धर्मान्तरण करने वालों पर प्रकरण क्यो नहीं?
हिन्दूवादी संगठनों में पनपने लगा है आक्रोश
रतलाम,13 दिसम्बर (इ खबरटुडे)। शुक्रवार को स्थानीय लायंस हाल में बीमारियां ठीक करने के बहाने आदिवासियों के धर्मपरिवर्तन का मामला उजागर होने के बावजूद अब तक आरोपियों के विरुध्द कोई प्रकरण दर्ज नहीं किया गया है। पुलिस और प्रशासन जांच के नाम पर मामले को रफा दफा करने में जुटा हुआ है। पुलिस और प्रशासन के रवैये से आरएसएस समेत अन्य हिन्दूवादी संगठनों में आक्रोश पनप रहा है। इसके चलते आगामी दिनों में स्थिति विस्फोटक हो सकती है और रतलाम बन्द जैसे कदम उठाए जा सकते है।
उल्लेखनीय है कि मध्यप्रदेश में धर्मस्वातंत्र्य अधिनियम 1968 लागू है। इस अधिनियम की धारा तीन में किसी एक धर्म के व्यक्ति का धर्म बदलकर दूसरे धर्म में परिवर्तित करना तो अपराध है ही,इसके साथ ही धर्म परिवर्तन करने का प्रयास भी अपराध है। अधिनियम की धारा तीन स्पष्ट करती है कि किसी व्यक्ति के धार्मिक विश्वास को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तरीके से परिवर्तित करना दण्डनीय अपराध है। धारा तीन यह भी स्पष्ट करती है कि किसी व्यक्ति को धर्म बदलने के लिए किसी भी प्रकार का प्रलोभन देना अपराध है। इसमें किसी व्यक्ति की बीमारी दूर करने और नौकरी दिलाने जैसे प्रलोभन भी शामिल है। अधिनियम की धारा 4 में धर्म परिवर्तन के अपराध के लिए दण्ड का प्रावधान किया गया है। धारा चार के मुताबिक धर्मपरिवर्तन कराने के लिए दोषी व्यक्ति को एक वर्ष का कारावास या पांच हजार रुपए अर्थदण्ड या दोनो से दण्डित किया जा सकता है। धर्मस्वातंत्र्य अधिनियम की धारा 4 में यह भी प्रावधान है कि यदि धर्मपरिवर्तन किसी महिला या नाबालिग बच्चे का है तो दण्ड दुगुना हो जाएगा।
शुक्रवार को लायंस हाल में हुई घटना में मीडीयाकर्मियों ने जितने भी आदिवासियों से बात की,उन सभी का कहना था कि उन्हे बीमारी ठीक करने का आश्वासन दिया गया था। लगभग सभी व्यक्तियों ने अपने बयानों में यह भी स्पष्ट किया कि वे पहले हिन्दू देवी देवताओं की पूजा करते थे,लेकिन अब इसा मसीह पर आस्था रखने लगे है। आदिवासियों के बयानों से असंदिग्ध रुप से स्पष्ट हो जाता है कि उन्हे बीमारी दूर करने और नौकरी दिलाने जैसे प्रलोभन देकर उनका धर्म परिवर्तन किया जा रहा है। इतने स्पष्ट प्रमाण सामने आने के बावजूद पुलिस अधिकारियों द्वारा आपराधिक प्रकरण दर्ज नहीं करना कई संदेहों को जन्म देता है।
लायंस हाल में आए अधिकांश आदिवासी महिला पुरुषों ने यह बताया कि उनकी बीमारी अस्पताल में ईलाज से ठीक नहीं हुई और अब मिशनरीज के लोग प्रार्थना से चमत्कार के द्वारा बीमारी ठीक करने का दावा कर रहे है। उल्लेखनीय है कि झाड फूंक और जादू टोने के चमत्कार से किसी बीमारी के इलाज का दावा करना भी आपराधिक कृत्य है। मध्यप्रदेश में औषधि और चमत्कारिक उपचार (आक्षेपणीय विज्ञापन) अधिनियम 1954 तथा धार्मिक संस्था दुरुपयोग निवारण अधिनियम 1988 लागू है। उक्त दोनो अधिनियमों के स्पष्ट प्रावधान है कि यदि कोई व्यक्ति किसी धार्मिक चमत्कार का दावा कर बीमारी को ठीक करने का दावा करता है,तो यह दण्डनीय अपराध है और इस अपराध के लिए पांच वर्ष तक की सजा दी जा सकती है।
उल्लेखनीय है कि लायसं हाल में धर्मान्तरण की कार्यवाही को अंजाम दे रहे पदाधिकारी मीडीया के सामने भी यह दावा कर रहे थे कि वे चमत्कारों के द्वारा बीमारियां ठीक करते है। उनकी स्वयं की स्वीकारोक्ति के बाद भी पुलिस और प्रशासन द्वारा उनके विरुध्द कोई कार्यवाही नहीं की जाना विचारणीय प्रश्न है।
हिन्दू संगठनों से जुडे सूत्रों का कहना है कि जब केन्द्र में कांग्रेस नीत यूपीए सरकार थी,तब इसाइ मिशनरीज के सारे अपराधों पर परदा डाल दिया जाता था। सूत्र बताते है कि उन दिनों में जब भी ऐसा कोई मामला उजागर होता था,सीधे दिल्ली से पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों को कोई कार्यवाही नहीं करने के निर्देश दे दिए जाते थे। लेकिन अब स्थितियां बदल चुकी है और पुलिस व प्रशासन पर इस तरह का कोई दबाव भी नहीं है। लेकिन इसके बावजूूद यदि प्रशासन और पुलिस अधिकारी जांच की आड में मामले को रफा दफा करने में जुटे है,तो निश्चय ही इसके पीछे मिशनरीज के धनबल की भूमिका हो सकती है। धार्मिक संस्था दुरुपयोग निवारण अधिनियम तथा औषधि और चमत्कारिक उपचार अधिनियम में दोषसिध्दी पर पांच वर्ष के कठोर कारावास तक का प्रावधान है।
इधर लायंस हाल में धर्मान्तरण का मामला उजागर होने के बावजूद प्रशासन और पुलिस के उदासीन रवैये से हिन्दूवादी संगठनों में आक्रोश पनपने लगा है। शुक्रवार शाम को हिन्दू जागरण मंच की बैठक में एक दिन रुक कर प्रशासन की कार्यवाही देखने का निर्णय लिया गया था। प्रशासन और पुलिस किसी निष्कर्ष पर नहीं पंहुचे हैं। हिन्दूवादी संगठनों से जुडे सूत्रों का दावा है कि यदि कोई ठोस कार्यवाही नहीं की गई तो हिन्दू संगठन रतलाम बन्द जैसे कदम उठा सकते है।