ठहाका लगाइए इस लतीफे पर
प्रकाश भटनागर
पिता ने कम उम्र के बेटे को नसीहत दी। जब बड़े आपस में बात कर रहे हों तो बीच में नहीं बोलना चाहिए। किसी बड़े के साथ बैठे पिता भोजन कर रहे थे। बेटे ने बीच में कुछ कहना चाहा। पिता ने आंख दिखाकर नसीहत याद दिलाते हुए उसे चुप कर दिया। बातचीत का क्रम पूरा होते-होते भोजन समाप्त हो चुका था। पिता ने बेटे से पूछा कि वह क्या कहना चाहता था। सामने से जवाब आया, ‘उस समय आप जो कौर खा रहे थे, उसमें मक्खी गिरी हुई थी।’
राज्य में बीते करीब पंद्रह साल में भाजपा जनता को प्रकारांतर से ऐसी ही नसीहत देती चली आ रही है। अकड़ से भर कर। वह आवाम पर अपनी इच्छाएं और निर्णय थोपती है। कोई कुछ बोलने की कोशिश करे तो आचरण यही होता है कि बड़ों के बीच में नहीं बोलना चाहिए। अब जबकि एक बार फिर पांच वर्षीय राजनीतिक भोजन का समय पूरा हो रहा है, सरकार ने जनता से पूछा है कि वह क्या कहना चाहती है। यकीन मानिए, इसका जवाब कुछ ऐसा ही मिलेगा, जैसे किसी को बताया जाए कि भोजन के साथ वह मक्खी भी निगल चुका है।
मामला समृद्ध मध्यप्रदेश अभियान का है। शिवराज का फोकस युवाओं पर है। वह उनसे ‘आइडिया में है दम? पूरा करेंगे हम !’ की तर्ज पर मुखातिब है। यानी, पंद्रह साल जो भी हमने किया, वह हमारा काम था। अब तुम्हें मौका दे रहे हैं कि उपाय सुझाओ। पूरा करेंगे हम वाला दम्भ तो अरब के उस शेख की याद दिलाता है, जो ऊंट की पीठ पर बैठकर रेगिस्तान की सैर कर रहा था। पीछे नौकर शेख के सिर पर छाता लगाये पैदल चलता जा रहा था। शेख की जेब में काजू भरे थे। उन्हें वह एक-एक कर खाता। गर्मी और भूख से बेहाल नौकर मन मसोस कर यह सब देख रहा था। यकायक एक काजू शेख के हाथ से फिसलकर नीचे गिर गया। नौकर ने उसकी ओर देखा। शेख ने कहा, ‘देखता क्या है! खा ले इसको।’ नौकर ने ऐसा ही किया। इसके बाद शेख ने पूरे दम्भ के साथ नौकर से कहा, ‘देखा! हमारे साथ रहोगे तो ऐसे ही ऐश करोगे।’
शिवराज अब तक के कार्यकाल में अधिकांश समय ऊंट जैसी ऊंचाई पर ही खड़े होकर हवा-हवाई घोड़े दौड़ाते रहे। सिर्फ सियासी लाभ वाली योजनाओं के नाम पर करोड़ों रुपए उन्होंने फूंक डाले। नतीजा यह हुआ कि ‘कर्ज का मर्ज’ पूरे प्रदेश पर कैंसर की तरह छा गया है। बेचारी जनता उसी नौकर की तरह बीते लगातार तीन चुनाव में सरकार के लिए छांव का बंदोबस्त करती रही। अब चुनाव के समय सरकार ‘हमारे साथ रहोगे तो ऐसे ही ऐश करोगे’ कि तर्ज पर आइडिया मांग रही है। बता रही है कि तुम्हारे पास आइडिया है क्या? तो केवल हमारे पास ऐसी ताकत है कि उसे पूरा करे नहीं करें यह हमारी मर्जी ! यह जनता के प्रति गुरूर के भाव से हटकर और कुछ भी नहीं है।
प्रदेश पेट्रोलियम पदार्थों की आग में झुलस चुका है। हाल ही में मेरे एक मित्र ने चारपहियां वाहन से भोपाल से बैतूल होते हुए महाराष्ट्र तक का सफर तय किया। उसने बताया कि रास्ते में पड़ी नर्मदा सहित बेतवा और तमाम नदियों में पानी न के बराबर दिखा। कम से कम अक्टूबर महीने के जल भंडारण के लिहाज से तो उनकी दशा शोचनीय नजर आई। हर जगह रेत के अवैध उत्खनन के नजारे ही दिखे। राज्य की सड़कें इतनी बुरी कि महाराष्ट्र की सीमा में पहुंचने के बाद ही यह मलाल कम हो सका कि क्यों कर अपनी कार के चेसिस को खतरे में डाला है। इधर, न्यूज चैनल वाले गांव-गांव, गली-गली पहुंचकर बता रहे हैं कि जिस जनता से रथ में बैठकर आशीर्वाद मांगा गया, वही जनता किस तरह अभिशाप झेल रही है। यह एकाध दिन में बने हालात नहीं हैं। यह पंद्रह साल का वह रोग है, जो अब नासूर की शक्ल ले चुका है। ऐसे हालात की दोषी सरकार ऐसी पीड़ित जनता से सुझाव मांग रही है, इसे किसी लतीफे की श्रेणी में ही रखा जा सकता है।
बेहतर होता कि शिवराज ने जनता के आइडिया उन योजनाओं से पहले मांगे होते, जिन योजनाओं का वस्तुत: बुनियादी सुविधाओं से कोई लेना-देना था ही नहीं। यह सुझाव तब आमंत्रित किए जाने थे, जब प्रदेश में अपराध सहित स्थानीय करों की बदौलत आवश्यक वस्तुओं के दाम आसमान तक पहुंचते चले गए। लोगों ने कई स्तर पर अपनी बात रखी। लेकिन सरकार का आचरण वही बड़ों की बात के बीच कुछ और न सुनने वाला रहा। इसलिए अब मक्खी वाला भोजन सरकार के पेट में पहुंचकर मरोड़ पैदा कर रहा है। खाली खजाने, थोथी घोषणाओं और नाउम्मीदी के चरम के बीच जनता यही सुझाव दे सकती है कि आगे से भोजन करते समय जनता की बात भी सुन ली जाए। बशर्ते, अब उसे इसका मौका मिल पाए।
सरकार लतीफे जैसा आचरण कर रही है तो हमें भी इसकी कुछ अनुमति तो होगी ही। लिहाजा एक और लतीफा पेश है। नौकर ने पंद्रह साल तक सेठ की सेवा पूरे जतन से की। इस उम्मीद में कि उसे एक दिन इसका लाभ मिलेगा। पंद्रहवां साल पूरा होते-होते सेठ ने उसे बुलाया। कहा, मैं तुम्हारे काम से बहुत खुश हूं। लो एक लाख रुपए का चेक तुम्हें दे रहा हूंं। नौकर खुशी से झूमने ही वाला था कि सेठ का अगला वाक्य उसके कान से टकराया, इसी तरह पांच साल और सेवा करोगे तो मैं इस चेक पर हस्ताक्षर भी कर दूंगा। प्रदेश की जनता से आइडिया मांगने का काम इसी सेठ की तरह शातिराना आचरण है। इस लतीफे पर ठहाका लगा लीजिए, बाकी तो रोने के आदत पंद्रह साल में आपके भीतर घर कर ही चुकी होगी।