निजी जमीन पर नगर निगम द्वारा पेयजल टंकी बनाये जाने पर कोर्ट ने लगाई रोक
रतलाम,31 अगस्त (इ खबर टुडे)। नगर निगम द्वारा अमृत सागर बगीचे के सामने बनाई जा रही पेयजल टंकी के काम के निर्माण कार्य पर न्यायलय ने रोक लगा दी है। नगर निगम द्वारा उक्त पेयजल टंकी निजी भूमि पर बनाई जा रही थी। निजी भूमि के मालिक द्वारा न्यायालय में गुहार लगाए जाने के बाद कोर्ट ने मामले का पूरी तरह निराकरण होने तक स्थायी स्टे दे दिया है। कोर्ट ने प्रारंभिक रूप से माना है कि यह जमीन निजी है और जब तक इसका पूरी तरह निराकरण नहीं हो जाता है इस पर नगर निगम यहाँ किसी तरह का कोई निर्माण कार्य नहीं कर सकेगी।
प्रकरण में वादी के अभिभाषक विस्मय अशोक चत्तर ने मामले की विस्तार से जानकारी देते हुए बताया नगर निगम जिस जमीन पर पेयजल टंकी का निर्माण करने जा रहा था वह जमीन निजी है। जमीन के वास्तविक मालिक कुतुबुद्दीन पिता अब्दुल कादर के वारिस फातिमाबाई पति कुतुबुद्दीन, जहरा पिता कुतुबुद्दीन पति मुर्तजा रावटीवाला और हाजरा पिता कुतुबुद्दीन पति बुरहान दलाल ने इस जमीन को स्वयं की बताते हुए नगर निगम सहित अन्य लोगो के खिलाफ वाद दायर किया था।
इस जमीन पर टंकी निर्माण के लिए महापौर प्रहलाद पटेल ने भूमिपूजन भी कर दिया था। इसके बाद टेकेदार ने यहाँ बड़ा गड्ढा कर दिया। वादीगण ने जब उन्हें रोकने का प्रयास किया तो उसने काम नहीं रोका। इससे व्यथित होकर वादीगण ने यह वाद लगाते हुए इस जमीन के दस्तावेज न्यायालय में प्रस्तुत किए थे । निगम और प्रशासन की तरफ से भूमि की मालकियत के सम्बन्ध में कोई दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किए जा सके। इस पर चतुर्थ व्यवहार न्यायाधीश जितेंद्र रावत ने प्रस्तुत दस्तावेजों के आधार पर वादीगण को प्रकरण के निराकरण तक का स्टे दे दिया है।
पहले भी आवंटित हो चुकी जमीन
प्रकरण के दौरान वादी पक्ष ने न्यायालय में प्रस्तुत दस्तावेजों में बताया कि सर्वे क्रमांक 624 आज भी शासन के नाम पर दर्ज है। यह जमीन पूर्व में डीडीनगर थाने के कर्मचारियों के आवास और कम्युनिटी हाल के लिए आवंटित की जा चुकी थी किंतु इसके खसरे की नकल स्वामित्व का कोई प्रमाण नहीं है। केवल खसरे में दर्ज होने से ही जमीन शासकीय नहीं हो जाती है। वादीगण की और से न्यायलय में भूमि के स्वामित्व से संबंधित सारे दस्तावेज न्यायलय में प्रस्तुत किए गए है।
अभिभाषक विस्मय अशोक चत्तर ने बताया कि न्यायालय ने उनके तर्कों और तथ्यों से सहमत होते हुए यह माना कि यदि वादीगण के पक्ष में स्थगन आदेश न दिया गया तो उन्हें अपूरणीय क्षति हो सकती है। इसी आधार पर वादीगण के पक्ष में प्रकरण के अंतिम निराकरण तक स्थगन आदेश दिया गया है।