November 16, 2024

तो कसूर कमलनाथ का नहीं है……

प्रकाश भटनागर

 

प्रदेश कांगे्रसाध्यक्ष कमलनाथ ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की जनआशीर्वाद यात्रा पर दो कमेंट किए हैं। एक तो उन्हें यह यात्रा मदारी और मजमे जैसी लग रही है। दूसरा, उन्होंने पहले ही कह दिया कि हमें जनता का आशीर्वाद लेने जाने की जरूरत नहीं हैं, जनता तो खुद आशीर्वाद देगी। अब कमलनाथ, जय कमलनाथ वाले हैँ। उन्होंने कह दिया तो कह दिया। तो जाहिर है इसमें कमलनाथ का कोई कसूर नहीं है। छिंदवाड़ा से दसवीं बार सांसद बने और मध्यप्रदेश कांग्रेस के पहली बार अध्यक्ष बने कमलनाथ को कभी वाकई जनता के आशीर्वाद की जरूरत नहीं पड़ी। छिंदवाड़ा की जनता के आशीर्वाद की भी नहीं।

उनके साथ हमेशा आशीर्वाद रहा है गांधी परिवार का। इंदिरा गांधी, संजय गांधी, राजीव गांधी, सोनिया गांधी और फिर राहुल गांधी। अब जिसके पास गांधी परिवार की चार पीढ़ियों का आशीर्वाद हो उस कांग्रेसी को और भला क्या चाहिए? कमलनाथ का मध्यप्रदेश से कभी कोई जन्मजात नाता तो है नहीं। यह एक वास्तविक तथ्य है। उनका वास्ता केवल और केवल छिंदवाड़ा तक सीमित रहा। क्यों?

असल में छिंदवाड़ा आदिवासी बहुल वो पिछड़ा क्षेत्र रहा है, जहां की जनता ने इमरजेंसी के बाद हुए चुनाव में देश भर में कांग्रेस विरोध के बाद भी उसे अपना वोट दिया था। तब छिंदवाड़ा के स्थानीय नेता गार्गी शंकर मिश्र मध्यप्रदेश में इकलौते कांग्रेसी थे, जिन्होंने यहां से चुनाव जीता था। वे लगातार तीन बार के सांसद थे। लिहाजा, जब 1980 में मध्यावधि चुनाव हुए तो तब संजय गांधी के बाल सखा कमलनाथ के लिए छिंदवाड़ा को सुरक्षित सीट मानते हुए उन्हें यहां से चुनाव लड़ाया गया था। छिंदवाड़ा के स्वाभाविक नेता गार्गीशंकर मिश्र की राजनीति पर कमलनाथ का ग्रहण लग गया। कमलनाथ का चुनाव जीतना तय था सो वे चुनाव जीते। इस आदिवासी बहुल सीट के भोले-भाले आदिवासियों की बदौलत चुनाव जीते कमलनाथ ने तत्काल मध्यप्रदेश के प्रभावशाली आदिवासी नेता शिवभानु सिंह सोलंकी के स्वाभाविक नेतृत्व पर डाका डालने में अर्जुन सिंह का साथ दिया। व्हाया कमलनाथ, संजय गांधी की कृपा से धार के आदिवासी नेता शिवभानु सिंह सोलंकी का हक मार कर अर्जुन सिंह 1980 में मुख्यमंत्री बनाए गए। बेचारे सोलंकी को उप मुख्यमंत्री पद से संतोष करना पड़ा।
कसूर कमलनाथ का नहीं है। कांग्रेस में हमेशा किंग मेकर के तौर पर जाने जाते रहे कमलनाथ को कभी जनता के आशीर्वाद की जरूरत भला पड़ेगी भी क्यों? वो तो अब तक कांग्रेस में राजा तय करते रहे हैं। बुरा हो इस भाजपा का। जिसने मध्यप्रदेश में ऐसे पैर जमा लिए हैं कि एक नया इतिहास ही बन गया। कांग्रेस कभी दस साल से ज्यादा लगातार सत्ता में नहीं रही। हर दस साल में उसे मध्यप्रदेश की सत्ता से हटना पड़ा है। लेकिन इस भाजपा ने तो कमाल कर दिया। लगातार तीसरी बार सरकार में है। कांग्रेसियों को तो आदत ही नहीं है विपक्ष में रहने की। लेकिन बावजूद इसके अगर सोनिया और राहुल गांधी को आशीर्वाद कमलनाथ को ही देना है, जो दिल्ली को तो जानते हैं लेकिन जिन्होंने मध्यप्रदेश में कांग्रेस की जमीन को कभी समझा ही नहीं, तो इसमे कमलनाथ का क्या कसूर? कांग्रेस की जमीन तो जाने दीजिए कमलनाथ तो कभी छिंदवाड़ा की जमीन पर भी नहीं चले हैं। वे हवा में उड़ने में यकीन करते हैं। उनका चुनाव प्रचार भी हैलीकाप्टर से ही होता है। और मजाक मत समझिए। हैलीकाप्टर आज भी ग्रामीण क्षेत्रों और खासकर जब वे आदिवासी बहुल हो तो कौतुक का विषय है और इस बहाने कमलनाथ को अपने कार्यक्रमों में स्थानीय भीड़ तो मिल ही जाती है। वो भीड़ जो अपने नेता को आशीर्वाद देने नहीं, उसके हवा में उड़ने के कौतुक को देखने के लिए इक्कट्ठा होती है।

कसूर तो इन कांग्रेसियों का है जो सालों तक मध्यप्रदेश की सत्ता में जमे रह कर मलाई छानते रहे लेकिन अपने संगठन को इतना गरीब कर छोड़ा है कि दिल्ली से भोपाल तक कांग्रेस नेतृत्व को ढुंढ़ना पड़ रहा है कि आखिर चुनाव लड़ने के लिए पैसा खर्च करने में सक्षम नेता कौन है? अब जनता से आशीर्वाद मांगने की न तो आदत रही, न हिम्मत, तो आखिर चुनाव में पैसा खर्च करने के लिए तो नेता ही ढुंढना पडेगा न। हिम्मत इसलिए नहीं है कि जनता ने लगातार कांग्रेस को विपक्ष की भूमिका निभाने का दायित्व सौंपा। लेकिन सत्ता चलाने के आदी रहे कांग्रेसी जानते ही नहीं कि सत्ता की व्यवस्था विरोधी खामियों से विपक्ष में रह कर जनता के हित में कैसे लड़ा जाता है?

कमलनाथ का कसूर इसलिए भी नहीं है क्योंकि आजादी के बाद सत्ता की स्वाभाविक दावेदार रही कांग्रेस धीरे-धीरे यह भूलती ही चली गई कि उसने देश की आजादी की लड़ाई लड़ी है। उसने देश में लोकतंत्र की स्थापना की लड़ाई लड़ी है। पीढ़िया बदलती चली गई और कांग्रेस इस हद एक परिवार पर निर्भर होती गई कि एक ही अध्यक्ष में उन्नीस साल तक कांग्रेस सीमित रह गई। और बदलाव हुआ भी तो राजतंत्र की तरह ही विरासत में संगठन की सत्ता का बदलाव हुआ। तो मां-बेटा पार्टी में जनता के आशीर्वाद का मतलब ही क्या है? अब ये कमलनाथ का दुर्भाग्य हो सकता है कि जो लोग इस देश और मध्यप्रदेश की सत्ता में काबिज हैं, उन्हें सत्ता विरासत में नहीं, जनता के लिए संघर्ष करने से मिली है। और कमलनाथ जिसे मदारी का तमगा लगा रहे है, उसकी शुरूआत तो जनता के बीच पांव-पांव वाले भैया की पहचान से ही शुरू हुई है।

इसलिए वो अगर जनता से अपने कामों को लेकर फिर आशीर्वाद मांगने निकल रहे हैं तो यह पक्का विश्वास होगा ही ना कि जनता ने अगर नेतृत्व सौंपा है तो शायद उसकी अपेक्षाओं पर खरा भी उतरा होऊंगा। तो भला फिर जन आशीर्वाद से हिचक कैसी? लेकिन अब तो छिंदवाड़ा की जनता भी लगातार जागरूक हो रही है, 1990 से लेकर 2013 तक कम से कम तीन ऐसे मौके आ चुके हैं जब विधानसभा में वहां कांग्रेस का नाम लेवा भी नहीं बचा था। और खुद कमलनाथ, वे भी 1997 में लोकसभा का एक उपचुनाव तो हार ही चुके हैं। पिछले दो लोकसभा चुनाव भी उन्होंने पसीना बहाते ही बमुश्किल जीते थे। अब ये तो मध्यप्रदेश की विधानसभा का चुनाव है, ऊपर से दीपक बावरिया जैसे कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी कभी सिंधिया तो कभी कमलनाथ को मुख्यमंत्री बनाने की सूत न कपास जुलाहे में लट्ठम लट्ठा जैसी सार्वजनिक घोषणा कर रहे हों तो फिर कमलनाथ को जनता के आशीर्वाद जरूरत भी कहां होगी भला। तो कसूर कमलनाथ का नहीं है…..

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