Raag Ratlami Jewelry Showroom शहर में नए नए शोरुम आने से चमकने लगा सोने का बाजार और चर्चा में आ गई बांग्लादेशी घुसपैठियों की भरमार/फूल छाप पार्टी में कयामत से लम्बा हुआ इंतजार

-तुषार कोठारी
रतलाम। शहर में ज्वेलरी के नए शोरुम की शुरुआत के साथ जहां ज्वेलरी वालों के बीच नई काम्पिटिशन की शुरुआत हुई है,वहीं सोने के बाजार के बहाने शहर में हो रही बांग्लादेशी घुसपैठियों की भरमार भी चर्चाओं में आ गई है।
कुछ सालों पहले तक बांग्लादेशी घुसपैठ के मामले देश के सीमावर्ती इलाकों तक ही सीमित थे,लेकिन वोट बैैंक की राजनीति के चलते बांग्लादेशी घुसपैठिये धीरे धीरे देश की राजधानी दिल्ली होते हुए देश के अंदरुनी हिस्सों तक पंहुचने लगे। आज देश के लगभग हर इलाके में बांग्लादेशी घुसपैठिये आबाद हो रहे है और धीरे धीरे वोटर आईडी और आधार तक बनवाने लगे है।
इन्ही बांग्लादेशी घुसपैठियों के साथ साथ रोहिंग्या आतंकी भी देश के अंदरुनी इलाकों में पंहुचते जा रहे है और देश के अलग अलग इलाकों में आतंकी खतरे मण्डराने लगे है।
अब सवाल ये उठता है कि ज्वेलरी शोरुम की शुरुआत का बांग्लादेशी घुसपैठियों से क्या कनेक्शन हो सकता है? तो इसका आसान सा जवाब ये है कि ज्वेलरी शोरुम,जिन गहनों की बिक्री करते है,उन्हे बनाने वाले कारीगर किसी जमाने में एक विशेष जाति समुदाय के हुआ करते थे,लेकिन बांग्लादेशी घुसपैठ की शुरुआत के दौरान गहने बनाने वाले बंगाली कारीगर भी रतलाम लाए जाने लगे थे।
ज्वेलरी बेचने वाले व्यापारियों ने देखा कि बंगाली कारीगर,यहां के लोकल कारीगरों की तुलना में बेहद सस्ती दरों पर काम करने को तैयार रहते थे। व्यापारियों के लिए ये बहुत फायदे का सौदा था। नतीजा ये हुआ कि ज्वेलरी व्यवसायी गहने बनवाने का काम बंगाली कारीगरों को देने लगे और इसके चलते स्थानीय कारीगरों के पास काम की कमी होने लगी।
गहने बनाने के लिए बंगाली कारीगरों को बुलाने और उन्हे यहां रहने खाने की सुविधा उपलब्ध कराने वालों में सबसे आगे वे ही व्यवसायी थे,जो शहर के बडे व्यवसाई थे और जो आज ब्राण्ड बनाकर देश भर में व्यवसाय कर रहे है।
बात सिर्फ बंगाली कारीगरों तक होती तो भी ठीक था,लेकिन बंगाली कारीगरों के नाम पर कितने बांग्लादेशी घुसपैठिये रतलाम में आकर बस गए है कोई नहीं जानता। इन बांग्लादेशी कारीगरों की तादाद आज हजारों में पंहुच गई है। सिर्फ इतना ही नहीं,बांग्लादेशी घुसपैठियों द्वारा व्यापारियों का लाखों का सोना गायब करने की कई वारदातें हो चुकी है।
मामला सोने का है इसलिए ऐसी वारदातों में से बहुत थोडी ही बाहर आ पाती है,जबकि कई वारदातें तो उजागर ही नहीं होती। कई व्यापारी सोना गायब हो जाने का गम चुपचाप बर्दाश्त कर लेते है। बहुत थोडे व्यापारी ऐसे होते है,जिनके कारीगरों द्वारा सोना गायब करने की घटना पुलिस तक पंहुच पाती है।
ऐसे मामले,जो पुलिस तक पंहुच भी जाते है,तो उनका निराकरण कुछ नहीं हो पाता। पुलिस एफआईआर दर्ज कर लेती है,लेकिन चोरी करके भागे कारीगर की तलाश में बंगाल तक जाने की हिम्मत कोई पुलिस अधिकारी नहीं कर पाता है। शहर में सोने की चोरी की आजतक जितनी भी वारदातें हुई है,उनमें से आज तक एक भी चोर को पकडा नहीं जा सका है।
इतना सबकुछ होने के बावजूद ज्वेलरी बाजार के बडे खिलाडी,बांग्लादेशी घुसपैठियों को बसाने टिकाने में लगे हुए है। शहर में बस चुके इन हजारों बांग्लादेशी या बंगालियों का कभी कोई वैरिफिकेशन भी नहीं किया जाता। वर्दी वाले भी इस तरफ से हमेशा आंखे मूंदे रहते है। वर्दी वालों को भी नहीं पता कि शहर में हजारों की तादाद में बसे इन कथित कारीगरों में कितने बांग्लादेशी है और कितने रोहिंग्या?
सोने की शुद्धता के लिए पूरे देश में चर्चित रतलाम के इस बाजार का एक और स्याह पहलू भी है,जिस पर कभी कोई ध्यान नहीं देता। देश भर में बडे ब्राण्ड बन चुके व्यवसायी और अन्य ज्वेलरी विक्रेताओं के लिए ज्वेलरी बनाने वाले कारीगर खतरनाक तेजाब के साथ खतरनाक परिस्थितियों में काम करते है। लेकिन उन्हे उनकी मेहनत का वो मेहनताना नहीं मिलता,जिसके वो हकदार है।
बडे व्यवसाइयों के यहां दर्जनों कारीगर काम करते है,लेकिन सरकार द्वारा बनाए गए किसी भी नियम कायदे का इनके यहां पालन नहीं किया जाता। ना तो उन्हे ठीक से मजदूरी दी जाती है और ना ही नियमानुसार कोई अन्य सुविधा उन्हे दी जाती है।
बहरहाल,सोने के लिए पूरे हिन्दुस्तान में नाम कमा चुके रतलाम के ज्वेलरी बाजार के पीछे कई सारे झोल है। बडे बडे शोरुम्स में शानदार ज्वेलरी आइटम चमकदार बक्सो में रखकर शोकेस किए जाते है। शानदार गहनों की चमक दमक के चलते इन्हे बनाने वाले कारीगरों की मेहनत अंधेरे में ही रह जाती है। गहनों की चमक दमक अवैध घुसपैठियों के खतरों को भी छुपा रही है,जो कि शहर के लिए कभी भी खतरनाक साबित हो सकती है।
फूल छाप पार्टी में कयामत से लम्बा इंतजार
फूल छाप पार्टी के नेता लम्बे अरसे से इंतजार कर करके परेशान हो रहे है। उनका इंतजाल कयामत से भी लम्बा हो चुका है। लेकिन पार्टी वाले है कि आगे ही नहीं बढ रहे। जब फूल छाप पार्टी की जिले की कमान दोबारा से भैया के हाथों में आई थी,तो तमाम नेताओं ने अपने अपने हिसाब के पद पाने के लिए मशक्कत शुरु कर दी थी। तमाम नेता अपने अपने आकाओं को मनाने रिझाने में जुट गए थे ताकि उन्हे वजनदार जिम्मेदारी मिल सके।
पहले जिले के मुखिया ने बताया कि जैसे ही सूबे के मुखिया का नाम घोषित हो जाएगा वैसे ही जिले की नई टीम भी घोषित कर दी जाएगी। लेकिन प्रदेश के मुखिया का मामला देश के मुखिया के चक्कर में अटक गया। फूल छाप पार्टी के देश के मुखिया का चयन अभी अटका हुआ है। इसी वजह से प्रदेश के मुखिया का चयन अटक गया। और इसी वजह से जिले का निराकरण नहीं हो रहा है।
कुल मिलाकर फूल छाप के लोकल नेता बेचारे समझ ही नहीं पा रहे है कि उन्हे अभी कितना इंतजार और करना पडेगा। कहीं ऐसा ना हो जाए कि उनके नाम का एलान हो तब तक कार्यकाल ही समाप्त होने को आ जाए।