November 14, 2024

महावीर और आज का गणतंत्र

-प्रो.डॉ.अमोलक चंद जैन

भगवान महावीर के जमाने के गणतंत्र बनाम लोकतंत्र की तुलना भारत के वर्तमान लोकतंत्र से की जाए,तो यह ठोस सत्य सामने आएगा कि पश्चिम से उधार लिए गए आज के लोकतंत्र और महावीर के लोकतंत्र में जमीन आसमान का अंतर है। आज के तथाकथित गणतंत्र में परिवार वाद,जातिवाद,वंशवाद,प्रजातंत्र का मुखौटा लगाकर प्रजातंत्र के रुप में आमतौर पर लोकशाही के नाम पर प्रजातंत्र का ढोल बजाया जा रहा है। जहां संसद और विधानसभा में हंगामा मचाकर सदनों को नहीं चलने देना,कार्यवाही ठप्प करना,चरित्र हनन करना,दल बदल कर कुर्सी हथियाना वस्तुत: प्रजातंत्र के नाम की आड में अपना उल्लू सीधा करना ही रह गया है। जबकि महावीर के युग के गणतंत्र में देश सभी प्रकार से सुखी और संपन्न था। अब देश में कुर्सी ही प्रजातंत्र का मूल है। हमारे देश को कृषि प्रधान के नाम से पहचान मिली थी,लेकिन आज के प्रजातांत्रिक भारत की पहचान कुर्सी प्रधान देश के रुप में हो गई है। महावीर के युग में देश की सीमाएं अफगानिस्तान तक फैली थी। उत्तर में कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक पूर्व में म्यांमार से लेकर कराची तक राज्य का विस्तार था।
महावीर के युग में राज्य का प्रबन्ध किसी एक सम्राट,एक परिवार तक एक वंश के हाथ में नहीं था। छोटे छोटे सारे गणराज्य प्रजातंत्र अपने में स्वाधीन थे। लोक पंचायती ढंग से अपने राज्य की व्यवस्था कर लेते थे। महावीर युग का गणाधिपति न्यायपूर्व अपनी प्रजा का पालन पोषण करता था। महावीर के युग में पंचायती प्रजातंत्र गणराज्य के नाम से जाने जाते थे। लिच्छरी,वैशाली प्रमुख गणराज्य थे। भगवान महावीर के समय सौलह गणतंत्र थे। इनमें से अनेक गणप्रमुखों से भगवान महावीर का संबंध था। सभी गणप्रमुख राजा आदि झूठ से बिलकुल परहेज करते थे। इस युग में प्रत्येक नगर की एक पंचायत होती थी,जैसे आजकल नगर पालिका। इस पंचायत का दरबार संन्थागार कहलाता था। इनमें से चुनकर सदस्य गणसंघ में आते थे,जो राजा कहलाते थे। इनकी सम्मति से ही प्रत्येक कार्य का निर्णय होता था। आजकल की तरह उनको मताधिकार प्राप्त था। बहुमत सर्वथा मान्य था। न्यायालयों का प्रबन्ध भी आज की तरह था परन्तु वकीलों की जरुरत नहीं थी। जज स्वयं जांच करता था और आठ जजों की पीठ फैसला करती थी। अपराधी को राजा के पास अपील करने का अधिकार था। प्रजा को त्वरित न्याय मिलता था। इन तथ्यों के आधार पर कहा जा सकता है कि महावीर के युग के गणराज्य आज के प्रजातंत्र से काफी श्रेष्ठ थे। महावीर के युग का गणतंत्र बेदाग था भारत के आज के प्रजातंत्र की तरह दागदार नहीं। भारत का जन भी महावीर काल के गणतंत्र की तरह का प्रजातंत्र चाहता है। वर्तमान के तथाकथित जनप्रतिनिधि जिन्हे सभी को नहीं कुछ को तो रक्तजीवी भी कहा जा सकता है। मसलन-
लोकतंत्र में तंत्र रहा है न उसमें है लोक
जन जन को चूसते है,जनप्रतिनिधि बनकर जोंक
हमारा जनतंत्र भी महावीर की वाणी बनकर जन जन की लोकवाणी बने।

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