November 15, 2024

राग-रतलामी:इधर दावेदारों की भरमार,उधर दावेदारों की तलाश

-तुषार कोठारी

प्रदेश के शहर गांव,गली मोहल्लों और चौराहों पर अब चुनावी चर्चाएं जोर पकडने लगी है। एससी एसटी एक्ट,दलितों की दूरी और सवर्णों की नाराजगी को लेकर लोग चुनावी गणित लगा रहे है। रतलामी बाशिन्दे भी चुनावी गणित लगा रहे हैं,लेकिन यहां की गणित इस बार कुछ अलग सी है। कमल वाली पार्टी में ढेरों दावेदार है,लेकिन किसी का दावा जमता नजर नहीं आ रहा। दावेदारों को भी पता है कि उनकी दाल गलने वाली नहीं है। स्टेशन रोड वाले भैय्याजी का मैनेजमेन्ट सब तरफ हावी है। उन्हे परेशानी है,तो सिर्फ नगर सरकार से। नगर सरकार भी कमल वाली पार्टी की ही है,लेकिन नगर सरकार की मुखिया मैडम की नाकामी का असर भैयाजी को परेशान कर रहा है। मैडम की नाकामी इस हद तक जा पंहुची है कि बात नगर से नरक तक पंहुच गई है। जो निगम नगर का होता था वही अब नरक का कहा जाने लगा है। हांलाकि शहर में पहली बार इतने काम होते नजर आए है। बरसों पुरानी मेडीकल कालेज की मांग पूरी हो चुकी है। नए बनने वाले डाक्टर यहां पढने भी आ चुके है। काम ढेरों हुए है और शहर के बाशिन्दे इससे खुश भी है। यही वजह है कि भैय्याजी फिर से मैदान में उतरने के लिए कमर कस कर तैयार है।
लेकिन दूसरी तरफ पंजे वालों का हाल बेहद बुरा है। इधर तो दावेदारी करने वाले ही नदारद से है। व्यापम का राग अलापते झूमरु दादा आए तो धूमधाम से थे,लेकिन माहौल को देखकर अब ठण्डे पडने लगे है। पहले के चुनावों में पंजे की तरफ से हार दर्ज करवा चुके लोग भी दावेदारी करने को राजी नहीं है। उन्हे चुनाव के दौरान पार्टी फण्ड से होने वाली कमाई होने की भी उम्मीद नहीं रही है। इसके अलावा पंजे वालों को बडे नेताओं पर भी कोई भरोसा नहीं है। दिग्गी से लेकर श्रीमंत तक,किसी में भी वो जादू नजर नहीं आ रहा,जो जीत दिलवा सके। बहरहार शहर का सियासी सूरते हाल इन दिनों इसी तरह का है। पंजे वालों के पास कोई काम नहीं है। फूल वाले तरह तरह के कामों में व्यस्त है। जिले में केवल शहर ही नहीं कमोबेश सभी सीटों की हालत यही है। दावेदारों की तादाद ना के बराबर है और जो खुद को दावेदार बताते है,उन्हे लोग मानने को तैयार नहीं। यही वजह है कि रतलामी बाशिन्दे,शहर की चर्चा कम करते है और राज्य की चर्चा अधिक ।

नई इमारत में कमरों की तलाश

जिले का निजाम अब तक तो रियासत के जमाने में बनी इमारत से चला करता था। लेकिन अब शानदार चमचमाती नई इमारत तैयार हो चुकी है और बडी मैडम जी ने पूजा पाठ करके इसमें प्रवेश भी कर लिया है। छुट्टियों के दिनों में सारे कर्मचारी,अपने अपने दफ्तरों का रेकार्ड पोटलों में बान्ध कर नई इमारत में ले जाने की तैयारियां करते रहे। नई इमारत में पहले तो साहबों ने अपनी वरिष्ठता के क्रम से अपने कमरे चुन लिए। इनकी साज सज्जा भी करवा ली। फिलहाल बाबू लोग अपने लिए कमरे तलाश रहे है। हर बाबू चाहता है कि उसे ढंग ढांग का कमरा मिल जाए। नई इमारत में तबादले के चलते दफ्तरों के रुटीन काम ठप्प पडे है। धीरे धीरे नई इमारत में कामकाज जमेगा। लेकिन खतरा सिर्फ यही है कि इधर से उधर जाने में जो फाईलें इधर उधर हो जाएंगी,वो कैसे मिलेंगी…? इस चक्कर में कहीं लोगों का खर्चा ना बढ जाए।

बदल गए दुकानों के नाम

पुलिस महकमे के नए कप्तान के आने का असर है कि शहर की सारी आबकारी दुकानों के नाम ही बदल गए। पहले ये दुकानें शहर के चर्चित ग्रुपों के नाम पर थी। इन दुकानों के अहातों को रेस्टोरेन्ट का नाम देकर अहाते यथावत चल रहे थे। लेकिन नए कप्तान का असर है कि आजकल दुकानों पर उनके लायसेन्सी का नाम लिखा गया है और सारे रेस्टोरेन्ट बन्द हो चुके है। इस सबका बुरा नतीजा आबकारी महकमे के लोगों को भुगतना पड रहा है। उनकी कमाई में अच्छी खासी गिरावट आ गई है।

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