मध्यप्रदेश में जमीन पर नहीं उतर पाया गैर भाजपाई महागठबंधन
भोपाल,26 अक्टूबर (इ खबरटुडे)। मध्यप्रदेश में भाजपा को सत्ता से हटाने के लिए शुरू हुई गैर भाजपाई महागठबंधन की कवायद विधानसभा चुनाव के दौरान सिरे नहीं चढ़ पाई। वरिष्ठ समाजवादी नेता शरद यादव की पहल पर शुरू हुआ यह प्रयोग प्रदेश में सफल नहीं हो पाया। लोक क्रांति अभियान के तहत दस महीने तक सम्मेलन और मैराथन बैठकों के कई दौर चले, लेकिन प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस सहित बसपा-सपा ने एकजुटता के नाम पर घास नहीं डाली। कतिपय छोटे दल ही एकता का राग अलापते रहे।
मध्यप्रदेश में महागठबंधन के लिए जनवरी 2018 में प्रयोग के बतौर विपक्षी दलों को एक मंच पर लाने के प्रयास शुरू हुए थे। इसके लिए भोपाल के छोला दशहरा मैदान पर बड़ा कार्यक्रम भी हुआ, जिसमें विपक्षी दलों ने एकता की कसमें खाईं। कार्यक्रम में कांग्रेस नेताओं ने बढ़-चढ़कर भाग लिया, लेकिन उसके बाद विपक्षी नेताओं की एकजुटता जमीन पर नहीं उतर पाई।
उस कार्यक्रम में शरद यादव, डॉ. भीमराव आंबेडकर के प्रपौत्र प्रकाश आंबेडकर, तत्कालीन मप्र कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव, नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह, लोक क्रांति अभियान के संयोजक गोविंद यादव, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के गुलजार सिंह मरकाम सहित कई छोटे दलों के नेता भी मौजूद थे।
महागठबंधन से जुड़े सूत्र बताते हैं कि जनवरी से लेकर मई तक कांग्रेस के नेताओं ने इसमें पूरी दिलचस्पी दिखाई। सपा-बसपा से भी बात चलती रही। बाद में कांग्रेस ने धीरे-धीरे किनारा कर लिया, बसपा ने जब यह एलान कर दिया कि वह अकेले चुनाव लड़ेगी, उसके बाद कांग्रेस ने यही कहा कि हमारी बात चल रही है, लेकिन धरातल पर एकता की पहल साकार रूप नहीं ले पाई। लोक क्रांति अभियान के बैनर पर 30 सितंबर को सात दलों की बैठक हुई, लेकिन उसके बाद सपा और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी ने भी अलग रास्ता अख्तियार कर लिया। बैठकों के दौर 23 अक्टूबर तक चलते रहे।
खत्म नहीं हुई संभावनाएं
अभियान के संयोजक गोविंद यादव कहते हैं कि गैर भाजपा महासमूह बनाकर चुनाव लड़ने की संभावनाएं खत्म नहीं हुई हैं। विधानसभा चुनाव के तुरंत बाद आम चुनाव की तैयारी शुरू हो जाएगी। अभी भाकपा, माकपा, बहुजन संघर्ष दल, प्रजातांत्रिक समाधान पार्टी और लोकतांत्रिक जनता दल सहित पांच पार्टी एकजुट हैं। हम लोग साम्यवादी, समाजवादी और आंबेडकरवादी विचारधारा के आधार पर आगे बढ़ेंगे। मप्र में यदि महागठबंधन का विचार सफल होता तो 10 से 15 फीसदी वोट जो छोटे दलों में बंट जाता है, वह एकजुट हो जाता और दो तिहाई बहुमत से सरकार बनती, लेकिन कांग्रेस ने इसमें रुचि नहीं दिखाई।