राग रतलामी/ हर तरफ कोरोना का रोना, वर्दी वालों ने भी नहीं देखा होगा इतना जबर्दस्त कर्फ्यू
-तुषार कोठारी
रतलाम। अभी तो जिधर देखिए कोरोना का रोना चल रहा है। मोदी जी ने कर्फ्यू की अपील की तो पूरे देश के साथ साथ रतलामी भी जोश में दिखाई दिए। वर्दी वालों ने भी कभी अपनी जिन्दगी में ऐसा कर्फ्यू नहीं देखा होगा,जिसमें कर्फ्यू चल रहा हो और वर्दी वालों को डण्डे ना चलाने पड रहे हों और ना ही कोई तनाव हो।
पूरा शहर खामोश है। सड़कों पर इन्सान नजर ही नहीं आ रहे। गली मोहल्लों के कुत्ते भी हैरान है कि आखिर इंसान चले कहां गए। तमाम लोगों ने कर्फ्यू को दिल से स्वीकार किया है। दंगों को शांत करने के लिए जब भी कर्फ्यू लगाए जाते थे,दूरस्थ कालोनियों के लोग घरों के बाहर निकल कर टाइमपास करते थे। वर्दी वालों की गाडी जब भी साइरन बजाती हुई निकला करती थी,लोग भाग भाग कर घरों में दुबक जाते थे और गाडी निकलने के बाद फिर से घरों से निकल जाते थे।
लेकिन ये वाला कर्फ्यू सरकारी कर्फ्यू से पूरी तरह अलग है। दूर दराज की कालोनियों में भी सड़कें सूनी पडी हुई है। लोग खुद की इच्छा से घरों में बन्द हैं।
सरकारी महकमों के लिए ये एक नया अनुभव हो सकता है। हांलाकि प्रशासन को पहले ऐसा भरोसा नहीं था कि लोग खुद ही खुद को घरों में बन्द कर लेंगे। इसी के चलते शनिवार शाम को वर्दी वालों ने बाजारों में अपनी आदत के मुताबिक दुकानदारों के साथ बदतमीजी की और जबर्दस्ती दुकानें बन्द करवा दी। दुकानदार हैरान थे कि आखिर ऐसा क्यों किया जा रहा है। मोदी जी ने तो रविवार सुबह से कर्फ्यू रखने को कहा था। प्रशासन तो एक रात पहले ही लोगों को चमकाने लगा।
खैर। शाम को बाजार बन्द करवा दिए गए। प्रशासन को लगा था कि उन्हे कर्फ्यू के लिए दिन में भी डण्डे चलाने पडेंगे। लेकिन रविवार को ऐसा कुछ भी नहीं हुआ।
शहर खुद ब खुद बन्द हो गया। पूरा शहर थमा हुआ नजर आने लगा। सड़कें वीरान पडी है। बाजार बन्द है। कहीं कोई नहीं। शहर की सड़कों पर निकले खबरची भी सूने शहर को देखकर हैरान थे। दोपहर बाद तो वर्दी वालें भी नजर आना कम हो गए। तमाम लोग घरों में टीवी देखकर या नींद निकाल कर टाइम पास करते रहे।
लेकिन खबरें अब भी डराने वाली ही आ रही है। कई प्रदेशों में पूरा लाक डाउन हो गया है। ट्रेनें भी 31 मार्च तक बन्द कर दी गई है। इतनी कोशिशों के बाद अब यही उम्मीद की जा सकती है कि आने वाले दिनों में कोरोना का रोना कम हो जाए और घरों में बन्द रहने की इस सजा से लोगों को मुक्ति मिल सके।
फूल छाप वालों की बल्ले बल्ले
कमलनाथ की बिदाई और कमल के आगमन की खबरों ने दो दिनों तक मध्यप्रदेश वालों को कोरोना के डर से दूर रखा था। पंजा पार्टी के नेताओं के लिए यह दुख का मौका था कि बडी मुश्किलों से उनके हाथ आई सत्ता हाथों से फिसल रही थी और फूल छाप वाले फूले नहीं समा रहे थे कि अब सबका हिसाब करने का मौका मिलेगा। दो दिनों तक तो लोग कोरोना वोरोना भूल कर इसी मस्ती में थे कि अचानक मोदी जी आ गए और जनता कर्फ्यू सामने आ गया। खुशियां मनाने की सारी हसरतें धरी की धरी रह गई। अब पंजा पार्टी हो या फूल छाप हर कोई कोरोना की बातों में उलझ गया है। हांलाकि फूल छाप वालों के मन में लड्डू फूट रहे है कि कोरोना का झंझट निपटने के बाद फिर से मजे के दिन शुरु होने वाले है।