेकर जो दुर्गति हुई है उसकी चिड़चिड़ाहट मात्र हैं। इसके विपरीत भारत को जो विश्व स्तरीय समर्थन व प्रशंसा मिली है उससे उत्पन्न ईर्ष्या का भाव भी कहीं न कहीं चीन को दुखी कर रहा है। यहीं वजह है कि चीन का सरकारी मुखपत्र ग्लोबल टाईम्स भारत की खुली खुली आलोचना से बच रहा है। विश्व के समाचार पत्र भी ये आभास दे रहैं है कि चीन अभी आक्रामक होने के मूड में नहीं है। इनसे अधिक मुखर तो कांग्रेस दिख रहीं हैं, जिसके विरोध से ऐसा लगता है कि विरोध की परिभाषा अभी कांग्रेस को सीखना होगी, निश्चित रूप से अटलजी को द्रोणाचार्य मानने पर ही इसकी पूर्ति संभव है।।।
चीन के समग्र विरोध की आज राष्ट्रव्यापी आवश्यकता है। 1962 के चीन युद्ध के समय में सिर्फ 12 वर्ष का था, तब की भारतीय एकता के परिदृश्य आज भी मेरे मन मस्तिष्क पर अंकित है। सारा राष्ट्र एकता के एक सूत्र में बंधा हुआ था। देश की जनता का मनोबल बङाने का जिम्मा साहित्यकारों और कवियों ने लिया था, वीर रस के कवियो ने वो जादू किया था कि देश का बच्चा माओत्से तुंग से नफरत करने लगा था। लता मंगेशकर का संसद भवन में पेश अश्रुपूरित राष्ट्रीय आव्हान गीत ऐ मेरे वतन के लोगों जरा आंख में भर लो पानी, हर भारतीय को भाव विभौर कर रहा था और भैरव भारती का ये आव्हान भारत के प्यारों जागो सोए सितारों जागो, बेरी दुआरे आए तुम सर उतारो जागो जन मानस को ऐसे आक्रोशित कर रहा था कि यदि एक भी दुश्मन सामने आ जाये तो कच्चा चबा जाएं। आज इन साहित्यकारों गीतकारों कवियों को फिर से जागृत होने का आव्हान भारत माता कर रहीं हैं। व्यवहारिक दृष्टि से देखा जाए तो ये सच है कि भारतीय बाजार से चीनी सामानों का हटा पाना एक दुरूह कार्य है, छोटी से छोटी दुकान से लेकर बङी से बङी परियोजनाओं में चीन का हस्तक्षेप हैं, पर्याय की उपस्थिति के बिना इसे नेस्तनाबूत करना आसान नहीं है। लेकिन राष्ट्र और राष्ट्रीयता के सामने हर असंभव संभव है। 1962 के चीन के युद्ध के दौरान भारत की वीरांगनाएँ अपने स्वर्ण आभूषण सहर्ष भारत माता के श्रीचरणो में अर्पित कर रही थी। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक और मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के संरक्षक डाक्टर इंद्रेश कुमार ने आव्हान किया है कि हम सब भारतीय मिलकर चीन की आर्थिक शक्ति को तोङने का पूरा प्रयास करें। हर व्यक्ति अपने स्तर पर चीनी सामान का बहिष्कार करें और कोई भी भारतीय व्यापारी चीनी सामान न बेचे, कोई भी ग्राहक चाहे वो किसी भी जाती धर्म या भूगोल का हो चीनी माल न खरीदें। हमारे घरों में जो भी चीनी सामान है, हम उसका दुरुपयोग धीरे-धीरे बंद करें। श्री इंद्रेश कुमार ने अपील की है कि आओ हम सब मिलकर चीनी सामान का उपयोग बंद कर के असूरी चीन को हर तरह से हराकर विश्व को शांतिमय बनाएं।।।
चीन जितना शक्तिशाली दिख रहा है, वास्तव में उतना शक्तिशाली हैं नहीं। दुनिया का हर देश कोरोना का रोना रो रहा है, और चीन के विरूद्ध सभी लाम बंद है। चीन अब विश्व भर में “कपटी” चीनी के नाम से जाना जाने लगा है। 2014 में सत्ता में आने के बाद श्री नरेन्द्र मोदी की चीनी राष्ट्रपति शी जीनपींग से 18 मुलाकात हो चुकी है और वे पांच बार चीन के दौरे पर गयें हैं। पिछले साल महाबलिपुरम में अनौपचारिक मुलाकात हुई थी। कुल मिलाकर 1993 के बाद से दोनो देशो के बीच कई द्विपक्षीय समझौते और प्रोटोकॉल को लेकर बातें हुई ताकि सीमा पर शांति बनीं रहैं। लेकिन चीन का इतिहास हैं कि उसकी कथनी और करनी में अंतर हमेशा रहा है। उस पर भरोसा करना अपने आपको छलावा देना है। भारत से सीमा विवाद के अलावा वियतनाम और हांगकांग के साथ ही अमेरिका सहित विश्व के अनेक शक्तिशाली देश हैं, जिससे चीन के रिश्ते किसी न किसी वजह से बिगङे हुए हैं। अभी-अभी आस्ट्रेलिया को चीन ने आर्थिक प्रतिबंध की धमकी देकर डराने का प्रयास किया है, परंतु आस्ट्रेलिया अविचलित है। साउथ चायना मॉर्निंग पोस्ट ने नसीहत दी है कि चीन एक बङे देश की तरह सकारात्मक बर्ताव भारत के साथ करें। कोई कुछ भी कहता रहै कपटी चीन छल कपट के रास्ते पर ही चलेगा। वर्तमान में विद्यमान परिस्थितियों के मद्देनजर नजर चीन पर अविश्वसनीयता और कपटी की मोहर लगी हुई है, इस कसौटी पर भारत कि विश्वसनीयता और शक्तिशाली नेतृत्व भारत की पूंजी है। इसके साथ ही एकता व अखंडता का जन समर्थन जुङ जाए तो सोने में सुहागा हो जाएं। आने वाला समय में संपूर्ण विश्व भारत को आर्थिक रूप से शक्तिशाली शक्ति के रूप में देख रहा है, ये उपलब्धि तभी संभव है जब हम सब धर्म जाति वर्ग की विभिन्नता को भूलकर भारत को मजबूत बनाने में जुट जाएं।