December 24, 2024

छ: महीनों में कश्मीर के सौ से ज्यादा आतंकी ढेर,कहां छुप गए मानवाधिकारवादी

up encounter

-तुषार कोठारी

2014 से पहले तक देश और दुनिया में मानवाधिकारों का जबर्दस्त बोलबाला हुआ करता था। देश के तमाम हिस्सों में सक्रिय आतंकवादियों के मानवाधिकार बचाने के लिए देश में कई संगठन और कार्यकर्ता मौजूद थे। पंजाब के आतंकवादी हो या गुजरात और दिल्ली में मारे गए आतंकवादी। सुरक्षाबलों के कर्मचारियों को आतंकवादियों के एनकाउण्टर के बाद न्यायालयों के चक्कर लगाने पडते थे। कई बेचारों को तो जेल में बन्द भी रहना पडा था।
लेकिन अब कश्मीर के आतंकवादियों से लगाकर देश के भीतरी हिस्सों में सक्रिय नक्सलवादियों तक के धडाधड एनकाउण्टर हो रहे है,लेकिन कहीं कोई मानवाधिकार कार्यकर्ता नजर नहीं आता। 2014 के बाद देश के तमाम मानवाधिकार वादी परिदृश्य से गायब हो गए हैैं। इतना ही नहीं इन मानवाधिकार वादियों के लिए नैतिक और बौध्दिक समर्थन उपलब्ध कराने वाले बुद्धिजीवी भी कुल मिलाकर मौन रहने लगे है।
याद कीजिए उन दिनों को,जब दिल्ली के बाटला हाउस में आतंकियों के एनकाउण्टर में जान गंवाने वाले पुलिस अधिकारी को तो भुला दिया गया,लेकिन एनकाउण्टर करने वाले अन्य अधिकारियों को अपराधियों की तरह न्यायालयों के चक्कर लगाने पडे। गुजरात में आतंकियों का एनकाउण्टर करने वाले डीआईडी वंजारा को जेल में बन्द कर दिया गया। जब भी सुरक्षाबल का कोई कर्मचारी मानवाधिकार वादियों का शिकार बनता था,मानवाधिकार वादियों के खेमे में खुशियां मनाई जाती थी। लेकिन दूसरी तरफ देश की बहुसंख्य देशभक्त जनता मन मसोस कर रह जाती थी। इतना ही नहीं दुनिया के भी बडे देश मानवाधिकारों पर अपनी रिपोर्टे जारी कर भारत को लताडने की कोई कोशिश नहीं छोडती थी।
2014 के पहले का अधिकांश समय देश से प्यार करने वाले देशभक्त नागरिकों के लिए निराशा और दुखों का था। देश के तमाम हिस्सों में आए दिन बम धमाकों की खबरें आती थी। निर्दोष नागरिकों की मौतें हुआ करती थी। देश का आम नागरिक अपने साफ्ट स्टेट देश भारत को निराशा भरी कातर नजरों से देखता रहता था।

लेकिन देखिए,निराशा में डूबे भारत के उसी आम आदमी ने कैसा परिवर्तन किया। एक के बाद एक आतंकियों को साफ किया जा रहा है। हालत तो ये हो गई है कि कोई भटका हुआ युवक आतंकवादी बनता है,तो एक सप्ताह के भीतर भीतर उसकी भटकन समाप्त करके उसे फानी दुनिया से बिदा कर दिया जाता है। पहले तो आतंकियों के शव भी उन्हे सौंप दिए जाते थे। जैसे ही शव मिलता था,उन्हे फिदायीन बताकर जनाजे में भीड जुटाने और पाकिस्तान के नारे लगाने की शुरुआत हो जाया करती थी। अब आतंकियों के शव भी परिवार वालों को सौंपने की आदर्शवादिता बन्द कर दी गई है। अब ना जनाजे निकल रहे है और ना भीड जुट रही है। अब तो पत्थरबाजी भी करीब करीब खत्म हो गई है।
देश के करदाताओं का अरबों रुपया जिस कश्मीर के लिए खर्च किया जा रहा था,उसका दुरुपयोग भी अब बन्द हो गया है। परिदृश्य सुन्दर बनने लगा है। कुछ ही दिनों की बात है,कश्मीर में भी आतंकवाद पंजाब की ही तरह बीते दिनों की बात बन जाएगा।
अब सेना और पुलिस के अधिकारी खुलकर घोषणाएं कर रहे हैैं कि आतंकियों को मार दिया जाएगा। यहां तक कि पुलिस और सेना ने सूचियां तक बनाकर आतंकियों का खात्मा किया। लेकिन अब कहीं मानवाधिकारों का हनन नहीं होता है। एनकाउण्टर करने वाले सुरक्षाकर्मियों को पुरस्कृत किया जाने लगा है।
ये सबकुछ हुआ है,भारत के उस निरीह आम आदमी की बदौलत,जिसे अब तक हाशिये पर छोड दिया गया था। उसे बताया जाता था कि देश और देशभक्ति की बातें करना पिछडापन है। धर्म के नाम पर कोई कितना भी खूनखराबा करें,भारतीयों की नियति सिर्फ मरने की है। दुनिया के दूसरे देश हमें धमकाते रहे,हमारे खिलाफ चाहे जो करते रहे। हम गांधी के अनुयायी है। हम कडे शब्दों में निन्दा करने वाले अहिंसक देश है। लेकिन आखिरकार भारत के आम आदमी ने इस मूर्खताभरी बातों को नकारा और इसी का नतीजा है कि देश के तमाम मानवाधिकार वादी अब अपने बिलों में छुप चुके हैैं।

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