राग-रतलामी/ चुनावी जमावट में जुटने लगे है पंजा पार्टी के नेता,दल बदलते ही ग्रुप भी बदले
-तुषार कोठारी
रतलाम,10 अगस्त। पंजा पार्टी में अंदरुनी घमासान मचने लगा है। पंजा पार्टी की तरफ से एक बार चुनावी अखाडे में जोर आजमाईश कर चुकी मैडम जी और पटरी पार इलाके की एक महिला नेत्री के बीच में घमासान जारी है। दोनो महिला नेत्रियो का झगडा पुलिस तक भी पंहुचा। ये तो हुई उपरी कहानी। कहानी के पीछे वाली कहानी कुछ और है। आने वाले दिनों में शहर सरकार के चुनाव होने है। अब तमाम नेता अपनी अपनी जमावट में जुटने लगे है। पंजा पार्टी को जानने वालों का कहना है कि मैडम जी के साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर चलने वाली एक दूसरी मैडम भी है,जो पहले एक बार नगर सरकार की हिस्सेदार रह चुकी है। ये वाली मैडम फिर से नगर सरकार में जाने को बेताब है। इनसे लडने वाली मैडम भी नगर सरकार में जाने का दाव लगा रही है। टिकट वाला चक्कर है। दूसरे दावेदार को कहीं भी उलझा दिया,तो अपना टिकट आसान हो जाएगा। इसी गणित के कारण दावपेंच हो रहे है।
इधर पंजा पार्टी की एक और समस्या है। पंजा पार्टी के तमाम नेताओं के तारनहार झाबुआ वाले साहब है। पहले तो ये चुनाव जीतते रहते थे,इसलिए बडे नेता थे,लेकिन अब तो उनके सुपुत्र और वो खुद भी चुनाव हार चुके है। यहां तक कि झाबुआ में उनके तमाम नजदीकी लोग भी चुनावी मैदान में जीत हासिल नहीं कर पाए। लेकिन यहां रतलाम में अब भी उन्ही का सिक्का चल रहा है। बडे नेता जी का खेल भी निराला है। रतलाम के नेताओं को आपस में लडवाना उनका पसन्दीदा खेल है। पहले भी उन्ही के दो पट्ठो के बीच जोरदार झगडा हुआ था। बडे साहब दोनो के खास थे। दोनो नेता लडते रहे और साहब मजा लूटते रहे। अब फिर से वही कहानी दोहराई जा रही है। साहब के भरोसे दोनो नेत्रिया लड रही है। दोनो के झगडे में अब पंजा पार्टी वाले भी दो हिस्सों में बंटने लगे है। आगे आगे देखिए होता है क्या…?
दल बदलते ही ग्रुप भी बदले
जो कल तक अपने आपको केसरिया बताया करते थे,सरकार बदलते ही तिरंगे हो गए। जिले के बडे हुक्मरान केसरिया रंग से रंगे हुए थे,लेकिन तुरत फुरत उनका रंग बदल गया। आजकल व्हाट्सएप इसे अच्छे से साबित करता है। फूलछाप वाले कुछ नेताओं ने व्हाट्सएप पर अपने ग्रुप बनाए थे। इनमें जिले के बडे हुक्मरान,बडी मैडम जी जैसे तमाम लोग शामिल थे। चुनाव के दिनों में आयोग का डंडा बेहद असरकारक होता है,लेकिन बडे साहब लोगों को मामा की वापसी का यकीन था,इसलिए वे ग्रुपों में टिके रहे। पंजा पार्टी वालों ने इस पर नजरें भी टेढी की थी,लेकिन तब तक हुक्मरानों को कोई फर्क नहीं पड रहा था। जैसे ही नतीजे आए और सूबे से मामा जी की बिदाई हुई,बडे साहब लोगों के रंग भी बदल गए। फूल छाप वालों के तमाम व्हाट्सएप ग्रुप खाली होने लग गए। बडी मैडम से लेकर वर्दी वालों के बडे साहब सब के सब इन ग्रुपों से बिदा हो गए। ग्रुप चलाने वालों को लगा कि शायद ऐसा गलती से हुआ होगा,इसलिए उन्होने साहब लोगों को फिर से जोडा। साहब लोग तो रंग बदल चुके थे,वे फौरन फिर से बाहर हो गए। जोडने छोडने का ये खेल लंबे समय तक चलता रहा। अब सूरते हाल ये है कि बडी मैडम से लेकर वर्दीवालों के बडे साहब तक हर कोई फूल छाप वालों के ग्रुप से बाहर है और पंजा पार्टी वालों के ग्रुप की तलाश में है।
थप्पड की गूंज
ये डॉ.डेंग को पडे थप्पड की गूंज नहीं है। ये मामला जमीन से जुडे लोगों का है। मुंबई वाले से रतलाम वाले की पार्टनरशिप में कई जमीनें इधर से उधर हो गई,लेकिन अब इसमें दरार पडने लगी है। इसी दरार के चक्कर में बात थप्पड जडने तक पंहुच गई। थप्पड की गूंज दूर तक पंहुच रही है…..।