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 Raag Ratlami Fake School फर्जी स्कूल का मामला राजधानी तक पंहुचा, कब दूर होगी शहर सरकार की सुस्ती?
 
 

-तुषार कोठारी

रतलाम। जिस बोधि वृक्ष की छाया में भगवान बुद्ध को बुद्धत्व की प्राप्ति हुई थी,उस पवित्र बोधि वृक्ष के नाम पर शहर में चलाए जा रहे फर्जी स्कूल में बच्चों के साथ की जा रही प्रताडना का मामला सूबे की राजधानी तक जा पंहुचा है। जावरा वाले माननीय डाक्टर सा. ने इस फर्जी स्कूल का मामला विधानसभा में उठा दिया। मंत्री जी ने माननीय को पूरे मामले की जांच कराने का आश्वासन भी दे दिया। लेकिन सवाल तो ये है कि जिनकी पहली जिम्मेदारी है इस तरह की गडबडियों को रोकने की,वो क्या कर रहे है?

पवित्र वृक्ष के नाम पर चलाए जा रहे इस फर्जी स्कूल में सबकुछ ही फर्जी है। स्कूल को चलाने वाला जमीन का दलाल खुद को राजाओं का इन्द्र मानता है। प्रताडना से पीडीत बच्चे ने जब स्कूल की उपरी मंजिल से छलांग लगाई तो जमीन के दलाल ने बयान दिया कि बच्चे ने अपने माता पिता की डांट फटकार से परेशान होकर इस तरह का कदम उठाया। इसमें स्कूल वालों की कोई गलती नहीं थी।

फिर स्कूल की टीचर का विडीयो ही सामने आ गया,जिसमे स्कूल की मैडम पूरी क्रूरता के साथ बच्चे को धमकाती हुई नजर आ रही है। बच्चा बार बार गिडगिडा रहा है लेकिन क्रूर मैडम का दिल जरा भी नहीं पसीजता। वह बच्चे को लगातार धमकाती जाती है। डरा सहमा बच्चा आखिरकार अपनी जान ही दे देेने की कोशिश करता है और छत से छलांग लगा देता है। मामला तूल पकडता है,तो वर्दी वाले मामला दर्ज कर लेते है। अब कार्रवाई होने की बात कही जा रही है।

लेकिन इस फर्जी स्कूल के फर्जीवाडे के खिलाफ जिम्मेदारों ने अगर पहले ही कार्रवाई कर ली होती तो ना तो ये स्कूल चालू हो पाता और ना ही इस तरह की क्रूर मैडम को क्रूरता करने का और एक बच्चे को मर्मान्तक पीडा भुगतने का मौका मिल पाता। स्कूल के फर्जी वाडे की कहानियां बीते कई बरसों से फिजाओं में तैर रही है,लेकिन शहर सरकार के जिम्मेदार,जमीन दलाल के रसूख से इतने दबे हुए है कि फर्जी स्कूल और जमीन दलाल के खिलाफ कोई कार्रवाई करने को तैयार ही नहीं होते।

जमीन के दलाल ने एक फर्जी संस्था के नाम से इस महंगी जमीन को कौडियों के दाम पर शहर सरकार से लिया था। शहर सरकार के जिम्मेदारों ने ऐसी संस्था को कौडियों के दाम पर जमीन दे दी,जिस संस्था का कोई अस्तित्व ही नहीं था। फिर इस बिना अस्तित्व वाली संस्था ने इस जमीन को एक दूसरी संस्था को किराये पर उठा दिया। दूसरी संस्था ने भी फर्जी दस्तावेजों के सहारे पवित्र पेड के नाम वाला स्कूल इस जमीन पर चालू कर दिया।

शहर के सैकडों लोग इस फर्जी स्कूल के प्रचार में फंस कर अपने बच्चों को यहां पढाने भी लगे। उधर आर्थिक अपराधों की जांच करने वाली एजेंसी में जब जमीन दलाल के इस फर्जीवाडे की शिकायत मिली तो एजेंसी ने जमीन दलाल और शहर सरकार के जिम्मेदार अफसरों के खिलाफ मामला भी दर्ज कर लिया। लेकिन जमीन के जादूगर का जादू इस एजेंसी पर भी चलता रहा और मामले की जांच कछुए से भी धीमी चाल से चलने लगी।

बरसों गुजरे तब जाकर एजेंसी ने स्कूल के फर्जीवाडे के मामले में चार्जशीट दायर की। उसमे ं भी अभी कई सारे लोगों के खिलाफ  चार्जशीट दाखिल होना बाकी रख दिया गया है। लेकिन सवाल ये पूछा जा रहा है कि स्कूल के फर्जीवाडे के मामले में अदालत में चार्जशीट दायर हो गई,तब भी शहर सरकार फर्जी स्कूल की जमीन का कब्जा वापस क्यो नहीं ले रही है?

अगर शहर सरकार ने फर्जी स्कूल के फर्जीवाडे की चार्जशीट दायर होने के बाद भी अपनी जमीन का कब्जा वापस ले लिया होता,तो उस मासूम बच्चे को मृत्यु जैसी पीडा से ना गुजरना पडता। लेकिन शहर सरकार के अफसर और नेताओं को जमीन के दलाल से लगातार लाभ मिलते रहते है,इसलिए शहर सरकार सब कुछ जानते हुए भी फर्जीवाडे के मास्टर माइन्ड जमीन दलाल के खिलाफ कोई कदम नहीं उठाती। कदम उठाना तो दूर उलटे जमीन दलाल की कदमबोसी करती रहती है।

कहने को तो सरकार बच्चे के साथ हुई प्रताडना के मामले की गहन जांच करवाने वाली है,लेकिन सरकार को इस मामले की भी जांच करना चाहिए कि आखिर ये फर्जी स्कूल चल किस तरह से रहा है? ये भी सवाल है कि ये स्कूल आखिर चल ही क्यो रहा है,क्योकि जो स्कूल चल रहा है,उसके पास तो कोई जमीन ही नहीं है और जिस संस्था को जमीन मिली है,वो संस्था भी कहीं नहीं है।

वैसे जमीन का दलाल अपनी जादूगरी के दांव पेंच फिर से शुरु कर चुका है। ऐसे में इस बात की उम्मीद कम ही है कि इतने बडे काण्ड के बाद भी स्कूल के नाम पर हुए फर्जीवाडे की पोल खुल पाएगी और फर्जीवाडे के जिम्मेदारों को कोई सजा मिल पाएगी।

सडक़ें हैैं या पार्किंग?

शहर सरकार इन दिनों चांदनी चौक से बाजना बस स्ैटण्ड तक की सडक़ कोफोरलेन सडक़ बनाने की तैयारियों में जुटा है। सडक़ का चौडीकरण होना है तो सडक़ के दोनो ओर जितने भी लोगों ने अपने मकान दुकान आगे बढा लिए हैैं उन्हे बता दिया गया है कि या तो वे खुद पीछे हट जाएं या फिर सरकारी जेसीबी है ही। बीते दिनों में शहर सरकार के जिम्मेदारों ने शहर की तमाम सडक़ों पर पनप चुकी सब्जी मण्डियों को सख्ती से हटाया था। शहर के लोगों ने इस काम की खुले मन से तारीफ की थी। अब जब चांदनी चौक से बाजना बस स्टैण्ड तक की सडक़ को चौडा करने की तैयारियां की जा रही है,तो लोगों को लगता है कि अतिक्रमण तो और भी कई जगहों पर है,उन्हे भी हटाया जाना चाहिए।

जब भी अतिक्रमण हटाने की बात निकलती है,ज्यादातर लोग चौमुखीपुल,माणकचौक जैसे मुख्य बाजारों का नाम लेते है। ज्यादातर लोगों को लगता है कि शहर के इन व्यस्ततम इलाकों में रहने वाले रसूखदारों के अतिक्रमण हटाने की हिम्मत रखने वाले लोग कहीं नहीं मिलते। पकके अतिक्रमणों को तोडने की बात तो काफी बडी बात है। शहर के इन व्यस्ततम इलाकों की सडक़ें असल में पार्किंग का काम कर रही है। इन अवैध पार्किंग्स को भी कोई खत्म नहीं कर पाता है।

शहर के इन मुख्य व्यावसायिक इलाकों में रहने वाले रसूखदारों ने अपने मकान तो करोडोंकी लागत से बनाए हैं और उनकी चार पहिया गाडियां भी लाखों रुपए कीमत वाली है। लेकिन इनमें से ज्यादातर ने अपने घरों में वाहन की पार्किंग नहीं बनाई है। उन्हे लगता है कि सरकारी सडक़ उन्ही का वाहन रखने के लिए हैैं। रात के वक्त शहर के मुख्यबाजारों में देखने पर यही दृश्य नजर आता है। सारी सडक़ों के दोनो ओर चार पहिया वाहन खडे रहते हैैं और सडक़ पर चलने लायक जगह ही नहीं बचती।

कडकी हो चुकी शहर सरकार अगर थोडी हिम्मत दिखाए तो सडक़ो पर बनी इन अवैध पार्किंग्स से सरकार को मोटी कमाई हो सकती है। सडक़ों पर खडे वाहनों को अगर शहर सरकार जब्त करके जुर्माने लगाने लग जाए,तो सरकार को करोडों की कमाई हो सकती है। चा पहिया वाहन वालों से सडक़ पर वाहन खडे रखने का मासिक या दैनिक शुल्क भी शहर सरकार वसूल सकती है। जिससे ना सिर्फ कमाई बढ जाएगी बल्कि सडक़ों से अगर वाहन हट गए तो सडक़ों पर पैदा होने वाली दिक्कतें भी अपने आप समाप्त होने लगेगी।