-तुषार कोठारी
रतलाम। भोले भाले आदिवासियों को अलग अलग तरह के लालच देकर उनके गले में क्रास लटकाने वाली कन्वर्जन गेंग अब आदिवासी इलाकों के साथ साथ शहर में भी सक्रिय हो गई है। कभी इलाज के नाम पर और कभी पढाई और नौकरी के लालच देकर कन्वर्जन कराने वाली इस गैैंग पर कडा अंकुश लगाया जाना जरुरी है।
बीते कुछ समय में न सिर्फ आसपास के गांवों में बल्कि अब शहर के कई इलाकों में कन्वर्जन गैैंग के काले कारनामे सामने आ रहे है। कन्वर्जन गैैंग का हालिया कारनामा शहर के टेंकर रोड पर सामने आया,जहां आसपास के गांवों से आदिवासी महिला पुरुषों को लाकर उनके गलों में क्रास लटकाने का षडयंत्र किया जा रहा था। सनातनी संस्थाओं के लोगों को जब इसकी खबर लगी तो वे मौके पर पंहुचे और फिर सारा षडयंत्र उजागर हुआ।
सनातनी संस्थाओं के सक्रियता के बाद वर्दी वालों ने भी अपना काम शुरु किया। जांच शुरु हुई तो षडयंत्र के तार दूर दूर तक पंहुचने लगे। आखिरकार वर्दी वालों को इस मामले की जांच के लिए एसआईटी बनानी पडी। जांच में कन्वर्जन गैैंग के तार केरल तक से जुडे मिले है। गले में क्रास लटकाने के इस खेल में शामिल लोगो को केरल से फण्डिंग मिलती थी। जिस के घर में कन्वर्जन गैैंग का खेल चल रहा था,उसे बाकायदा हर महीने मोटी रकम इन कामों के लिए भेजी जाती थी। फिलहाल कन्वर्जन गैैंग के चार बन्दे सलाखों के पीछे भेजे जा चुके है। वर्दी वालों की एसआईटी पूरे मामले को अब भी खंगाल रही है।
लेकिन ये इकलौता मामला नहीं है। कन्वर्जन गैैंग का खेल अब आदिवासियों से भी आगे निकल चुका है। शहर की कई गरीब बस्तियों में कन्वर्जन गैैंग के खेल चल रहे है। सनातनी संस्थाओं की अपनी सीमाएं है। उन्हे जहां और जितनी खबर मिलती है.उतने षडयंत्रों को रोकने की कोशिश की जाती है,लेकिन कन्वर्जन गैैंग कई इलाकों में कई तरीकों से सक्रिय है। इन्हे पूरी तरह रोकने के लिए जरुरी है कि सरकारी महकमे भी अपने स्तर पर सक्रिय हो। लेकिन अभी तक ये परम्परा बनी हुई है कि जब तक कोई शिकायत नहीं होती,सरकारी महकमे अपने बलबूते कोई कार्रवाई नहीं करते। यहां तक कि उनकी आंखों के सामने कन्वर्जन के खेल चलते रहते है,लेकिन वे आंखे मूंदे रहते है।
जानकारों का कहना है कि कन्वर्जन गैैंग ने कुछ सालों पहले रेलवे के एक कर्मचारी को अपने चक्कर में लेकर उसके गले में क्रास लटकाया था। अब रेलवे का ये कर्मचारी,रेलवे के कई सारे दूसरे कर्मचारियों को क्रास पहनाने के षडयंत्रो में लगा हुआ है। इस कर्मचारी का पूरा परिवार ही कन्वर्जन कराने में लगा है। शहर के और भी कई इलाकों में इस तरह के षडयंत्र किए जा रहे है।
असल में कन्वर्जन पूरी तरह से गैरकानूनी है। कन्वर्जन को रोकने के लिए प्रदेश में बाकायदा कानून लागू है। ऐसे में अगर कहीं कोई व्यक्ति किसी को लालच देकर कन्वर्जन कराने की कोशिश करता है,तो ऐसी कोशिश भी दण्डनीय अपराध है। ऐसी स्थिति में सरकारी महकमों की जिम्मेदारी है कि वे इस तरह के षडयंत्रों पर सक्रियता से रोक लगाए,लेकिन सरकारी महकमो और उनके अफसरों को लगता है कि जब तक कोई शिकायत नहीं होगी उन्हे कोई कार्रवाई करने की जरुरत नहीं है। सरकारी महकमों की ये मानसकिता बदले बिना कन्वर्जन के इस कुकृत्य को पूरी तरह रोक पाना संभव नहीं है।
प्रदर्शन से घबराया जिला इंतजामिया
इससे पहले कभी भी जिला इंतजामिया को किसी ने भी इतना डरा और घबराया हुआ नहीं देखा था,जैसा अभी देखा। जिला इंतजामिया की आलीशान इमारत में पिछले हफ्ते बैरिकेटिंग करके किसी किले की तरह बना दिया गया था। जिला इंतजामिया के तमाम बडे अफसर और तमाम सरकारी दफ्तर इसी इमारत से चलते है,इसलिए यहां जिले भर के लोग बडी तादाद में आते है। इस इमारत में आने वाले लोगों को यह समझ में नहीं आ रहा था कि इमारत की बाडबन्दी क्यो की गई है?
जब इसका पता लगाने की कोशिश की,तो पता चला कि दरबारों की एक संस्था ने अपनी कुछ मांगों को लेकर महीने के पहले दिन प्रदर्शन की घोषणा की थी। प्रदर्शन की महग घोषणा से जिला इंतजामिया में सनसनी सी फैल गई। अफसरों को लगा कि पता नहीं इस प्रदर्शन में क्या होगा? नतीजा ये हुआ कि प्रदर्शन की तारीख आने के कई दिन पहले से पूरी इमारत पर बैरिकेंटिंग लगा दी गई। प्रदर्शन की घोषणा करने वालों को समझ में आ गया कि इंतजामिया में घबराहट फैल गई है। अफसरों ने इसी घबराहट के चलते प्रदर्शन करने वालों से बातचीत कर मामले को सुलझाने की कोशिशें शुरु कर दी। प्रदर्शन करने वालों की जो मांगे थी,उनमें से ज्यादातर को मान भी लिया गया। प्रदर्शन करने वालों को और क्या चाहिए था? बिना कुछ किए उनकी मांगे पूरी हो रही थी और नेताओं की झांकी भी जम रही थी। आखिरकार नेताओं ने प्रदर्शन की घोषणा को वापस ले लिया। इसके बाद इंतजामिया की सांस में सांस वापस आई। कुल मिलाकर प्रदर्शन करने वालों के लिए ये मामला हींग लगे ना फिटकरी और रंग भी चोखा आए जैसा हो गया।


