तरबूज और खरबूजे की अगेती फसल लेने के लिए प्लास्टिक-लो-टनल में नवंबर के अंतिम सप्ताह से लेकर 15 फरवरी तक इसकी बिजाई एवं पौध की रोपाई बड़ी आसानी से की जा सकती हैं। मार्च के अंत में या अप्रैल की शुरुआत में इनके फल तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं। डॉ. सुरेश कुमार अरोड़ा, सलाहकार प्रोफेसर, महाराणा प्रताप बागवानी विश्वविद्यालय करनाल ने बताया कि खरबूजे की संकर किस्मों का चुनाव नवंबर के अंतिम सप्ताह से दिसंबर अंत तक इन फसलों की सीधी बिजाई प्लास्टिक लो टनल कर सकते हैं।
किसानों को जनवरी फरवरी के महीने में खेत में बीज की सीधी बिजाई करने के लिए संकर प्रजातियों का प्रयोग करना चाहिए जिनमें बॉबी, सन्त्री प्लस, मधु राजा, इंथानॉन, मुस्कान, मधुरस, मधुर, मृदुला और ग्लेडियल अधिक प्रसिद्ध हैं। इन संकर प्रजातियों के बीज के माध्यम से पनीरी / पौध तैयार करके भी जनवरी माह के शुरू में रोपाई भी की जा सकती है और इन प्रजातियों से प्लास्टिक लो टनल की सहायता से ठंड से सुरक्षा प्रदान करवा कर अगेती फसल लेना संभव हो जाता है। तरबूज की उन्नतशील किस्में तरबूज की संकर प्रजातियों में आईबीएच 23, हनी प्लस, मन्नत, जन्नत, कालिया, मिश्री प्लस, विशाला, ममता और मिलोडी की बाजारों में ज्यादा मांग रहती है।
बिजाई की विधिः ऊपर उठी क्यारियों के किनारे पर इन फसलों के बीजों को सीधा बोया जाता है और अच्छी विकसित फसल लेने के लिए टपका सिंचाई की विधि से ऊपर उठी क्यारियों के मध्य में पौध की रोपाई करें। बीजों की सीधी बिजाई करने के लिए एक बेड की दूसरे बेड से दूरी लगभग 2 मीटर रखें और पौधे से पौधे का अंतर करीब 60 सेंटीमीटर होना चाहिए। साथ ही प्लास्टिक मल्च एवं टपका सिंचाई के प्रयोग से एक कतार की दूसरी कतार से दूरी लगभग डेढ़ से 2 मीटर होती है और पौधे से पौधे की दूरी 60 सेंटीमीटर रखनी चाहिए।
रसायनिक खादों का सही प्रयोगः किसान 8-10 टन गली गोबर की खाद या 5 से 6 क्विंटल प्रति एकड़ मुर्गी की खाद एवं 2 से 3 क्विंटल नीम की खली प्रति एकड़ की दर से खेतों में डालें। साथ ही मरीनो या माइक्रोफूड (सोयल) का 2 लीटर प्रति एकड़ का प्रयोग करें। 50 किलो डीएपी रसायनिक खाद और 30 से 35 किलो न्यूरेट ऑफ पोटाश प्रति एकड़ की दर से भूमि पर बुरकाव कर दें।

