दो कविताएं
कोरोना महामारी और लॉक डाउन के दौर को रेखांकित करती भारतीय किसान संघ के वरिष्ठ प्रचारक प्रभाकर केलकर की दो कविताएं-
कोरोना महामारी के दौरान मजदूर भाईयों की व्यथा
हां हम मजदूर हैैं-हां हम मजदूर हैैं
कल तक हम जरुरी थे,आज हम मजबूर हैैं
हां हम मजदूर हैैं हां हम मजदूर हैैं।
हम रिक्शे वाले,रेहडी,पटरी खोमचे वाले,
रसोई वाले,कुली,हम्माल हम फेरी वाले।
पंचर वाले,जूते-चप्पल,हम पालिश वाले।।
हां हम मजदूर हैैं…………
.सब्जी वाले,नाई,धोबी,लम फूलों वाले,
चाय समोसे लाने वाले,पान,झाडू हम पोंछे वाले,
घर घर काम करने वाले,पुताई ईंट भïट्टों वाले।।
हां हम मजदूर हैैं……….
.सडक भवन बनाने वाले,कल कारखाने चलाने वाले,
एक एक कमरे में दस दस रहकर,देश की सेवा करने वाले।
सूनी सूनी आंखों वाले,बीबी बच्चे देखने को मजबूर हैैं।।
हां हम मजदूर हैै…………
हो दिल्ली-मुंबई,चैन्नई या हो भोपाल,लखनऊ,अहमदाबाद,
हम चले अब अपने घर की ओर,आप रहो आबाद।
भूखे प्यासे सैैंकडों मील,हम चलने को मजबूर है।।
हां हम मजदूर हैैं……
.महामारी ये चली जाएगी,सौतन कब तक छाई रहेगी,
याद करना फिर आएंगे,हम न रहें मजदूर जरुर आएंगे।
फिर चलेंगे कल-कारखाने,देश में नया सवेरा लाएंगे।।
हां हम मजदूर हैैं – हां हम मजदूर हैैं
कल तक हम जरुरी थे,आज हम मजबूर हैैं।
प्रभाकर केलकर
12 अप्रैल 2020
-वह पछताता पथ पर आता-
.भीख न मिली थी,कटु वचन मिले थे।
लात मिली थी,डण्डा झोली गिर पडी थी।
उनसे बचने वह पछताता पथ पर आता था।
फुटपाथ उसका बसेरा था,
झाडियां उसकी आसरा थी,
माली ने उसको दौडाया था……।
फिर वह पछताता पथ पर आया था।।
सूनी गलियां,सूने रास्ते,
सूनी झूली आंखे उसकी सूनी सूनी,
बटती रोटी,उसके पास न फटकती,
अपनी रीती झोली थाम कर वह,
पछताता पथ पर आता था……
.चैत,बैसाख गर्मी बीती,सावन भादौ की धारा सूखी।
अगहन पूस ने आंते ओटी,
अकडा पडा था वह झाडी में,
कुत्ते ले आए शव पथ पर,
यह पथ पर आना उसका
हाथ पसारे जाना उसका,
पथराई आंखे पूछ रही,भारत के बेटों से,
कब तक,कब तक,कब तक?
उत्तर न आता-उत्तर दक्षिण से-माटी औ अम्बर से।
(पथ से आशय राजपथ, मुख्य मार्ग से है।)
-प्रभाकर केलकर