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Ratlam News: रतलाम के जावरा में एक करोड़ से बने संजीवनी व बीपीएचयू बिल्डिंग के कमरे खा रहे हैं धूल

 

Ratlam news: रतलाम के जावरा में कोरोनाकाल के बाद से स्वास्थ्य विभाग चिकित्सा सेवाएं बढ़ाने के लिए करोड़ों रुपए खर्च कर रहा है। इनमें से कुछ खर्चे फिजूल साबित हो रहे हैं। इसका उदाहरण शहर में करीब 1 करोड़ से बने संजीवनी भवन और बीपीएच यूनिट है। दोनों पर 50-50 लाख रुपए खर्च हुए लेकिन एक साल से इनके ताले नहीं खुले हैं। अंदर के कमरे धूल खा रहे और ग्राउंड में गाड़ियां पार्क हो रही हैं। रात के समय यही ग्राउंड असामाजिक तत्वों का अड्डा बन जाता है। स्वास्थ्य विभाग आगे से नियुक्ति नहीं होने का कहकर पल्ला झाड़ लेता है। वहीं वरिष्ठ भी चुप्पी साध लेते हैं। दिखाने के लिए सेवाओं के नाम पर रुपए तो खर्च हो रहा है और वाह-वाही भी लूटी जा रही है। वेल प्लानिंग नहीं होने से न उनका उपयोग हो रहा और न मरीजों को फायदा मिल रहा है।

अस्पताल के पीछे बीपीएच (ब्लॉक पब्लिक हेल्थ) यूनिट तैयार की गई। भवन तो बना लेकिन मामला हैंडओवर में अटका है। संभवतः या तो लोकार्पण के लिए नेता नहीं मिल रहे या फिर उसे शुरू करने के स्थिति में अभी विभाग नहीं है। बीपीएचयू में लैब स्थापित होना है जिसमें न सिर्फ मरीजों की सैंपलिंग होगी बल्कि जांच आदि होने के साथ उन्हें रिपोर्ट भी दी जाएगी। इसके अलावा मरीजों के इलाज से लेकर टीकाकरण के साथ नियमित चलने वाले स्वास्थ्य कार्यक्रम भी यही होना है। कम्प्यूटर कक्ष समेत दो हॉल वाला भवन अब भी वीरान पड़ा है। मरीजों को जांच आदि के लिए निजी पैथालॉजी लैब के चक्कर लगाना पड़ रहे हैं। इसे पूरे ब्लॉक की मॉनिटरिंग के लिए बनाया था लेकिन यहां इसी की सुध लेने वाला कोई नहीं। इसे शुरू करने में स्टाफ की भी कोई दिक्कत नहीं है। लंबे समय तक लोकार्पण न हो पाना, इसे शुरू करने की अड्चन की ओर संकेत करता है।

बिना प्लानिंग काम का नतीजा, नहीं मिल रहीं सुविधाएं

स्टाफ के अभाव में सेवाएं शुरू नहीं हो रहीं सीबीएमओ डॉ. एसएल खराड़ी ने बताया संजीवनी क्लिनिक के लिए स्टाफ जरूरी है, सिर्फ डॉक्टर के बूते उसे शुरू नहीं कर सकते। वहीं बीपीएच यूनिट शुरू करने के लिए स्टाफ जैसी कोई समस्या नहीं है। जल्द ही जनप्रतिनिधियों से चर्चा कर उसे शुरू करेंगे।

50.50 लाख से बने संजीवनी क्लिनिक खा रहे धूल

50 लाख रुपए से बने जिन संजीवनी क्लिनिकों पर मरीजों की कतार लगना थी और आसपास के लोगों का उपचार होना था वो आज धूल खा रहे हैं। स्वास्थ्य विभाग यहां स्टाफ की नियुक्ति नहीं कर पाया है। खानापूर्ति के लिए दो डॉक्टर तो अपाइंट कर दिए, जो पुराने किराये पर चल रहे संजीवनी में बैठ रहे हैं। नए पर सन्नाटा पसरा है। ऐसे में ग्राउंड में लोगों की कारें पार्क होती हैं, बच्चे क्रिकेट खेलते हैं। रहवासियों के अनुसार जब संजीवनी शुरू नहीं करना थे तो पुरानी बिल्डिंग तोड़ने की क्या जरूरत थी। अब 50 लाख खर्च करने के बाद भी नया भवन अनुपयोगी साबित हो रहा है।