November 18, 2024

जनजन में विज्ञान का प्रसार करने वाले शिक्षक गजेन्द्र सिंह राठौर को राष्ट्रपति करेगें सम्मानित

गांव की धूल से राष्ट्रपति पुुरूस्कार तक का सफर

रतलाम,27 अगस्त(इ खबरटुडे)।। प्रदेश के सर्वश्रेष्ठ विज्ञान शिक्षक के खिताब से नवाजे जा चुके रतलाम जिले के गौरव गजेन्द्रसिंह राठौर को विज्ञान जागरूकता में उल्लेखनीय कार्यो एवं विज्ञान प्रसार में नवाचारो के लिए 5 सितम्बर को राष्ट्रपति पुरूस्कार मिलेगा। जन जन में विज्ञान लोकप्रियकरण के लिए पिछले 22 सालो से लगे गजेन्द्रसिंह राठौर को इसके पहले भी कई पुरूस्कार प्राप्त हो चुके है।

उत्कृष्ठ विद्यालय के व्याख्याता राठौर विद्यार्थियों, युवा वैज्ञानिकों और आम जनता को विज्ञान के क्षेत्र में भारत की प्रगति एवं नवीन खोजों से अवगत कराने के लिए वर्षो से प्रयासरत है। इसी के अन्तर्गत जिले को यह गौरव प्राप्त हुआ है कि युवा भौतिक विज्ञानी राठौर को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद सम्मानित करेगें। गत वर्ष भी मध्यप्रदेश में जन विज्ञान कार्यक्रम के तहत काम करने वाली संस्था सी.एस.आई.आर.- प्रगत पदार्थ तथा प्रक्रम अनुसंधान संस्थान (एम्प्री) भोपाल ने भौति क विज्ञानी गजेन्द्र सिंह राठौर को विज्ञान जन लोकप्रियकरण में उल्लेखनीय योगदान के लिए सम्मानित किया गया है। प्रदेश के सर्वश्रेष्ठ विज्ञान शिक्षक श्री राठौर के इन प्रयासों के लिए ही श्री राठौर को मध्यप्रदेश विज्ञान एवं प्रोद्योगिकी परिषद विज्ञान भवन भोपाल और राज्य विज्ञान शिक्षा संस्थान एवं अध्यापक विज्ञान शिक्षा महाविद्यालय जबलपुर ने प्रदेश का सर्वश्रेष्ठ विज्ञान शिक्षक भी घोषित किया है। यह पुरस्कार प्राप्त करने वाले वे जिल ेके पहले शिक्षक भी हैं। श्री राठौर एमएससी बीएड हैं और विक्रम विवि की प्रावीण्य सूची में चयनित हुए थे। 1989 में राष्ट्रीय विज्ञान मेले में सहभागिता की और 1992 में राज्य विज्ञान जत्था मे ंशामिल थे। एक शिक्षक के रूप में श्री राठौर ने इतने नए और अनूठे प्रयोग किए हैं वे पहले भी 4 बार राष्ट्रीय स्तर और 12 बार राज्य स्तर की प्रतिस्पर्धाओं में चयनित हो चुके हैं। राष्ट्रीय इस्पायर अवार्ड, राष्ट्रीय विज्ञान सेमिनार, बाल विज्ञान कांग्रेस, राष्ट्रीय महोत्सव सहित 55 छात्रों का अपने मार्गदर्शन में राष्ट्रीय स्तर पर चयन करवा चुके हैं तथा पुरस्कार प्राप्त चुके हैं। 2008 में विज्ञान प्रसार नईदिल्ली के आमंत्रण पर छत्तीसगढ़ में कम लागत की शिक्षण सामग्री का प्रशिक्षण राज्य में चुने हुए शिक्षकों को दे चुके हैं। कॉपी-किताब नहीं, तकनीकी से ज्ञान श्री राठौर की क्लास में दाबांतर, रुदोज्म प्रसार, वृत्तीय गति, अभिकेंद्र बल आदि पर वास्तविक प्रयोग करके दिखाते हैं। बैनर, चार्ट, पोस्टर, डिजाइन, क्विज, सेमीनार के तरीकों से ही पढाते हैं। उनके द्वारा लिखे गए पाठ्यक्रम पर आधारित विभिन्न नाटकों को 10वीं के पाठ्यअंश में पोषण, विद्युत लेपन, ग्लोबल वार्मिग आदि को लेकर लिए जा चुके हैं। 9वीं में मलेरिया शामिल है। जिले के अन्य स्कूलों में भी ये नाटक खेले जा रहे हैं। 10 साल में एक भी विद्यार्थी नहीं हुआ फेल श्री राठौर कार्यो के साथ प्रतिदिन स्कूली समय और इसके अलावा भी कमजोर विद्यार्थियों को निशुल्क पढ़ाते हैं। रविवार, छुट्टी के बाद समय में इतने क्लबों, अभियानों का काम चलता रहता है। इसके बाद भी पिछले 10वर्षो में श्री राठौर द्वारा पढ़ाए गए विद्यार्थियों में से एक ही बोर्ड कक्षा में उनके विषय में अन्नुतीर्ण नहीं हुआ है। कई विद्यार्थी हर साल 100 में से 100 अंक हासिल करते हैं। मॉय साइंस से घर बैठे सीख रहे हजारों लोग श्री राठौर ने विज्ञान में छुपे रोचक तथ्यों और खेती से लेकर दैनिक जीवन तक छुपे विज्ञान को लोगों को बताने के लिए फेसबुक पर भी माय साइंस पेज बनाए हैं। जिसमें हजारों सदस्य जुड़े हैं। कोई भी व्यक्ति या बच्चा अपने सवाल इसपर पोस्ट करता है तो ग्रुप में उसे तार्किक आधार पर जवाब भी तत्काल मिलता है। पेज के माध्यम से गांवों और दूर दराज के कई बच्चें विज्ञान की बेहतर पढ़ाई भी कर रहे हैं। जादू नही विज्ञान , बोतल में भूत, समाधि का रहस्य जब जिले के गंावो में अंधविश्वास का चारो तरफ जाल फैला हुआ था। पिपलोदा में रहते हुए श्री राठौर तब गांव गांव अपनी टीम के साथ घुमकर चमत्कारो की वैज्ञानिक व्याख्या कर ग्रामीणो को यह समझाते थे कि यह कोई चमत्कार नही बल्कि विज्ञान है। इस दौरान उन्हे कई कठिनाईयो का सामना भी करना पड़ा। जब गांवो में नींबू काटकर खून निकालना , बोतल में भूत बंद करना, नारियल से खून निकालना, हवा से भभूत निकालना, आग पर चलना, जलता कपूर मुंह में रखना जैसे कई चमत्कार दिखाकर कई लोग बेवकूफ बनाकर ग्रामीणो से रूपए ऐंठ लेते थे। ईलाज के नाम पर भी इस तरह के चमत्कार दिखाए जाते थे और कई बार समय पर ईलाज नही मिलने पर मरीज की मौत तक हो जाती थी। विज्ञान जत्थो एवं राठौर की टीम के प्रयासो से सैंकडा़े गांवो में जागरूकता आई है। पहली बार जिले में उन्हौने 24 घंटे तक भूमि के अंदर रहकर समाधि लेने वालों के सच से लोगों को अवगत कराया। समाधि के लिए एक घंटे में पांच घनफ ुट ऑक्सीजन की जरूरत होती है। अत: 24 घंटे के लिये 120 घनफु ट ऑक्सीजन की जरूरत होती है। एक दस बाय दस के गड्डे में 20 घंटे तक आसानी से सुरक्षित रहा जा सकता है।

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