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अर्धसैनिक बलों के जवानों के हित में कोर्ट ने सुनाया अहम फैसला, पेंशन पर आई बड़ी अपडेट  

 

पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने अर्धसैनिक बलों के जवानों के हित में आज एक बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने साफ शब्दों में कहा है कि अगर कोई जवान गंभीर बीमारी के कारण मजबूरी में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (VRS) लेता है तो उसे विकलांगता पेंशन से वंचित नहीं किया जा सकता। यह फैसला उन जवानों के पक्ष में है जो गंभीर बीमारी से जूझ रहे हैं।

 कोर्ट ने यह ऐतिहासिक फैसला सीआरपीएफ के लांस नायक अशोक कुमार के याचिका पर सुनाया। अशोक कुमार 1985 में सीआरपीएफ की 13वीं बटालियन में नौकरी करना शुरू किए । साल 2000 में जब उनकी पोस्टिंग मणिपुर में हुआ तब उन्हें 'रेट्रो बलबर न्यूराइटिस' नाम की एक गंभीर दृष्टि रोग हो गया। इस बीमारी के कारण उन्हें रंग पहचान में दिक्कत होने लगी। साल 2005 में वार्षिक मेडिकल जांच कर उन्हें सेवा से अयोग्य घोषित कर दिया गया था।

 अशोक कुमार ने कोर्ट को जानकारी दी कि सीआरपीएफ के सेवन नियमों के अनुसार रंग पहचाना अनिवार्य योग्यता है और उनके दृष्टि क्षमता में एक स्थाई कमी के कारण वह सेवा देने के योग्य नहीं रहे। इसके बाद भी विभाग ने उन्हें  सेवा से मुक्त नहीं किया और साल 2009 में मेडिकल बोर्ड ने उन्हें इनवेलिडेशन आधार पर सेवा से बाहर करने की सिफारिश की लेकिन विभाग ने कोई औपचारिक फैसला ही नहीं सुनाया। इसके बाद वह काफी परेशान हो गए और 2009 में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के लिए आवेदन किया जिसे विभाग ने स्वीकार कर लिया।


 अशोक कुमार ने जब अपने विभाग से विकलांगता पेंशन के लिए कहा तो सीआरपीएफ के महानिदेशक ने 19 मई 2017 को यह दावा कर कर उनके मांग को खारिज कर दिया कि उन्होंने स्वेच्छा से नौकरी छोड़ी है इसलिए वह PENSION के पात्र नहीं है।


 केंद्र सरकार के तरफ से यह भी कहा गया कि उन्होंने खुद VRS लिया था इसलिए उन्हें विकलांगता पेंशन नहीं मिल पाएगा। लेकिन हाई कोर्ट ने सभी दलीलों को खारिज कर दिया।


 हाई कोर्ट ने अर्धसैनिक बलों के पक्ष में सुनाया बड़ा फैसला 


 हाई कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि कोई भी जवान गंभीर रूप से पीड़ित हो और विभाग समय पर निर्णय न ले तो मजबूरी में लिया गया VRS स्वैच्छिक नहीं माना जा सकता। इस लापरवाही के कारण कर्मचारियों को विभाग पेंशन से वंचित नहीं कर सकता।  यह फैसला सभी अर्धसैनिक बलों के  हित में सुनाया गया है।