हिन्दुत्व पर भारी जातिवाद…..
प्रकाश भटनागर
लोकतंत्र में वोटों की राजनीति चाहे जो करा दे। विचारधारा से लेकर लक्ष्य तक सब वोटों की माया में भटकते हैं। राजनीति करने वाला कोई भी दल इससे अछूता नहीं। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की राजनीतिक सहयोगी भाजपा भी इसी गफलत की शिकार है। जातिवाद की राजनीति से जीतने के लिए वो हिन्दुत्व के एजेंडे में उफनती है और वोटों की माया में जातिवाद के झाग के सामने ठंडा होकर बैठ जाती है।शिवराज मंत्रिमंडल का जो ताजा संक्षिप्त सा विस्तार हुआ है, उसे इसी नजरिए से देखा जा सकता है। जिन तीन मंत्रियों को शामिल किया गया है, अगर उन्हें शामिल नहीं भी किया जाता तो शिवराज सरकार पर क्या फर्क पड़ता? गवर्नेंस के लिहाज से विधानसभा चुनाव के आठ-नौ महीने पहले इस विस्तार से कोई फर्क पड़ने से रहा। और जिन विधायकों को मंत्री पद से नवाजा गया है, उनकी प्रशासनिक समझ की कोई पहचान भी किसी के सामने नहीं है। नारायण सिंह कुशवाह तो शिवराज की पिछली सरकार में राज्यमंत्री थे। लेकिन 2013 में उन्हें मंत्रिमंडल में जगह नहीं दी गई थी।
मंत्रिमंडल में शामिल किए गए तीनों मंत्रियों की एकमात्र योग्यता उनकी जाति है। बालकृष्ण पाटीदार दो बार के विधायक हैं। भाजपा के पूरे पन्द्रह साल और शिवराज के 13 सालों में पहली बार किसी पाटीदार को मंत्री बनने का मौका मिला है। भला हो गुजरात और हार्दिक पटेल का। पिछले दिनों मंदसौर सहित मालवा में जो किसान आंदोलन हुआ था, उसके पीछे मुख्यरूप से पाटीदार समाज का ही बोलबाला था।
बालकृष्ण पाटीदार खरगौन जिले में पाटीदार समाज के अध्यक्ष भी रहे हैं, इसलिए माना जा सकता है कि उनका अपने समाज में थोड़ा बहुत होल्ड तो होगा ही। वरना कृषि मंडी और बीज निगम से लेकर संगठन में कई पदों पर रह चुके पाटीदार को अब तक इस लायक नहीं माना गया था कि उन्हें मंत्री बनाया जा सके। तो हिन्दुत्व की पैरोकार भाजपा ने जातिवाद की एकता के डर के आगे सरेंडर कर दिया। आखिर पाटीदारों की मध्यप्रदेश में खासी तादाद है और आम तौर पर पाटीदारों की गिनती समृद्ध किसानों में होती है।
शिवराज की पिछली सरकार में गृह और परिवहन राज्यमंत्री रह चुके नारायण सिंह कुशवाह को शिवराज ने 2013 में मंत्रिमंडल में शामिल क्यों नहीं किया था, इसका पता उन्हें भी नहीं है। पर अभी क्यों शामिल किया गया है, यह नारायण सिंह ही नहीं, हर कोई जानता है। नारायण सिंह काछी जाति के हैं और इस जाति के वोट कोलारस और मुंगावली में भी असर रखने लायक संख्या में हैं।
शायद सोच यह रही होगी कि नारायण सिंह विधायक रहते हुए अपनी जाति के लोगों को भाजपा को वोट देने के लिए कहेंगे तो ज्यादा असर नहीं होगा, लेकिन कैबिनेट मंत्री नारायण सिंह कहेंगे तो कुछ असर तो शायद हो ही जाए। क्या गजब की राजनीतिक सोच है? अच्छा हुआ जो ये कोलारस और मुंगावली में विधानसभा के उपचुनाव हो गए, वरना नारायण सिंह कुशवाह के ये पांच साल तो खालीफोकट विधायकी में ही बीत जाते।
अब भाजपा के वरिष्ठ नेता और सांसद प्रहलाद पटेल के छोटे भाई जालम सिंह पटेल की बात। उन्हें इसलिए मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया गया है कि वे प्रहलाद के छोटे भाई हैं। और उन्हें मंत्रिमंडल से अब तक दूर रखने का कारण यह भी नहीं था कि उन पर ढेर सारे आपराधिक मामले दर्ज हैं।
असल लफड़ा लोधी जाति का है। अब उमा भारती तो वैसे भी मध्यप्रदेश की नेता रही नहीं। प्रहलाद पटेल हैं लेकिन शिवराज का और उनका तालमेल पता नहीं कब का गड़बड़ाया हुआ है। और कोलारस और मुंगावली की मजबूरी कि लोधी यहां भी इतने तो हैं ही कि चुनाव को प्रभावित कर सकते हैं।
तो गवर्नेंस और गुड गवर्नेंस सब बेकार की बात है। चुनाव जीतने के लिए हर समय हिन्दुत्व का तड़का काम नहीं आता। कभी लालू, मुलायम और मायावती भी तो राजनीति के आदर्श हो सकते हैं। आखिर चुनाव जीतना है तो सब करना पड़ेगा। अब संघ पता नहीं यह क्यों कहता रहता है कि समाज को जातियों में मत बांटो….