Raag Ratlami Transfere policy: बरसों से टिके है वाहन महकमे के माझी,तबादलों के सीजन में भी जाने को तैयार नहीं/ खोखों का सट्टा,पेटी में निपटा
-तुषार कोठारी
रतलाम। सूबे की सरकार ने अफसरों के तबादलों पर से रोक हटा दी है। तबादलों की नीति भी जारी कर दी है। जिन अफसरों को एक ही जगह पर दो तीन साल हो चुके है उन्हे रवाना करने की नीति बनाई गई है। लेकिन कुछ अफसर ऐसे है जो कई बरसों से जमे है और जाने को तैयार नहीं है। इनके महकमों में उपर तक इनका लेन देन सेट है,इसलिए इन्हे कोई रवाना भी नहीं करवा पाता।
वैसे तो जिले में कई सारे अफसर इस तरह के है,लेकिन इनमें सबसे उंचा नाम वाहनों वाले महकमे के साहब का है। वाहनों का रजिस्ट्रेशन और फिटनेस से लगाकर परमिट बनाने तक केकाम इस महकमे में होते है और इस महकमे को सबसे ज्यादा मलाईदार महकमों में गिना जाता है। वाहनों वाले महकमे की नैया को खेने वाले माझी,मलाईदार महकमे में सबसे ज्यादा मलाई निकालने वाले साहब है। इन्होने महकमे में होने वाले हर काम का रेट दुगुना कर दिया। नतीजा ये हुआ कि इनकी खुद की कमाई तो बढी ही,उपर वालों को भी ये औरो से ज्यादा खुश रख पाते है।
ज्यादा मलाई निकालकर उपर भी बडा हिस्सा पंहुचाने की लायकियत का ही असर है कि ये बरसों से जमे हुए है। नई तबादला नीति में इनसे परेशान वाहन मालिकों की उम्मीदें जगी थी कि उन्हे इन साहब से छुटकारा मिल जाएगा,लेकिन साहब है कि जाने को तैयार नहीं है। साहब ने उपर वालों को एक्स्ट्रा रिचार्ज डलवा दिया ताकि तबादला नीति के बावजूद उनका नाम तबादला लिस्ट मे ना आए।
साहब की इसी खासियत का असर है कि सरकार चलाने वाली फूल छाप पार्टी के नेताओं को भी ये भाव नहीं देते। जब भी किसी नेता ने इन साहब से बिना लेन देन के काम करवाने की कोशिश की,साहब ने फौरन समझा दिया कि बगैर लेन देन के तो काम हो ही नहीं सकता। फूल छाप पार्टी के नेता समझते थे कि सरकार उनकी है,तो साहब को फौरन रवाना करवा देंगे,लेकिन उन्हे पता नहीं था कि साहब का लेन देन उपर तक है,इसलिए साहब कहीं जाने वाले नहीं है।
बहरहाल,उपर तक लेन देन की अपनी खासियत के चलते साहब टिके हुए है। तबादला नीति आकर चली जाएगी,लेकिन साहब यहीं टिके रहेंगे।
खोखों का सट्टा पेटी में निपटा
बीते दिनों वर्दी वालों ने मशीनों के जरिये हो रहे खोखों के सट्टे का मामला उजागर किया। रामगढ के एक मकान में वर्दी वालों ने दबिश देकर कई मोबाइल लैपटाप,कम्प्यूटर जब्त किए। यहां पर वर्दी वालों को हिसाब की जो डायरी मिली उसमें खोखों का लेनदेन दर्ज था। जिन लोगों ने यहां रुपए लगाए थे,उनके नाम भी वर्दी वालों को पता चले। कोई इन्दौर का था,तो कोई राजस्थान का। जितनों के नाम मिले सबको मुलजिम बनाया गया। मामला चूंकि खोखों का था इसलिए बडी बडी खबरें भी छपवाई गई।
लेकिन असल खबर बाद में सामने आई। मशीनों के खेल के जानकारों का कहना है कि जिसे वर्दी वालों ने पकडा,वो तो बेचारा कर्मचारी था। धन्धे का असल मालिक तो केडी के नाम से जाना जाता है। केडी के दो पार्टनर और भी है। वर्दी वालों ने कर्मचारी को दबोच के वाहवाही हासिल कर ली। असल मालिकों का नाम मामले मेंं ना आए इसलिए मालिकों ने दो-तीन पेटी का नजराना पंहुचा दिया। कुल मिलाकर वर्दी वालों के लिए पूरा मामला शानदार रहा। वाहवाही भी हासिल हुई और भारी भरकम नजराना भी मिल गया।
इकलौते मेले से 78 लाख,पहले जो हुए उनका क्या...?
संविधान निर्माता के नाम बनाए गए भवन के पीछे वाला मैदान नवरात्रि में झूला ग्र्राउण्ड कहलाता है। इस मैदान की जमीन शायद दुनिया भर में सबसे महंगी होगी। इस मैदान का एक दिन का किराया चार लाख रु. से ज्यादा है। शहर सरकार ने मैदान को किराये पर देने के जो भाव तय किए है,वो दो रुपया प्रति वर्गफीट प्रतिदिन है। यानी मैदान दो लाख वर्गफीट का है तो इसका किराया चार लाख रु. प्रतिदिन है।
इस महंगे मैदान पर निजी मेला लगाने वाला शहर सरकार के कारिन्दों की बातों में आ गया। शहर सरकार के कारिन्दे,जब भी इस मैदान को किराये पर देते है,सरकारी रेकार्ड में मैदान में से महज दो-चार हजार फीट का हिस्सा किराये पर देते है। मैदान को किराये पर लेने वाला दो या चार हजार फीट जमीन का किराया देता है और पूरे मैदान का उपयोग कर लेता है। इसके एवज में शहर सरकार के कारिन्दे मोटी रकम वसूलते है। लेकिन इस बार मामला उलझ गया। मेला लगाने वाले ने हर बार की तरह पांच हजार फीट जमीन किराये पर ली और मेला एक लाख तीस हजार फीट में लगा दिया। कुछ खबरचियों नें पूरा मामला उजागर कर दिया। मजबूरन शहर सरकार के अफसरों को मैदान की नप्ती करवानी पड गई। नप्ती हुई तो मेला आयोजक को 78 लाख रु.की वसूली का नोटिस जारी किया गया। मेला आयोजक इतनी बडी रकम कहां से देता? नतीजा ये है कि मेला अपने पूरे साजो सामान के साथ सील कर दिया गया है।
अब बडा सवाल ये है कि इस इकलौते मेले पर तो 78 लाख की वसूली निकाल दी गई है,लेकिन पिछले सालों में इस तरह के ना जाने कितने मेले लगे हैैं और हर मेले ने एक लाख फीट से ज्यादा जमीन का उपयोग किया है। शहर सरकार को महज दो या चार हजार फीट का किराया दिया है। अगर इन सारे मेलों की वसूली हो जाए तो शहर सरकार की आर्थिक स्थिति पूरे हिन्दुस्तान में सबसे ज्यादा तगडी हो जाए।