संगठन के प्रति समर्पण और मित्रता की मिसाल थे वे
-तुषार कोठारी
नब्बे के दशक में रतलाम के आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में मुस्लिम असामाजिक तत्वों का जबर्दस्त आतंक था। शहर से सटे ग्राम नगरा और अन्य गांवों के किसान इन गुण्डों से परेशान थे। अवैध धन वसूली,जमीनों पर कब्जा कर लेना और कृषियंत्र छीन लेने जैसी घटनाएं सामान्य बात थी। ग्राम नगरा के दो छात्र जगदीश पाटीदार और दिलीप सूर्या ने संघकार्य से जुड कर इन घटनाओं का प्रतिकार करना प्रारंभ किया। आतताईयों का प्रतिकार और संघ कार्य के माध्यम से संगठन बनाने का उनका कार्य लगातार चलता रहा।इसी क्रम में जगदीश पाटीदार और दिलीप सूर्या दोनो ही संघकार्य हेतु अधिक से अधिक समय देने के उद्देश्य से कुछ समय के लिए विस्तारक भी निकले। दिलीप जी विद्यार्थी परिषद के विस्तारक बने जबकि जगदीश जी संघ के विस्तारक बन कर आलोट गए। कुछ समय तक विस्तारक रहने के बाद पुन: नगरा लौटे जगदीश जी ने पुन: ग्रामीण क्षेत्रों में संगठन का कार्य प्रारंभ किया। संगठन की राह में कठिन संघर्ष था। सामान्य ग्रामीणों के मन में गुण्डों के प्रति भय था। समाज स्वयं इन असामाजिक तत्वों का प्रतिकार कर सके इसके लिए लोगों के मन में बैठे भय को दूर करना आवश्यक था। इस भय को दूर करने के लिए जगदीश जी को स्वयं ही बदमाशों और गुण्डों से लडना पडा। धीरे धीरे स्थितियां अनुकूल होने लगी। असामाजिक तत्वों में अब भय पनपने लगा और समाज की सज्जन शक्ति जागृत होने लगी। संघकार्य का विस्तार भी होने लगा। इसी क्रम में जगदीश जी को जिले के शारीरिक प्रमुख का दायित्व भी सौंपा गया।
उधर दूसरी ओर विद्यार्थी परिषद के विस्तारक बनकर गए दिलीप जी सूर्या एक बडी दुर्घटना के शिकार हो गए। इस दुर्घटना से उनका पूरा शरीर लकवाग्रस्त हो गया। अपने मित्र की इस स्थिति ने जगदीश जी को भीतर तक द्रवित कर दिया। दिलीप जी की चिकित्सा के लिए जगदीश जी ने अनथक प्रयत्न किए। जहां कहीं भी दिलीप जी के स्वस्थ होने की उम्मीद जगती वे उन्हे लेकर जाते,लेकिन ईश्वर को शायद यह स्वीकार नहीं था। सारे प्रयत्न निष्फल होते गए। दिलीप जी के स्वास्थ्य में कोई सुधार नहीं हो रहा था। इसके बाद भी न तो जगदीश जी ने हार मानी और ना ही दिलीप जी जिजीविषा कम हुई। दोनो मित्र परिस्थितियों से संघर्ष करते रहे।
मित्र की सेवा और समाज संगठन का कार्य दोनो ही में जगदीश जी अनवरत लगे हुए थे। संगठन के कार्यो में बढती सफलता राष्ट्रविरोधी व्यक्तियों को स्वीकार नहीं थी। आखिरकार दिनांक ३१ अक्टूबर २००० के दिन जब जगदीश जी अपनी मोटर साइकिल से नगरा से रतलाम आ रहे थे,दो गुण्डों ने तलवार से उनपर हमला किया और उनकी नृशंस हत्या कर दी। संगठन और मित्रता को समर्पित एक दीप को बुझा दिया गया।
जगदीश जी की हत्या का समाचार जंगल में आग की तरह फैला और पूरे जिले में दु:ख और रोष फैल गया। पूरा रतलाम बन्द हो गया। आक्रोशित हिन्दू समाज की प्रतिक्रिया भी सामने आई। जनाक्रोश को देखते हुए पुलिस ने हत्या के षडयंत्र में शामिल छ: राष्ट्रविरोधी तत्वों को गिरफ्तार कर लिया।
जनसामान्य में जगदीश जी की हत्या को जो प्रतिक्रिया हुई वह तो थी ही,एक दूसरी प्रतिक्रिया उनके अनन्य मित्र दिलीप सूर्या की भी सामने आई। सड़क दुर्घटना के कारण रीढ की हड्डी में आए विकार से लकवाग्रस्त हुए दिलीप जी के लिए जगदीश की हत्या का समाचार इतना दिल दहलाने वाला था कि वे यह सुनते ही अपनी शैय्या पर उठ बैठे। दिलीप जी के अनन्य मित्र जगदीश जी जो कार्य अपनी सेवा से पूरी नहीं कर पाए वह उनकी मृत्यु से सिध्द हो गया। दिलीप जी का कमर से उपर का शरीर अब पुन: सक्रीय हो गया था।
जगदीश पाटीदार चले गए,उनके द्वारा छोडे गए कार्य की कमान दिलीप जी ने सम्हाल ली। जिस अवस्था में बडे बडे साहसी लोगों की हिम्मत जवाब दे जाती है,उस अवस्था में दिलीप जी अपने आधे शरीर और अदम्य इच्छाशक्ति के साथ संघकार्य में पुन: लग गए। अपनी ट्राईसिकल पर निरन्तर प्रवास करना और समाज जागरण करना यही उनकी दिनचर्या थी। वर्ष २००२ में हुए विशाल हिन्दू सम्मेलन में जब दिलीप जी अपनी ट्राईसिकल पर बदनावर से रतलाम पंहुचे तो देखने वाले उनकी इच्छाशक्ति को देखकर दंग रह गए। उसके बाद दिलीप सूर्या हर जगह सक्रीय रहे। बदनावर और रतलाम के सैंकडों गांवों में उनका जीवन्त सम्पर्क था। लकवाग्रस्त कमजोर शरीर भी उनकी अदम्य इच्छाशक्ति को कम नहीं कर पाया था। अत्यधिक शारीरिक कष्ट सहते हुए भी उनके चेहरे पर कभी पीडा के भाव परिलक्षित नहीं होते थे। वे सदा मुस्कुराते रहते थे। अपने अंतिम दिनों में जब उन्हे चिकित्सालय में भर्ती कराया गया,तब भी किसी को यह एहसास नहीं हो सका कि उन्हे कितना कष्ट हो रहा है। अपने आधे लकवाग्रस्त कमजोर शरीर के साथ वे निरन्तर दस से भी अधिक वर्षों तक संगठन कार्य में जुटे रहे। उनकी इसी जिजीविषा को देखकर उन्हे नागरिक आपूर्ति निगम का सदस्य भी मनोनीत किया गया था। ये दिलीप जी ही थे जो निगम की बैठकों में भाग लेने के लिए बदनावर से भोपाल तक जाने में कोई संकोच नहीं करते थे। उनकी अदम्य इच्छाशक्ति समाप्त नहीं हुई लेकिन लकवे के आघात से जर्जर हो चुके शरीर ने अन्तत: २० जनवरी २०११ को उनका साथ छोड दिया। दोनो मित्र समाज कार्य के कण्टकाकीर्ण मार्ग पर चलते हुए एक के बाद एक अनन्त यात्रा पर चले गए। निश्चित ही इस अनन्त यात्रा में दोनो मित्र अब एक साथ होंगे और अपने द्वारा किए गए जनजागरण के सुपरिणामों को स्वर्ग से देखते होंगे।
ग्राम विकास के नए कीर्तिमान
जिन गावों में कभी भय और आतंक का वातावरण था,जगदीश पाटीदार और दिलीप सूर्या जैसे कर्मठ कार्यकर्ताओं के समर्पण और बलिदान से अब वहां राष्ट्र कार्य में रत रहने वालों की बडी संख्या एकत्रित हो चुकी है। अब इन गांवों में संगठन के माध्यम से ग्राम विकास की नई उपलब्धियां अर्जित की जा रही है। जगदीश जी पुण्यस्मृति में नगरा में प्रतिवर्ष रक्तदान शिविर का आयोजन किया जाता है। अभी हाल में संपन्न हुए रक्तदान शिविर में सौ यूनिट रक्त एकत्रित किया गया। गांव में अन्य गतिविधियां भी सुचारु रुप से संचालित की जा रही है। इसी तरह दिलीप जी की स्मृति में बदनावर में एक उत्कृष्ट गौशाला का निर्माण किया जा रहा है।