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International Space Station: एस्ट्रोनॉट को ISS में दिया जाता है ये नंबर, इसके पीछे है ये खास वजह 

 

International Space Station : जैसे कि आप सभी को पता है कि भारत के शुभ्रांशु शुक्ला तीन अन्य देशों के एस्ट्रोनॉट्स के साथ इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में सफलतापूर्वक जा चुके है. शुभ्रांशु शुक्ला  ने अपनी पहली रात वहां अच्छे से गुजारी.

आप लोगों ने देखा और सुना होगा कि एस्ट्रोनॉट के नाम के साथ एख नंबर बोला जाता है. क्या आप जानते है उस नंबर का मतलब और ये एस्ट्रोनॉट को क्यों दिया जाता है? अगर नहीं, तो चलिए आज हम आपको बताते है.

इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) अपने हर एस्ट्रोनॉट को एक अलग क्रू आईडी नंबर और क्रू पोजिशन नंबर देता है. वैसे तो एस्ट्रोनॉट  को उनके नाम से ही बुलाया जाता है, लेकिन ये नंबर या कोड का उपयोग खासतौर पर कुछ परिस्थितियों में किया जाता है.

अंतरिक्ष में 45 से ज़्यादा देशों के नागरिक और कई तो  30-35 लोग दो या तीन बार जा चुके हैं. रिकॉर्ड की माने तो अब तक 640 लोग अंतरिक्ष में जा चुके है. साल 1984 में सोयूज़ T-11 मिशन के साथ पहले भारतीय राकेश शर्मा अंतरिक्ष गए थे.

कल्पना चावला भी भारत की पहली महिला एस्ट्रोनॉट थीं. ISS में दिया गया ये नंबर रक्षा और सिस्टम लॉगिंग के लिए दिया जाता है. स्पेस स्टेशन में कई सिस्टम्स होते हैं जिनमें क्रू मेंबर की एक्टिविटी या मेडिकल स्टेटस को रिकॉर्ड किया जाता है.

जैसे कोई मेडिकल टेस्ट, इमरजेंसी ड्रिल या एक्सपेरिमेंट कर रहा है, तो उस सिस्टम में वो अपने क्रू नंबर या ID से ही लॉगिन कर सकते हैं. एस्ट्रोनॉट  स्पेससूट पर उनका नंबर (जैसे EVA-1, EVA-2) लिखा होता है.

स्पेससूट में उनकी शक्ल पहचानना मुश्किल होता है इसलिए उन्हें इस नंबर से जाना जाता है. कई बार नाम और आवाज एक जैसी होने के कारण भी एस्ट्रोनॉट पहचानना मुश्किल हो जाता है, इसलिए  टेक्निकल कम्युनिकेशन में नंबर या कॉल साइन इस्तेमाल करना ज़रूरी होता है. ये नंबर 1970 के दशक से शुरू हुआ था.