Raag Ratlami Polo Ground : अच्छे खिलाडी देने वाले मैदान ने विकास को भी राह दिखाई,अब मैदान की सुुध कौन लेगा..?
-तुषार कोठारी
रतलाम। जिस मैदान ने शहर के साथ साथ प्रदेश और देश को भी कई अच्छे खिलाडी दिए,शहर और प्रदेश के विकास को नई राह दिखाने की जिम्मेदारी भी उसी इकलौते मैदान ने उठाई। जिस मैदान को खिलाडियों के लिए हमेशा उपलब्ध रहना चाहिए था,विकास की नई इबारत लिखने के लिए उसे लम्बे वक्त के लिए खिलाडियों से दूर कर दिया। इसके बावजूद मैदान ने विकास को राह दिखाने की जिम्मेदारी भी निभाई। लेकिन अब सवाल ये है कि मैदान की सुध कौन लेगा और कब लेगा?
किसी जमाने में इस मैदान पर राजा महाराजा पोलो खेला करते थे। राजा महाराजाओं के शानदार घोडों की टापों में दब दब कर बने इस मैदान को बाद में तमाम तरह के खेलों के लिए आरक्षित कर दिया गया। यहां पर क्रिकेट के मैच भी होने लगे और हाकी,फुटबाल जैसे खेल भी। तमाम तरह के खेलों में हिस्सेदारी करने वाले खिलाडियों की तैयारी यह मैदान करवाता रहा।
लेकिन जब बात इन्वेस्टमेन्ट समिट की आई,तो जिम्मेदारों ने इसी मैदान को चुना। सूबे के मुखिया से लगाकर देश प्रदेश के बडे कारोबारियों को आकर्षित करने के लिए इसी मैदान को मुरम और पत्थरों से भर दिया गया। मैदान में बडे बडे डोम तान दिए गए। बारिशों का मौसम इन्वेस्टमेन्ट समिट पर पानी ना फेर दे,इसके लिए जबर्दस्त तैयारियां की गई और इसका खामियाजा मैदान को भुगतना पडा।
जिस मैदान पर धावक दौड लगाने की प्रेक्टिस किया करते थे,जहां क्रिकेटर बालिंग और बेटिंग के नए नए कारनामे दिखाया करते थे,उस मैदान को मुरम और पत्थरों से पाट दिया गया,ताकि मेहमानों को कीचड से सामना ना करना पड जाए।
एक दिन की समिट के लिए मैदान को महीने भर पहले से कब्जे में ले लिया गया। मैदान पर डोम और तंबूओं का पूरा शहर सा बसा दिया गया। समिट हुआ तो विकास के कई सारे दावे हुए। समिट में हजारों करोड के निवेश के प्रस्ताव भी आए और शहर में नए उद्योगों के आने का रास्ता भी खुला। पूरा शहर इन्वेस्टमेन्ट समिट के जरिये आने वाले विकास के सुनहरे सपनों में खोया रहा।
लेकिन ना तो किसी को मैदान की याद आई और ना किसी को खिलाडियों का दर्द दिखा। ये जरुर है कि सूबे के मुखिया को इस बात की जानकारी दे दी गई थी और यही वजह थी कि उन्होने अपनी घोषणाओं के दौरान मैदान की स्थिति को फिर से बेहतर बनाने के लिए पांच करोड रुपए देने की घोषणा भी हाथों हाथ ही कर दी थी।
लेकिन बडा सवाल ये है कि सूबे के मुखिया की घोषणा के बाद भी मैदान खिलाडियों के लायक कब बनेगा? इन्वेस्टमेन्ट समिट को सफलतापूर्वक सम्पन्न हुए को तीन दिन हो चुके है। टेण्ट तंबू उखाडे जा रहे हैैं,लेकिन इनके उखडने और मैदान से हटने में आखिर कितने दिन लगेंगे। समस्या तब भी खत्म नहीं होगी। टेण्ट तंबूओं के उखडने के बाद मैदान में डाली गई सैैंकडों ट्राली मुरम और पत्थरों को मैदान से निकालने की बडी मशक्कत सामने होगी।
वैसे ये मैदान शहर सरकार की मिल्कियत है इसलिए मैदान की दशा सुधारने की जिम्मेदारी भी शहर सरकार की है। शहर सरकार की हालत शहर का हर बाशिन्दा जानता है। सभी को पता है कि शहर सरकार कोई काम ठीक से नहीं कर पाती। ऐसी हालत में जरुरत इस बात की है कि जिला इंतजामिया,शहर सरकार और जिम्मेदार जनप्रतिनिधि मैदान की दशा सुधारने की टाइम लाइन निर्धारित करें और इसी टाइम लाइन पर मैदान को फिर से खिलाडियों के लायक बनाए। इन्वेस्टमेन्ट समिट की पूरी सफलता तभी सार्थक हो सकेगी।
कब तक तकलीफें झेलेंगे रतलाम के लोग..?
शहर के खिलाडी,जहां इकलौते मैदान की मौत से हैरान है,वहीं शहर के हजारों बाशिन्दे अधूरे कामों के पूरा नहीं होने से परेशान है। शहर सरकार और सरकारी महकमो के अफसर लोगों को नई सुविधाएं देने के नाम पर काम चालू तो कर देते है,लेकिन ये नहीं बताते कि काम पूरा कब होगा?
शहर के जिस कोने में जाइए,इसी तरह के नजारे मिलेंगे। कस्तूरबा नगर मेनरोड को फोरलेन में तब्दील करने के लिए ऐन बारिश से पहले सडक़ को खोद दिया गया। सडक खुदी तो इस पर से आवागमन बन्द हो गया। अब हजारों लोगों को सुबह शाम परेशानी झेलना पड रही है। करने वालों ने सडक़ की खुदाई में जितनी तेजी दिखाई थी,आगे के काम में उतनी ही सुस्ती दिखा रहे है। सडक़ खोदने के बाद अगला काम अब तक शुरु नहीं हुआ है। फूल छाप पार्टी के मुखिया तक को इसके लिए सडक़ पर उतरना पडा,लेकिन इसके बावजूद हालात जस के तस है।
उधर पुलिस लाइन जाने वाले नाले की पुलिया को चौडा करने के लिए पहले से बनी हुई पुलिया को तोड दिया गया। दूसरी तरफ के हजारों लोगों को आने जाने के लिए कई किलोमीटर का अतिरिक्त चक्कर लगाना पड रहा है। पुलिया तोडने वालो ने जितनी तेजी से पुलिया तोडने में दिखाई थी,नई पुलिया बनाने के काम में उतनी ही सुस्ती है। नई पुलिया बनाने का काम कई दिन गुजरने के बाद भी चालू नहीं हुआ है।
सुभाष नगर का रेलवे ओव्हर ब्रिज तो सूबे के मुखिया के हाथों चालू करवाया जाना था,लेकिन पुल बनाने वाले महकमे की सुस्ती दूर ही नहीं हुई और ओव्हर ब्रिज अभी भी इसी इंतजार में है कि कब उसका उद्धार होगा? कुल मिलाकर शहर में हर तरफ इसी तरह के नजारे है लेकिन इसके लिए बोलने वाला कोई नहीं है।
तबादला रुकवाने की जद्दोजहद
मोटर गाडियों वाले महकमे के साहब कई बरसों से रतलाम में ही जमे हुए थे। बस और ट्रक वालों से लगाकर छोटे चार पहिया वाहनों के मालिक,साहब की लूट खसोट से बेहद परेशान थे,लेकिन साहब का दावा था कि उनका लेन देन उपर तक है इसलिए उनका बाल भी बांका नहीं हो सकता। लेकिन इस बार के तबादला सीजन में साहब का भी नम्बर आ गया।
कई बरस रतलाम में गुजार चुके साहब किसी भी कीमत पर रतलाम से जाने को तैयार नहीं है,इसलिए जैसे ही आर्डर आया,उनकी दौड भाग शुरु हो गई। सूबे की राजधानी पंहुचकर उन्होने तबादला रुकवाने की तमाम कोशिशें की। जानकार बताते है कि तब राजधानी में बात नहीं बनी तो साहब वहीं पंहुच गए जहां से नए साहब आने वाले है। साहब ने नए साहब को पटान ेकी कोशिश की,ताकि अगर वो ही नहीं आए तो साहब को जाना नहीं पडेगा। लेकिन उनकी बात वहां भी नहीं बनी। साहब की कोशिशें अभी भी जारी है। लोग पूछ रहे है कि महकमे के उपर वाले अफसर इन साहब को कब रिलीव करेंगे?