November 24, 2024

चित्तौडगढ किले को बचाने के लिए चलाएंगे हस्ताक्षर अभियान

चित्तौडगढ बचाओ संघर्ष समिति के महामंत्री श्री राठौर ने बताया

रतलाम,18 सितम्बर (इ खबरटुडे)। एक हजार पांच सौ सालों का लम्बा वक्त और इस दौरान हुए कई सारे हमले भी जिस चित्तौडगढ किले की दीवारों को नहीं हिला पाए,वह चित्तौडगढ किला खनन माफिया के चलते अब खतरों में घिरता जा रहा है। वल्र्ड हेरिटेज में शामिल हो चुके इस किले को बचाने के सरकारी उपाय सिर्फ कागजों तक सीमित है। लेकिन अब किले को बचाने के लिए जनता स्वयं आगे आ रही है।
चित्तौडगढ किले को बचाने के लिए बनाई गई चित्तौडगढ बचाओ संघर्ष समिति के महामंत्री  कृष्णेन्द्र सिंह राठौर ने बताया कि चित्तौडगढ किले को वर्ष २०१३ में यूनेस्को द्वारा वल्र्ड हेरिटेज में शामिल किया गया है। किले के आसपास लम्बे समय से हो रहे खनन के चलते किले के भीतर स्थित विजय स्तंभ,मीराबाई मन्दिर समेत अनेक महत्वपूर्ण स्मारकों में दरारें पड चुकी है। किले को हो रही क्षति को लेकर आवाजें भी उठती रही है। इसी के फलस्वरुप राज्य सरकार ने वर्ष २००४ से किसी भी प्रकार के खनन लायसेंस का नवीनीकरण नहीं किया। लेकिन इसका कोई फायदा नहीं हुआ। खनन माफिया की कार्यवाही लगातार जारी रही और किले को होने वाली क्षति बढती रही।
श्री राठौर ने बताया कि चित्तौडगढ के ऐतिहासिक दुर्ग को बचाने के लिए बाद में न्यायालय की भी मदद ली गई। इस सम्बन्ध में दायर एक जनहित याचिका पर राजस्थान उच्च न्यायालय की जोधपुर खण्डपीठ ने वर्ष २०१२ में किले के आसपास होने वाले खनन पर पूरी तरह रोक लगा दी। साथ ही जिन कंपनियों के पास खनन लायसेंस थे,उन्हे निरस्त कर दिया और कंपनियों पर पांच करोड रु.का जुर्माना लगा दिया। लेकिन खनन माफिया के असर के चलते तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने इस फैसले के विरुध्द उच्चतम न्यायालय में अपील कर दी। यह मामला अब भी सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है।
श्री राठौर ने बताया कि देश के ताजमहल और फतेहपुर सीकरी जैसे ऐतिहासिक स्थलों की सुरक्षा के लिए सरकारों ने बडे कदम उठाए है। ताजमहल की सुरक्षा को देखते हुए वहां की औद्योगिक ईकाईयों को वहां से हटा दिया गया है,वहीं इस पूरे क्षेत्र को नो फ्लाइंग झोन बना दिया गया है। चित्तौडगढ किले का महत्व किसी भी दृष्टि से ताजमहल से कम नहीं है। लेकिन इस ऐतिहासिक धरोहर को बचाने के मामले में  वैसी गंभीरता नहीं बरती जा रही है,जैसी कि ताजमहल आदि स्मारकों के लिए बरती जाती है।
श्री राठौर ने बताया कि बस्सी वन्य अभयारण्य,चित्तौडगढ किले से सटा हुआ है और किले के आसपास का पूरा क्षेत्र बस्सी वन्य अभयारण्य में पडता है। नियमानुसार किसी भी वन्य जीव अभयारण्य के दस किलोमीटर के दायरे में किसी प्रकार का उत्खनन तभी किया जा सकता है,जबकि इसके लिए स्टैण्डिंग कमेटी आफ द नेशनल बोर्ड आफ वाइल्ड लाइफ से अनुमति ले ली गई हो। चित्तौडगढ किले के आसपास खनन करने वाली कंपनियों के पास ऐसी कोई अनुमति भी नहीं है।
श्री राठौर ने बताया कि देश की इस महत्वपूर्ण प्रचीन धरोहर को बचाने के लिए अब चित्तौडगढ बचाओ संघर्ष समिति का गठन किया गया है। संघर्ष समिति जल्दी ही किले को बचाने के लिए हस्ताक्षर अभियान चलाएगी। इसके साथ ही संघर्ष समिति ने यह मांग भी की है कि चित्तौडगढ के विकास के लिए चित्तौडगढ विकास बोर्ड की स्थापना की जाए।

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