बिना डिग्री इलाज करने वाले फर्जी डाक्टर को कोर्ट ने सुनाई दो साल के कठोर कारावास की सजा
रतलाम,28 जून(इ खबरटुडे)। करीब ग्यारह वर्ष पहले तत्कालीन मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डा. पुष्पेन्द्र शर्मा द्वारा पकडे गए एक फर्जी डाक्टर को न्यायालय ने दो वर्ष के कठोर कारावास और चार हजार रु. के अर्थदण्ड की सजा सुनाई है।
अभियोजन के अनुसार,17 नवंबर 2014 को तत्कालीन सीएमएचओ डा. पुष्पेन्द्र शर्मा,जिला स्वास्थ्य अधिकारी गणराज गौड व कुछ अन्य डाक्टरों की टीम जिले में सक्रिय फर्जी डाक्टरों के विरुद्ध अभियान चला रही थी। इस टीम ने 17 नवंबर 14 को दोपहर करीब साढे बारह बजे सातरुण्डा चौराहे पर चलाए जा रहे एक बिना नाम के निजी क्लिनीक पर छापा मारा। इस निजी क्लिनीक पर दो व्यक्तियों मुकेश व कृष्णा बाई को बोटलें चढाई जा रही थी।
निजी क्लिनीक के संचालक धीरज सिंह से जब उसकी शैक्षणिक योग्यता के बारे में पूछा गया तो पता चला कि उसने बीए द्वितीय वर्ष तक पढाई की है और उसके पास चिकित्सा व्यवसाय से सम्बन्धित कोई डिग्र्री नहीं थी। धीरज सिंह का नाम शासन के स्टेट मेडीकल रजिस्टर में भी चिकित्सा व्यवसाई के रुप में दर्ज नहीं था।
डाक्टरों की टीम ने इस निजी क्लिनीक से कई एलोपैथिक दवाईयां भी जब्त की थी। छापे में यह पाया गया कि धीरज सिंह बिना किसी अधिकारिता के लोगों का इलाज करके उनका जीवन खतरे में डाल रहा था। इसे देखते हुए धीरज सिंह के विरुद्ध म.प्र. आयुर्विज्ञान परिषद अधिनियम 1987 की धारा 24 और धोखाधडी के लिए भादवि की धारा 420 तहत बिलपांक पुलिस थाने पर प्रकरण दर्ज किया गया था।
आपराधिक प्रकरण के अनुसन्धान के पश्चात जिला न्यायालय के न्यायिक दण्डाधिकारी प्रथम श्रेणी अरुण सिह ठाकुर के न्यायालय में प्रकरण का विचारण किया गया। विद्वान न्यायाधीश श्री ठाकुर ने प्रकरण के विचारण के पश्चात अभियुक्त धीरज सिंह को म.प्र. आयुर्विज्ञान परिषद अधिनियम की धारा 24 के तहत दोषसिद्ध करार देते हुए उसे दो वर्ष के कठोर कारावास और चार हजार रु. के अर्धदण्ड से दण्डित किया। अर्थदण्ड अदा नहीं करने पर उसे एक माह का अतिरिक्त कारावास भुगतना होगा। विद्वान न्यायाधीश ने अभियुक्त को भादवि की धारा 420 के अधीन दोषमुक्त करार दिया।