कुसंगत से व्यक्ति की सात्विक शक्ति का नाश होता है - गोविन्दराम शास्त्री
रामद्वारा में रात्रि कालीन भजन संध्या में संत गोविन्दराम शास्त्री अपने प्रवचन में संगत एवं कुसंग के प्रभावों पर प्रसंग पर बताया लौह से जब पारस का मिल होता है तब लौह सोना के रूप आ जाता है जैसे ही इस संसार में बुरा व्यक्ति भी अच्छे व्यक्तियों की संगत करेगा उसमे अच्छाई का समावेश होगा अच्छे व्यक्तियों की संगति का जीवन में बहुत महत्व होता है समाज के निर्माण में, मनुष्य के निर्माण में अच्छी संगति का बहुत योगदान है सभी मंगलकारी कार्यों का मूल्य सत्संगति है।
जैसी संगति में बच्चा उठता व बैठता है, उसी के अनुरूप उसका मूल्यांकन किया जाता है सत्संगति सदा हितकारी होती है। जिस प्रकार स्वाति नक्षत्र में वर्षा के जल की एक बूंद यदि केले के पेड़ में पड़ जाए तो कपूर, सीप के मुख में पड़ जाये तो मोती और सर्प के मुख में पड़ जाये तो विष बन जाती है, उसी प्रकार प्रत्येक व्यक्ति पर संगती का प्रभाव पड़ता है मनुष्य के चरित्र-निर्माण में संगति का बहुत प्रभाव पड़ता है हमारे शास्त्रों में सत्संगति को बहुत महत्त्व दिया गया है सत्संगति अर्थात सच्चरित्र व्यक्तियों के सम्पर्क में रहना, उनसे संबंध बनाना सचरित्र व्यक्तियों, सज्जनों, विद्वानों आदि की संगति से साधारण व्यक्ति भी महत्त्वपूर्ण बन जाता है जबकि कुसंगति में मनुष्य के चरित्र में निरंतर गिरावट आती है। मनुष्य पथभ्रष्ट होकर स्वयं अपना बहुमूल्य जीवन तबाह कर लेता है।
मानव-जीवन ईश्वर की अमूल्य देन है। मनुष्य इस पृथ्वी पर धर्म-कर्म के पथ पर चलते हुए मानव-समाज का विकास करने के लिए जन्म लेता है। सत्संगति जीवन को अर्थपूर्ण बनाने के लिए प्रेरित करती है, ताकि मानव-समाज उन्नति कर सके स्पष्टतया कुसंगति मनुष्य को पतन के मार्ग पर ले जाती है और सपूर्ण मानव-जाति के लिए अहितकर सिद्ध होती है कुसंगति से मनुष्य में अनेक बुराइयों जन्म लेने लगती हैं व कुसंगति मनुष्य को व्यसनी, व्यभिचारी बना देती है और ऐसे व्यक्ति मानव-समाज की सुख-शांति भंग करने के साथ स्वयं अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने का कार्य करते हैं।