पैंतालिस साल के जुनून ने बनाया उन्हे लाखों डाक टिकटों का संग्रहकर्ता,दुनियाभर का इतिहास और संस्कृति समाई है उनके कलेक्शन में
रतलाम,20 अगस्त (तुषार कोठारी / इ खबरटुडे)। विरासत में मिली संग्रह की प्रवृत्ति,कुछ नया और अनोखा करने का जज्बा और लगातार पैंतालिस साल का जुनून। जब ये सब मिल जाता है तब कहीं जाकर कोई शैलेन्द्र कुमार निगम देश के अग्रणी फिलैटेलिस्ट के रुप में स्थापित होता है। पिछले पैंतालिस सालों से दुनियाभर के डाक टिकट एकत्रित कर रहे शैलेन्द्र कुमार निगम के संग्रह में आज साढे तीन लाख से अधिक डाक टिकटों की पूंजी है। ये डाक टिकट महज स्टैम्प नहीं है,बल्कि ये दुनिया भर की विशीष्ट संस्कृतियों,विरासत और इतिहास को अपने आप में समेटे हुए है।
डाक टिकट संग्राहक अर्थात फिलैटैलिस्ट शैलेन्द्र कुमार निगम का अद्भूत और अनोखा संग्रह देखना और उसे समझना एक विशीष्ट अनुभव है। डाक टिकट और डाक की अन्य सामग्रियों के इस विशीष्ट संकलन को देखकर दुनिया की संचार व्यवस्था के विकास क्रम को बडे अच्छे से समझा जा सकता है। अपने संग्रह की जानकारी देते हुए श्री निगम ने बताया कि डाक टिकटों के संग्रह का यह शौक उन्हे अपने बडे भाईयों से विरासत में मिला है। वे पिछले करीब पैंतालिस वर्षों से निरन्तर डाक टिकटों का संग्रह कर रहे है। डाक टिकटों के संग्रह की उनकी भूख अब भी बरकरार है।
डाक व्यवस्था का इतिहास
विश्व और भारत की डाक व्यवस्था के इतिहास और डाक टिकटों की रोचक कहानी सुनाते हुए श्री निगम ने बताया कि वैसे तो डाक व्यवस्था की शुरुआत का श्रेय मुगल शासक शाहजहां को दिया जा सकता है,लेकिन इसकी व्यवस्थित शुरुआत ब्रिटेन में रौलेन्ड हिल ने 1835 में की थी। इसलिए विश्व में डाक टिकटों का जनक रौलेन्ड हिल को माना जाता है। फिलैटेली का पितामह स्टैनली गिब्सन को माना जाता है। जिन्होने वर्ष 1868 से दुनियाभर में छपने वाले डाक टिकटों का कैटलाग प्रकाशित करना प्रारंभ किया। डाक टिकट संग्रहण करने वालों के लिए ये कैटलाग अत्यन्त आवश्यक होता है। इस कैटलाग में प्रत्येक वर्ष दुनिया के प्रत्येक देश द्वारा छापे जाने वाले डाक टिकटों का विस्तृत विवरण दिया जाता है। फिलैटेली शब्द यूनानी भाषा के फिलातली से बना है जो यूनानी भाषा के फिलौस और अनेलस शब्दों से मिलकर बना है। जिसका अर्थ होता है रुचि व करमुक्त।
डाक टिकटों को संग्रहित करने के इस शौक ने श्री निगम को इस विधा का विशेषज्ञ बना दिया है। वे बताते है कि भारत में डाक व्यवस्था की शुरुआत 1879 में हुई,जब पहला पोस्टकार्ड छापा गया। देश में जारी हुए पहले पोस्टकार्ड की कीमत क्वार्टर आना थी और देशी रियासतें इस पर अपना सरचार्ज भी जोड देती थी। अंतर्देशीय पत्र की शुरुआत 1856 में हुई। श्री निगम के संग्रह में देश के पहले पोस्टकार्ड से लेकर आज तक की सभी प्रकार की डाक सामग्री है। उनके पास बडी संख्या में त्रुटिपूर्ण पोस्टकार्ड,अंतर्देशीय और लिफाफे भी है।
डाक टिकटों के उनके कलेक्शन में दुनिया के प्रत्येक देश के सभी प्रकार के डाक टिकट है। डाक टिकट सिर्फ कागज के ही नहीं होते। डाक टिकट प्लास्टिक,धातु और कपडे पर भी छापे जाते रहे हैं। श्री निगम के कलेक्शन में ऐसे सभी प्रकार के डाक टिकट मौजूद है। भारत में खादी के कपडे पर छापा गया महात्मा गांधी का दुर्लभ डाक टिकट भी उनके संग्रह की धरोहर है। उनके संग्रह में तिकोने,षट्कोणीय,अष्टकोणीय और गोल डाक टिकट भी है। श्री निगम बताते है कि विश्व का सबसे छोटा डाक टिकट जर्मनी द्वारा छापा गया है,जबकि सबसे बडा डाक टिकट श्रीलंका में छापा गया है। ये सभी टिकट उनके संग्रह में मौजूद है।
फिलैटेली-एक महंगा शौक
श्री निगम के मुताबिक,डाक टिकट संग्रहण विश्व भर में मान्यता प्राप्त लेकिन महंगा शौक है। शासकीय सेवा में रहते हुए श्री निगम ने अपनी सीमित आय के बावजूद इस शौक को न सिर्फ जीवित रखा बल्कि इस पर अपनी पसीने की कमाई के लाखों रुपए भी खर्च किए। उनका डाक टिकट संग्रह आज अनमोल है। इसकी कीमत आंकना संभव नहीं है। देश के डाक टिकट संग्राहकों ने फिलेटैली कांग्रेस आफ इण्डिया नामक संस्था भी बना रखी है। श्री निगम इसके उपाध्यक्ष भी रह चुके है। इसी तरह एक अन्य संस्था फिलैटैली फेडरेशन भी इस दिशा में काम कर रही है।
थीमैटिक कलैक्शन
श्री निगम बताते हैं कि जब संग्रह बडा हो जाता है,तो थीमैटिक संग्रह का महत्व होता है। उनके संग्रह में विभिन्न विषयों पर वर्गीकृत संग्रह है। उनके पास वर्तमान में पच्चीस से अधिक थीमैटिक कलैक्शन है। इनमें भारत के प्रधानमंत्री,भारत के राष्ट्रपति,भारत के भारत रत्न,चीन के नेता हो ची मिन्ह,सोवियत रुस के नेता लेनिन,महात्मा गांधी,स्वामी विवेकानन्द,रवीन्द्रनाथ टैगोर,क्रिसमस,पक्षी,फूल,तितली,नारे(उद्घोष),
यूनेस्को जैसे विभिन्न विषयों पर उनके पास हजारों स्टाम्प टिकट है। महात्मा गांधी पर देश विदेश में छपे पांच सौ टिकट उनके पास मौजूद है,इसी तरह लेनिन पर उनके पास करीब चार सौ डाक टिकट है। इन दिनों वे हिन्दू तीर्थस्थल,जैन धर्म और सरदार पटेल पर थीम बना रहे है।
इतिहास और संस्कृति दिखाते है डाक टिकट
श्री निगम के मुताबिक डाक टिकटों का संग्रह भी एक विशीष्ट प्रक्रिया से किया जाता है। सामान्य तौर पर लिफाफों से निकाले गए डाक टिकटों को इक_ा करने से अलग डाक टिकट संग्राहक दो तरह से टिकटों को संग्रहित करते है। बिना उपयोग में लाए गए,अर्थात जिनपर मुहर(सील) नहीं लगी होती,उन्हे मिन्ट कहा जाता है। जबकि उपयोग किए हुए अर्थात जिन पर सील(मुहर) लगी होती है,उन्हे यूज्ड टिकट कहा जाता है। श्री निगम के पास मिन्ट और यूज्ड दोनों प्रकार के टिकटों का कलैक्शन है। इसके अलावा डाक टिकट संग्राहकों को नए डाक टिकटों के प्रथम दिवस अनावरण और फस्र्ट डे कैन्सलेशन(प्रथम दिवस निरस्तीकरण) वाले टिकट डाक विभाग द्वारा उपलब्ध कराए जाते है। श्
री निगम के पास पिछले चालीस सालों में देश विदेश में जारी हुए डाक टिकटों के प्रथम दिवस आवरण और प्रथम दिवस निरस्तीकरण वाले करीब करीब सभी टिकट मौजूद है। प्रथम दिवस आवरण में डाक विभाग द्वारा डाक टिकट के सम्बन्ध में विस्तृत जानकारी दी जाती है। टिकट पर अंकित चित्र के सम्बन्ध में भी पूरी जानकारी इसमें होती है। यदि टिकट पर किसी ऐतिहासिक मन्दिर या इमारत का चित्र है,तो प्रथम दिवस आवरण में इस मन्दिर या ईमारत का पूरा इतिहास लिखा होता है।
प्रदर्शनी लगाने की इच्छा
डाक टिकटों का विश्व स्तरीय संकलन करने के बाद फिलैटैलिस्ट श्री निगम इनकी पदर्शनी लगाने की इच्छा रखते है। वे चाहते है कि डाक टिकटों के माध्यम से मिलने वाला ज्ञान जनसामान्य तक पंहुचे। उनके पास मौजूद विभिन्न विषयों के थीमैटिक कलैक्शन इसमें विशेष भूमिका निभा सकते है। हांलाकि ये एक खर्चीला काम है,इसलिए श्री निगम को किसी अच्छे प्रायोजक की तलाश है।