जहां एक जमाने में आजादी के तराने गाये जाते थे वहां है अब शर्मनाक स्थिति
रतलाम,1 सितम्बर (इ खबरटुडे/ शरद जोशी )। जहां कभी आजादी के तराने गाये जाते थे वही आजाद चौक आज पेशाब घर के रूप में उपयोग में आने लगा है। आश्चर्य इस बात का है कि क्षेत्र के प्रबुध्द व्यापारी भी इस आजाद चौक का उपयोग जिस तरह कर रहे हैं उससे रतलाम की आन, बान, शान को बट्टा लग रहा है लेकिन कोई देखने वाला नहीं और न ही कोई सुनने वाला। एक समय था नेताओं में आजादी के लिए एक अलग ही जबा था, वह देश की अस्मिता के लिए मरमिटने को तैयार थे, वहीं आज के नेताओं की कार्यशैली ऐसी हो गई है कि वह संग्राम सैनानियों के बल पर मिली आजादी के महत्व को समझना ही नहीं चाहते। यही कारण है कि आज ऐतिहासिक महत्व के स्मारकों की स्थिति अत्यंत दयनीय और सोचनीय हो गई है।
चर्चा आजाद चौक की ही की जाए और इसके ऐतिहासिक महत्व पर प्रकाश डाला जाए तो हमें पता लगेगा कि रतलाम के राजा ने इस स्थान को कितना महत्व दिया था। आजादी का पहला झण्डावंदन भी इसी स्थान पर डॉ. देवीसिंह द्वारा किया गया था। रतलाम महाराजा ने नगर पालिका को इस स्थान की निगरानी की जिम्मेदारी दी थी और यह स्थान आमसभा, मनोरंजन, उत्सव और प्रवचन के लिए निर्धारित किया था। सन् 1947-48 में रियासत के विलिनीकरण के समय आजाद चौक और उसकी भूमि को भारत सरकार ने महाराजा की निजी सम्पत्ति में शामिल रखा था लेकिन कतिपय स्वार्थी तत्वों ने महाराजा की इस भावना की ही धाियां उड़ा दी। इसकी रक्षा के लिए स्वतंत्रता संग्राम सैनानियों ने काफी आंदोलन भी किए लेकिन नगर पालिका ने इस आजाद चौक के महत्व को समाप्त कर दिया और तत्कालीन परिषद के नेताओं ने इसके चारों ओर दुकानें बना दी। यह आपात काल का दौर था इस कारण कोई कुछ बोल नहीं सका, दुकानें बन गई। आज भी दुकानदारों को अपना स्वामित्व नहीं मिल पाया है। आखिर यह सम्पत्ति किसकी है? इस विवाद के बाद नगर पालिका ने हद ही कर दी और सभागृह बनाने के नाम पर एक निजी व्यक्ति को ठेका दे दिया। लोगों की आपत्ति पर यह मामला न्यायालय मेें चला गया और आज भी यह विवादाग्रस्त स्थल बना हुआ है। किसी भी परिषद ने इसकी चिंता नहीं की और आजादी का यह स्मारक आज पेशाब घर के रूप में परिवर्तित हो गया है।
यहां यह उल्लेखनीय है कि जब आजाद चौक के अंदर अवैध रूप से निर्माण कार्य चल रहा था तब 29 जुलाई 1999 को लोगों ने जमकर विरोध किया और ध्वनि विस्तारक यंत्र के माध्यम से आजादी के तराने गाये जाने लगे और देश भक्ति के भाषण भी लोग देने लगे और कहा गया कि एक ओर कारगिल मुद्दे पर देश की सेना संघर्षरत है वहीं अपने ही घर में राष्ट्रीय चिह्न का अपमान किया जा रहा है। आजाद चौक के ऊपर जहां पहला झण्डावंदन हुआ, अशोक का चिह्न जहां लगा था उसे तोड़ दिया गया और निर्माण कार्य कतिपय ठेकेदारों के इशारे पर शुरू हो गया। इसमें नगर निगम का भी पूरा-पूरा योगदान था और आज भी लोग नगर निगम की इस कार्यवाही को कोस रहे हैं। तत्कालीन नेता और जनप्रतिनिधियों की मौन भूमिका भी लोगों में चर्चा का विषय थी और आज भी चर्चा का विषय है। उसका मुख्य कारण है आजाद चौक की वर्तमान स्थिति। इस स्थिति में कब परिवर्तन होगा और कब चांदनीचौक के अंदर का मलबा, कचरा और अवैध निर्माण हटवाकर इस स्थल को सभागृह के रूप में कैसे इस्तेमाल होगा? यह चर्चा का विषय है।
बताते हैं कि अब इस मामले में किसी भी प्रकार का न्यायालय में प्रकरण विचाराधीन नहीं है। न्यायालय का बहानाकर इस आजाद चौक की अस्मिता की रक्षा कब होगी यह शासन और प्रशासन के लिए चुनौती है। रतलाम के वर्तमान कलेक्टर को चाहिए कि वह इस गम्भीर प्रकरण पर तत्काल ही कार्यवाही करे और आजाद चौक का मूलस्वरूप पुन: लौटाए ताकि रतलाम महाराजा द्वारा जनहित में छोड़ा गया यह स्थान जनता के लिए उपयोगी हो सके। भले ही आसपास की दुकानों को नहीं हटाया जाए लेकिन मध्य भाग को पूरी तरह ठीककर उसे सार्वजनिक उपयोग के लिए इस्तेमाल में लाया जाना चाहिए ताकि यहां सार्वजनिक कार्यक्रम हो सके। इसके लिए मध्यप्रदेश श्रमजीवी पत्रकार संघ और रतलाम प्रेस क्लब भी उच्च स्तर पर पहल करने की योजना बना रहा है ताकि मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री का ध्यान आकर्षित किया जा सके। उनके हस्तक्षेप से ही लगता है इस आजाद चौक की स्थिति में बदलाव होगा।