आज होगा तय, निजता का अधिकार ‘मौलिक अधिकार’ है या नहीं
नई दिल्ली,24 अगस्त (इ खबर टुडे )। राइट टू प्राइवेसी यानी निजता का अधिकार को लेकर सुप्रीम कोर्ट गुरुवार 24 अगस्त को अहम फैसला सुनाएगा। कोर्ट यह फैसला सुनाएगा कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है या नहीं? इसके लिए सुनवाई पूरी होने के बाद दो अगस्त को शीर्ष अदालत ने फैसले को सुरक्षित रख लिया था।
नौ जजों की संवैधानिक पीठ में इसकी सुनवाई हुई थी, जिसकी अध्यक्षता चीफ जस्टिस जेएस खेहर कर रहे हैं। बताते चलें कि यदि सुप्रीम कोर्ट निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार मानता है, तो इसके बाद एक अलग बेंच गठित की जाएगी। ये बेंच आधार कार्ड और सोशल मीडिया में दर्ज निजी जानकारियों के डेटा बैंक के बारे में फैसला लेगी। जानते हैं क्या है पूरा मामला और इस पर अभी तक क्या हुआ है…
– दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा 23 सितंबर 2016 को दिए गए आदेश को चुनौती देने वाले मामले को सुन रहा है, जिसमें हाई कोर्ट ने व्हाट्सएप को अपनी नई गोपनीयता नीति को खत्म करने की इजाजत दी थी।
– हालांकि, अदालत ने फेसबुक या किसी अन्य संबंधित कंपनी को 25 सितंबर 2016 तक एकत्र किए गए अपने यूजर्स के डेटा को साझा करने से इसे रोक दिया।
– नौ न्यायाधीशों की संविधान पीठ के सामने मामले की सुनवाई 19 जुलाई को शुरू हुई और 2 अगस्त को पूरी हुई थी। दो सप्ताह तक चली सुनवाई के बाद शीर्ष अदालत ने 2 अगस्त को फैसला सुरक्षित रखा था।
– आधार योजना की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए कहा गया था कि इससे गोपनीयता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन होता है, जिसे तीन जजों की बेंच ने संदर्भित किया था।
– याचिकाकर्ताओं में कर्नाटक उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश केएस पुट्टास्वामी, बाल अधिकार संरक्षण के राष्ट्रीय आयोग के फर्स्ट चेयरपर्सन और मैगसेसे पुरस्कार विजेता शांता सिन्हा, नारीवादी शोधकर्ता कल्याणी सेन मेनन और अन्य शामिल थे।
– केंद्र ने 1954 के दो फैसले (आठ न्यायाधीशों द्वारा) और 1962 (छह न्यायाधीशों द्वारा) दिए गए फैसले का हवाला देते हुए कहा था कि गोपनीयता का अधिकार मौलिक अधिकार नहीं था। केंद्र ने तर्क दिया था कि सत्तर के दशक के मध्य तक दो या तीन न्यायाधीशों की बेंच ने कई फैसलों में कहा था कि गोपनीयता का अधिकार मौलिक था।
– 1954 और 1962 के फैसले सही थे या नहीं और राइट टू प्राइवेसी का अधिकार मौलिक अधिकार है या नहीं, इसकी जांच के लिए नौ न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने मामले की सुनवाई की।
– सुनवाई के दौरान पाया गया कि केंद्र और भाजपा शासित महाराष्ट्र और गुजरात सरकार ने कहा कि गोपनीयता का अधिकार मौलिक अधिकार नहीं था।
– पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस और कर्नाटक, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, पुदुचेरी में कांग्रेस की सरकारों का दावा है कि गोपनीयता का अधिकार एक मौलिक अधिकार था।
– यूनीक आईडेंटिफिकेशन अथॉरिटी ऑफ इंडिया (UIDAI) ने भी कहा है कि गोपनीयता का अधिकार मौलिक अधिकार नहीं है। लोगों से एकत्र किए गए डाटा (उनके आईरिस स्कैन और उंगलियों के निशान) को सुरक्षित रखने के लिए पर्याप्त सुरक्षा उपाय हैं।
– पहले नौ न्यायाधीशों की बेंच यह फैसला करेगी कि गोपनीयता का अधिकार मौलिक अधिकार है या नहीं। इसके बाद एक नियमित बैंच आधार स्कीम की वैधता की चुनौती के मामले की सुनवाई करेगी।