पिछले एक सप्ताह से पंजाब व हरियाणा सरकार के बीच पानी का विवाद बढ़ता जा रहा है। हरियाणा सरकार भाखड़ा डैम से 8500 क्यूसिक पानी की मांग कर रही है, जबकि पंजाब सरकार इसे सिरे से खारिज कर रही है। ऐसे में पंजाब तथा हरियाणा के बीच विवाद बढ़ता जा रहा है। हरियाणा व पंजाब के मुख्यमंत्री एक-दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं।
पंजाब की तरफ से पूरे मामले पर अपना पक्ष रखते हुए कहा गया है कि हरियाणा 21 सितंबर 2024 से लेकर 20 मई 2025 तक डिप्लीशन अवधि में पहले ही अपना निर्धारित पानी का हिस्सा उपयोग कर चुका है। इसके अलावा इस बार पोंग और रंजीत सागर जैसे दो बड़े बांधों में जलस्तर का औसत काफी नीचे है। इसका मुख्य कारण जलवायु परिवर्तन को बताया जा रहा है। इसके अलावा कम वर्ष और हिमपात के कारण भी पानी की कमी हुई है। इस समय भाखड़ा डैम में 19 फीट अतिरिक्त पानी है। इस पर पंजाब का कहना है कि इसे धान की फसल के लिए जून के अंत तक संचित रखना जरूरी है।
हरियाणा सरकार का दावा
हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने पंजाब के मुख्यमंत्री को एक पत्र लिखा। 27 अप्रैल को लिखे गए इस पत्र में कहा गया कि पंजाब सरकार 23 अप्रैल को बीबीएमबी द्वारा लिए गए फैसले का सम्मान नहीं कर रही है। इसमें हरियाणा को अतिरिक्त 4500 क्यूसिक पानी देने की अनुमति दी गई थी, यह मांग 4 अप्रैल को उन्हें दिए गए 4 हजार क्यूसिक पानी से अलग है। वहीं पंजाब सरकार ने 28 अप्रैल को बीबीएमबी की बैठक में हरियाणा को अतिरिक्त पानी देने का विरोध किया। पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने एक वीडियो जारी करते हुए कहा कि हरियाणा पहले ही अपने निर्धारित पानी के हिस्से 2.987 एमएएफ के मुकाबले 3.110 एमएएफ पानी का उपयोग कर चुका है। इस हिसाब से यह पानी 103 प्रतिशत बनता है।
हरियाणा के जिले हो रहे प्रभावित
मुख्यमंत्री नायब सैनी ने कहा कि यदि अब पानी नहीं छोड़ा गया तो मानसून के समय पूर्वी नदियों का अतिरिक्त पानी पाकिस्तान जाएगा, जो इंडस वाटर ट्रीटी यानी सिंधु जल संधि के निलंबन के बाद नहीं जाना चाहिए। मुख्यमंत्री ने कहा कि इस समय पानी की कमी के कारण हिसार, सिरसा और फतेहाबाद जिले प्रभावित हो रहे हैं। यदि अब पानी नहीं मिला तो आगे इन जिलों पर और ज्यादा असर पड़ेगा। इन जिलों में पीने के पानी की समस्या भी पैदा हो सकती है।
क्या है बीबीएमबी
1960 में इंडस जल संधि के तहत भारत को सतलुज, रावी और ब्याज का पानी मिला था। उस समय हरियाणा और पंजाब एक ही थे। 1966 में जब पंजाब और हरियाणा अलग-अलग हुए तो भाखड़ा प्रबंधन बोर्ड यानी बीएमबी का गठन किया गया। 1967 में भाखड़ा-नंगल परियोजना के प्रशासन व रखरखाव का काम पंजाब को सौंप दिया गया। जब परियोजना का काम पूरा हो गया तो इसे ब्याज निर्माण बोर्ड यानी बीएमबी को सौंप दिया। 1967 में ही इसका नाम बदलकर बीबीएमबी कर दिया गया। बीबीएमबी पंजाब के साथ-साथ हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली और चंडीगढ़ को पानी की आपूर्ति सुनिश्चित करता है। इन राज्यों को पानी का बंटवारा एक साल में दो बार तय किया जाता है। इसमें कमी अवधि यानी डिप्लीशन पीरियड 21 सितंबर से 20 मई के बीच है। इसका फिलिंग पीरियड 21 मई से 20 सितंबर के बीच होता है।
भूजल संकट से जूझ रहा पंजाब
पंजाब में पानी का दोहन अधिक होता है। इसलिए पंजाब इस समय भूजल संकट से जूझ रहा है। इस कारण भूजल की बजाय नरहों से सिंचाई पर बल दिया जा रहा है। इसके लिए पंजाब सरकार ने 4 हजार करोड़ रुपये खर्च करके 79 नहरों और 1600 किलोमीटर लंबे खालों का पुनर्निर्माण किया है। इनके निर्माण के बाद नहर के जल का उपयोग 12 से 13 प्रतिशत तक बढ़ गया है। पंजाब का कहना है कि यदि अब और पानी हरियाणा को दिया गया तो 10 जून के बाद गुरदासपुर, पठानकोट, अमृतसर और तरनतारन में धान की फसल प्रभावित हो जाएगी।
कानूनी प्रक्रिया की बन रही संभावना
यदि दोनों राज्यों के बीच आपसी बातचीत से समाधान नहीं निकलता है तो फिर केंद्रीय विद्युत मंत्रालय मंत्रालय को इनके बीच हस्तक्षेप करना पड़ेगा। इसके बाद मंत्रालय कोई भी निर्देश जारी कर सकता है। इससे कानूनी प्रक्रिया की भी संभावना बन सकती है और विवाद आगे बढ़ सकता है।