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 साहित्य के उपासक मंच पर आभासीय साहित्यिक गोष्ठी का हुआ आयोजन 

 
 उज्जैन,09 सितम्बर (इ खबर टुडे)। बीते दिन सोमवार को साहित्य के उपासक मंच पर आभासीय साहित्यिक गोष्ठी आयोजित की गयी, जिसका आरम्भ मनीला रोहतगी (दिल्ली) द्वारा प्रेषित सरस्वती वंदना से हुआ।  

तदोपरान्त क्रमशः जबलपुर की साअर्चना द्विवेदी व दुर्ग (छत्तीसगढ़) की दीक्षा चौबे द्वारा गणेश वंदना व स्वागत गान की सुमधुर प्रस्तुतियाँ दी गयीं। गुरुग्राम की प्रीति अग्रवाल नें अपनी रचना "चलो अपने लिए कुछ लम्हे चुराएं द्वारा जीवन में आत्मप्रेम के महत्व पर बल दिया। अर्चना द्विवेदी 'गुदालू' ने "नवस्वर, व्यंजन, लय ताल में" भी अति मनोरम रही। 

नयी दिल्ली की निशि अरोड़ा नें "जब जब मुझको मिले चुनौती" द्वारा सभी को अभिभूत कर दिया। अखिल भारतीय साहित्य परिषद् की लखनऊ महानगर इकाई के अध्यक्ष नें "बात हिन्दी की जबतक हिन्दी में न बोली जायेगी" द्वारा संप्रेषण में हिन्दी के उपयोग पर बल दिया। दीक्षा चौबे (दुर्ग) नें भी "महज भाषा नहीं है हिन्दी, सरस संस्कारधानी है" द्वारा हिन्दी की समृद्धता को व्यक्त किया। लखनऊ की ऋचा उपाध्याय नें अपनी रचना "युद्ध जब भी होता है" द्वारा युद्ध के विनाशकारी परिणाम को दर्शाया.उज्जैन के प्रशांत माहेश्वरी की रचना "मैं दिया हूँ" भी अतिआकर्षक रही। 

इन्दौर की सुश्री दिव्या भट्ट नें अपनी मधुर प्रस्तुति "मीठे शब्दों से भरे हिन्दी के हर बोल की संगीतमय प्रस्तुति देकर सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया. सोनम उपाध्याय (इंदौर) नें भी अपनी कृति अनन्त असीम संभवनाओ का आकाश" द्वारा कार्यक्रम को शोभित किया आयोजन में उदयवीर भारद्वाज (कांगड़ा), डॉ. गीतांजलि मिश्र (उज्जैन), निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी', सुनीता राजीव (दिल्ली) व गरिमा सिंह (रायबरेली) की उपस्थिति भी गरिमामयी रही। कार्यक्रम का संचालन मंच के संस्थापक प्रशांत माहेश्वरी नें किया। अंत में लखनऊ की आदरणीया श्रीमती मधु पाठक 'मांझी' द्वारा आभार ज्ञापन के साथ कार्यक्रम सहआनंद सम्पूर्ण हुआ।