जङ से जुड़ी कमला हैरिस: सर्वोपरि मजहब या संस्कृति
-पंडित मुस्तफा आरिफ
डेमोक्रेटिक पार्टी की उपराष्ट्रपति पद की उम्मीदवार कमला हैरिस ने नोमिनेशन स्वीकार करने के बाद दिये गये अपने उदबोधन में अपने परिवार को याद किया। उन्होंने विशेष रूप से एक शब्द चिट्टी का उपयोग किया। ये एक तमिल शब्द हैं जिसका अर्थ होता है माँ की छोटी बहन। अपने उदबोधन में उन्होंने कहा कि उन्हें हमेशा परिवार को पहले रखना सिखाया गया है, जिसमें आप पैदा होते हैं और फिर एक परिवार जो आप चुनते हैं। अपने परिवार के सदस्यों अपने पति, बच्चों, बहन, बेस्ट दोस्त, अंकल और आंटी का जिक्र करने के बाद एक और नाम लिया “चिट्टी”। उनके उदबोधन के बाद इस शब्द पर चर्चा होने लगी और इसके मायने खोजे जाने लगे। इसके बाद सब ओर ये चर्चा होने लगी कि वे किस प्रकार इतिहास रचने के बाद भी जमीन से जुड़ी हुई है अपनी जङे नहीं भूली है। टीवी की ख्यातिनाम हस्ती पद्मा लक्ष्मी ने कहा कि ये सुनकर उनकी आंखों से आंसू निकल गये।।।
धर्म और संस्कृति के अंतर को यहाँ समझना जरूरी है। विशुद्ध तमिल होने के कारण कमला हैरिस के धार्मिक होने में कोई संदेह नहीं है। जो अंतर व्यक्ति और जमीन में हैं, वहीं अंतर धर्म और संस्कृति में हैं। दुनिया का शायद ही ऐसा कोई धर्म या धर्म ग्रंथ होगा जो संस्कृति को मान्यता नहीं देता हो। हिंदू धर्म में संस्कृति की प्राथमिकता सर्वविदित व निर्विवादित हैं। ईसाई धर्म में संस्कृति सर्वोपरि के उदाहरण देखने को मिलते हैं, इसलिए वो जिस जमीन या देश में पैदा होते हैं उनके नाम वहीं की भाषा के सर्वमान्य नाम होते हैं। इस्लाम में जरूर इस बात की बहस होती हैं कि धर्म पहले या राष्ट्र पहले। एक तबका कहता है पहले इस्लाम फिर राष्ट्र और दुसरा तबका राष्ट्र को सर्वोपरि मानता है। लेकिन कुरान व हदीस की अवधारणा राष्ट्र को तरजीह देतीं हैं और इसी वजह से अब मुसलमान कहने लगें हैं हुब्बुल वतन मिनल इमान, यानी वतन से मोहब्बत ही इमान है। इस्लाम का ही एक तबका है दाऊदी बोहरा समाज जो वतन के प्रति वफादार होने का नारा देता है। मस्जिद में अपने कार्यक्रमो में राष्ट्रगीत गाने, भारत माता की जय बोलने और तिरंगा फहराने से गौरवान्वित होता है।।।
विश्व में ऐसे अनेक देश हैं जहां कि मूल संस्कृति और धर्म में विरोधाभास है। परंतु वहां के मूल निवासियों की समझ संस्कृति पर धर्म को और और धर्म पर संस्कृति को हावी नहीं होने देती। इसमें इंडोनेशिया का उदाहरण सबसे अधिक लिया जाता है। हाल ही में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने राम मंदिर के भूमि पूजन के बाद अपने उदबोधन में दुनिया के सबसे बङे इस्लामिक देश इंडोनेशिया का नाम लेते हुए ये संदेश दिया कि भारत का नागरिक किसी भी धर्म का अनुयायी हो, वो अपनी संस्कृति से अलग नहीं हो सकता है। यदि हम संस्कृति का सम्मान करते हुए धर्म का पालन करेंगे तो निश्चित रूप से आपसी समन्वय और एकता को बल मिलेगा। ये सही है कि ये मान्यता एक तरफा नहीं हो सकती है। हिंदू, मुसलमान, सिख, ईसाई और सभी को इसे स्वीकार करना होगा। विशेषकर बहुसंख्यक वर्ग को बङे भाई की भूमिका निभाते हुए सामंजस्य बनाना होगा। एक मंच पर आकर एक दूसरे को समझ बूझ कर सांस्कृतिक एकता स्थापित करना होगी। इस बात के लिए लोगों को मोहब्बत और भाईचारे के साथ जोङते हुए एक दूसरे को अपमानित करने की भाषा को छोङकर कुरान की एक आयत को स्वीकार करना होगा लकुम दीनकुम वली दीन। यानी तुम्हारा धर्म तुम्हारे साथ मेरा धर्म मेरे साथ। लेकिन राष्ट्र की अस्मिता और संस्कृति की रक्षा हमारे साथ। यहीं वसुदेव कुटुंबकम की सनातन धर्म की अवधारणा भी है।।।
गणेश चतुर्थी के अवसर पर दिल्ली के मयूर विहार फेज 1 मे 2007 में आचार्य निकेतन में मेंने गणपति उत्सव का आयोजन किया था। आरती भी मेरी ही लिखी हुई गायी जाती थी, यहाँ तक कि ज़ी न्यूज़ ने भी प्रसारित किया था। ये मेरा एक सांस्कृतिक कर्तव्य था। लेकिन मैं कुरान और इस्लाम से भी उतना ही जुङा हूं। मेरी मान्यता है कि जो पक्का धार्मिक हैं वो पक्का राष्ट्रवादी है। हाल ही में इंडोनेशिया का 20000 रुपये का नोट चर्चा में हैं जिस पर वहां की मुस्लिम हस्ती के चित्र के साथ गणपति जी का चित्र भी है। गणपति वहां पर शिक्षा, कला और विज्ञान के देवता माने जाते हैं। गणेश चतुर्थी के अवसर पर इस समाचार को प्रमुखता से भारतीय मिडिया प्रकाशित कर रहा है। इस संदेश को सभी स्वीकार कर रहैं हैं फिर चाहे हिंदू हो या मुसलमान। अच्छी बात ये हैं कि मुसलमानों में भी संस्कृति के सम्मान की भावना धीरे-धीरे घर करती जा रही हैं। सोशल मीडिया और समाचार साधनों में गणेश चतुर्थी की हार्दिक बधाई मंगलकामनाये अभिनन्दन और शुभकामनाओं के संदेश मुसलमान भाई बङी संख्या में दे रहैं है। शायद फिर कोई बाल गंगाधर तिलक इस देश में दस्तक दे रहा है।।।
कुंवर महमूद अली खान मध्यप्रदेश के राज्यपाल हुआ करते थे। उनके पूर्वज राजपूत थे, इसलिए नाम के आगे कुंवर लिखते थे। धारा प्रवाह संसकृत बोलते थे। उज्जैन के कालिदास समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में आते थे, संसकृत में ही भाषण देते थे। ऐसे संस्कृति प्रेमी मुसलमानों की देश में कमी नहीं है। मध्यप्रदेश के ही प्रोफेसर अजहर हाश्मी भागवत और रामायण के विद्वान है, स्वर्गीय हनीफ शास्त्री का शास्त्र ज्ञान सर्वविदित है। इसी तरह राणा या राना लिखने वाले भी कम नहीं है। बोहरा समाज में लक्षमीधर और शिवहरे सरनेम भी मिलते हैं, वोहरा भी लिखते हैं। बोहरा समाज की उत्पत्ति नागर ब्राह्मण समाज से हुई। बहुतेरी प्रथाएं भी समान है। मैं स्वयं अपने नाम के आगे पंडित लिखता हूँ जहां कुरान से प्रेरित होकर 10000 पदों का महागीत लिखा है वहीं गणेश आरती और शिव महिमा भी लिखी है। दुख तब होता है जब देश का शिक्षित वर्ग इन पर प्रश्न चिन्ह लगाकर निरर्थक बहस करता है। जबकि ऐसे संस्कृति को जोङने वाले तत्वों को प्रोत्साहित करने की जरूरत है। कुछ हद तक संघ के वरिष्ठ प्रचारक श्री इंद्रेश कुमार ये काम कर रहैं है। हर भारती संस्कृति प्रिय बने इसके राष्ट्र प्रेमियों को पहचान कर उन्हें प्रोत्साहित करना चाहिए। कमला हैरिस की पहचान भारतीय मूल और अपनी जमीन को नहीं भूलने की वजह से हैं, उनकी ये विशेषता सर्वत्र चर्चित है। निश्चित रूप से एपीजे अबुल कलाम राष्ट्र व संस्कृति के सर्वमान्य शिखर थे, ऐसे लोग हमें सभी मतावलम्बियो में खोजना होंगे, तभी भारत शक्तिशाली बनेगा। हमें ऐसी स्वयंसेवी संस्थाओं को बनाना होगा जो धर्म पर नहीं राष्ट्र और संस्कृति के पक्षधर नागरिकों को एक मंच पर लाने के लिए समर्पित हो। जिनके साथ छद्म एजेंडा पर कार्य करने की मोहर न लगी हो।