राग रतलामी-पंजा पार्टी की नई ताजपोशी से सियासती हलचल तेज,लाकडाउन में कंट्रोलियों के मजे
-तुषार कोठारी
रतलाम। कोरोना के लाक डाउन में सियासत भी लाक डाउन हो गई थी। तमाम सियासतदान खुद ब खुद होम क्वारन्टीन में चले गए थे। लेकिन वक्त गुजरते गुजरते सियासत में हलचल होने लगी। इधर लाक डाउन कमजोर होने लगा और उधर पंजा पार्टी में नए नेता की ताजपोशी हो गई। पंजा पार्टी ने मामा को बिदा करके अब भिया को शहर की बागडोर सौंप दी।
पंजा पार्टी की बागडोर सम्हालने के लिए लम्बी लाइन लगी हुई थी। कई सारे छुटभैये उम्मीद लगाए बैठे थे कि इस बार पंजा पार्टी पर उनका कब्जा हो जाएगा,लेकिन भिया सबको पछाडते हुए आगे निकल गए और सीधे दिल्ली से आए हुक्मनामे से भिया की ताजपोशी हो गई।
भिया भी लम्बे वक्त से जुगाड में थे कि पार्टी में किसी सही जगह पर फिट हो जाए,लेकिन उनकी किस्मत ने भी तब जोर मारा,जब सरकार जा चुकी थी। लेकिन फिर भी भिया के आने से मरती हुई पंजा पार्टी में थोडी सी जान नजर आने लगी है। इसके पहले तक पंजा पार्टी कहीं भी नजर नहीं आती थी,लेकिन जैसे ही भिया ने पंजा पार्टी की बागडोर सम्हाली,फौरन पार्टी की हलचल नजर आने लगी। इधर भिया की घोषणा हुई और उधर भिया बिजली वालों से भिडने के लिए पंहुच गए। बिजली वालें इन दिनों लोगों को बेवजह भारी भरकम बिल दे रहे हैैं। भिया ने बिजली महकमे में पंहुच कर उन्हे ज्ञापन दे मारा। पंजा पार्टी के कई सारे पुराने नेता भी उनके साथ थे।
नई ताजपोशी के बाद अब पंजा पार्टी के लोगों में फिर से नई उम्मीदें करवटें ले रही है। अब भिया को नए सिरे से जमावट करना है इसलिए पंजा पार्टी के तमाम छोटे बडे नेता उनके चक्कर लगाने लगे है ताकि जिले में नहीं तो किसी ब्लाक में तो फिट हो ही जाए। जो भिया के आने से खुश नहीं है वो भी सक्रिय हो रहे हैैं ताकि भिया की बादशाहत को कमजोर किया जा सके।
पंजा पार्टी की नई ताजपोशी फूलछाप वालों के लिए भी महत्वपूर्ण है। पंजा पार्टी में इससे पहले जिनकी भी ताजपोशी हुई थी,उनमें से ज्यादातर हवा हवाई नेता हुआ करते थे,उनकी जमीनी पकड नहीं के बराबर थी,लेकिन इस बार मामला कुछ अलग है। भिया की जमीनी पकड ठीक ठाक है और आने वाले दिनों में जब नगर निगम के चुनाव होंगे तो जमीनी पकड वाले नेता ही फूल छाप को चुनौती देने में सक्षम रहेंगे।
लाक डाउन में कंट्रोलियों के मजे
लाक डाउन में हर कोई परेशानी मे रहा,लेकिन कुछ लोग ऐसे भी थे जिन्होने लाक डाउन में जमकर मजे लिए। इनमें कंट्रोलिये भी शामिल है। सरकार ने गरीबों के लिए तीन महीने का मुफ्त राशन देने की व्यवस्था की और इस योजना में कंट्रोलियों की चान्दी हो गई। सरकार ने गरीबों को तीन महीने का राशन देने की योजना बनाई। तीन महीने के राशन में गेंहू,चावल और दाल दी जाना थी। छत्तीसगढ से चावल मंगाया गया था। जिले में जितना चावल आया वह पूरा का पूरा कंट्रोलियों के पास पंहुचा दिया गया,ताकि गरीबों को चावल मिल सके। कंट्रोलिये समझदार निकले,सरकार ने उन्हे तीन महीने का चावल दिया था,उन्होने गरीबों को एक एक महीने का ही चावल दिया,बाकी का चावल सम्हाल कर रख लिया। उन्हे पता था कि मालवा के लोग ज्यादा चावल नहीं खाते। दो महीने का बचा हुआ चावल अब कंट्रोलिये मजे से बाजार में बेच रहे है। जो गरीब चावल मांगने आता है उसे कह दिया जाता है कि चावल तो समाप्त हो गया।
बारदान का वरदान
कंट्रोलियों ने चावल के मजे लिए तो राशन महकमे को बारदान का वरदान मिल गया। गेंहू की सरकारी खरीद चली तो किसानों ने जमकर गेंहू तौला। गेंहू की इतनी आवक हो गई कि बारदान कम पड गए। बारदान की कमी से गेंहू की खरीद पर असर पडने लगा। समस्या से निपटने के लिए मैडम जी ने देर रात को अफसरों की बैठक ली। बैठक में तय हुआ कि फौरन बारदान की समस्या दूर करना है तो कंट्रोलियों की मदद ली जाए। राशन महकमे को आदेश दिया गया कि हर कंट्रोल से पचास बारदान इकट्ठे किए जाए। राशन महकमे के अफसरों ने कंट्रोलियों को फरमान सुना दिया। कंट्रोलियों ने ताबडतोड बारदान इकट्ठे कर लिए। हर दुकान से पचास बारदान आए,तो सारी दुकानों के मिलाकर हजारों में पंहुच गए। उधर फ्रैश बारदान भी मंगाए गए थे। जब फ्रैश बारदान आ गए तो कंट्रोल वाले बारदान की जरुरत नहीं रही। ये हजारों बारदान अब राशन महकमे वालों के काम आ रहे हैैं। चौंकिए मत,बारदान की कीमत कम नहीं होती। हजारों बारदान की लाख रु.तक जा पंहुचती है। राशन महकमे वालों को बैठे ठाले कमाई मिल गई।