मस्त रहोगे तो स्वस्थ रहोगे
विश्व स्वास्थ्य दिवस विशेष
जो प्राणी प्रकृति के जितना निकट है,उतना ही स्वस्थ है। यही कारण है कि मानव की अपेक्षा जानवर कम से कम अस्वस्थ्य होते है। जबकि मानव की त्रुटियों और सहज,सरल,प्रकृति से दूरी उसे बार बार बीमार बना देती है। प्राकृतिक नियमों की सरलता,स्पष्टता एवं उनमें छुपी हुई मधुरता की अनुभूति प्राप्त करने के लिए आवश्यक है कि हम प्रकृति के निकट निवास करें। जब हम प्रकृति या निसर्ग से दूर रहते है,तब सहज स्वभाव भूल जाते है और व्यवहार में कृत्रिमता आ जाती है। आधुनिक अत्यन्त गतिशील और प्रतिस्पर्धी जीवन में मानसिक तनाव में वृध्दि तथा आचार विचारों की अशुध्दता,श्रम व व्यायाम का अभाव अर्थात शारिरीक श्रम की न्यूनता का परिणाम ही बीमारियों और विकृतियों के रुप में प्रकट होता है। शहरी जीवन में मानसिक श्रम की अधिकता एवं शारिरीक श्रम की न्यूनता या शून्यता पाई जाती है। सीमेन्ट और काींट के जंगल में अन्य खाने पीने की वस्तुएं तो छोडिए मानव शुध्द वायु के लिए तरस जाता है। इन सब कारणों से मुख्य दो बीमारियां तेजी से फैल रही हैं। पहली मधुमेह या डाइबीटीज और दूसरी ह्रदयाघात या हार्ट अटैक,और इन दोनो का ही सम्बन्ध मानसिक तनाव से जुडा है।
शानदार तकनीकी विकास के बाद भी मानव मस्तिष्क की संरचना और कार्यप्रणाली को अभी तक दस प्रतिशत ही समझा जा सका है। मस्तिक्ष के कारण शरीर पर अत्यधिक तनाव का प्रभाव ह्रदय की धडकन बढ जाने,रक्तचाप तथा श्वसन की दर बढने,धमनियों में एंठन तथा आक्सिजन की कमी,रक्त के थक्के जमना आदि दोषो के रुप में नजर आता है। ये सभी हार्ट अटैक का कारण बनते है । कारोनरी थ्रम्बोसिस जिसे मेडीकल की भाषा में एमआई कहा जाता है,के कारण ह्रदय की मांसपेशियों के एक या अधिक भाग को रक्त की सप्लाई रुक जाती है और यही हार्ट अटैक है। जीवनशैली में परिवर्तन,बढते तनाव व डिप्रेशन दैनिक जीवन की चिन्ताएं,अत्यन्त उतावलापन तथा वैभवपूर्ण जिन्दगी के कारण उच्च शहरी या अभिजात्य वर्ग तक ही सीमित न रहकर समाज के सभी वर्गोंयहां तक कि ग्रामीण क्षेत्रों में भी हार्ट अटैक अधिक से और कम उम्र वालों तक सब में पाया जाने लगा है। सन 1990 में अनुमान लगाया गया था कि अगले पच्चीस वर्षों में अर्थात 2015 तक इसमें 105 प्रतिशत की वृध्दि की संभावना जताई गई थी,जो लगभग पूरी होने को है।
इसी प्रकार डिप्रैशन और हायपर टैंशन के कारण उत्पन्ना होने वाला दूसरा रोग है मधुमेह या डाइबिटीज। मानसिक सन्तुलन में ोध,दुख,क्षोभर्,ईष्या,राग द्वैष आदि विघ् रुप है। इनका अनिष्टकारी परिणाम सर्वप्रथम ज्ञानतंतुओं पर पडता है। जिससे शरीर के अन्य सभी संस्थान नियंत्रित और संचालित होते है। तनाव के कारण स्वांगीकरण एवं उत्सर्जिकरण या विसर्जन के कार्य सुचारु रुप से नहीं चल पाते। और ये मधुमेह का प्रमुख कारण बन जाते है। स्पष्ट है कि आहार,श्रम,विश्रान्ति के असंयम तथा मानसिक तनाव से अवशोषण,उत्सर्जन कार्यों में बाधा उत्पन्न हो कर रक्त की अम्लता में वृध्दि होती है तथा दूषित द्रव्यों का संचय डाइबिटीज उत्पन्न करता है। दीर्घकालीन श्वेतसार मिष्ठान्न तथा तले गले पदार्थों का अति सेवन,व्यायाम की न्यूनता आदि कारणों से अग्ाशय या पैनयिाज दुर्बल हो जाता है और शरीर में शक्कर और गुलकोज का उर्जा में परिवर्तन नहीं हो पाता। शरीर दुर्बल और कमजोर होता जाता है। सारांश यह है कि दोनो बडी व्याधियों का कारण अति तनाव या हाइपर टैंशन और मानसिक असन्तुलन है।
इन व्याधियों के निवारण के लिए जीवन में तनाव से मुक्ति पाना आवश्यक है। भारतीय योग और वेदो का विज्ञान जीवन में तनाव घटाने के सटीक तरीके देने में पहले से ही बहुत उन्नत था। उनके पास पहले से ही तनावों को खत्म करने की तकनीक मौजूद थी। ध्यान तथा योग तनाव घटाने के सर्वोत्तम साधन है। ध्यान से दिमाग शान्त होता है तथा मस्तिक्ष में अल्फा तरंगे पैदा होती है,जो मनुष्य को ोध,भय,आामक व्यवहार आदि का नियंत्रण करती है। ध्यान के बिना भावनाओं का नियंत्रण कठिन होता है। आध्यात्म में विश्वास और ईश्वर की सत्ता के साथ परिचय जीवन के अधिकांश तनावो को दूर कर सकता है। योग में नाडी शोधन प्राणायाम लघु मस्तिक्ष को शक्ति और स्फूर्ति प्रदान करता है,जिससे जीवन में प्रसन्नता का अनुभव होता है।
जीवन में से परेशानियां दुख चिन्ता आदि को कम करने की अनेक विधियां है। सर्वप्रथम तो मानव को वर्तमान में जीने की कला सीखनी चाहिए। भूतकाल और भविष्य पर अधिक ध्यान नहीं देना चाहिए,और भूतकाल की बातों पर तो बिलकुल ही नहीं। क्योकि बीती ताहि बिसार दे आगे की सुधि ले। वर्तमान से भविष्य का मार्ग प्रशस्त होता है। अत: भविष्य के बारे में अधिक चिन्तित न होकर वर्तमान पर ध्यान दीजिए। जीवन है तो समस्याएं तो होंगी ही। किन्तु समस्या के सर्वोत्तम हल पर ध्यान केन्द्रित कीजिए और समस्या को हल कर लीजिए। लेकिन जो समस्याएं आपके बस में नहीं है,ईश्वर प्रदत्त हैं,जैसे भूकंप,सुनामी,अतिवऋष्टि.अतिगर्मी,अतिशीत,। तो इनके साथ समायोजन बैठाईए,और इनसे होने वाली हानियों को शीघ्रतिशीघ्र भुलाने का प्रयास कीजिए। छोटी छोटी कठिनाईयों से उदास न होकर तथा स्वयं को व्यस्त रखकर जीवन को आनन्दमय बनाईए। हमारे विचार ही हमे बनाते है। अत: मस्तिष्क में शांति,साहस,आरोय और आशा के विचार आना चाहिए। उल्लास,उमंग और उत्साह से परिपूर्ण जीवन जीने के लिए अपनी उपलब्धियों को याद कीजिए। असफलताओं को याद करके मन को न दुखाईए।
जीवन में आलोचनाओं की परवाह नहीं करनी चाहिए। यदि आपका दिल कहता है कि आप सही हैं,तो किसी भी प्रकार की आलोचना पर ध्यान नहीं देना श्रेयस्कर है। याद रखिए कि फलदार वृक्ष पर ही लोग पत्थर फेंकते है। सूखे वृक्ष की ओर कोई ध्यान नहीं देता। यदि आपकी आलोचना हो रही है तो ये आपके हित में है। क्योकि आप इस योय हैं कि कुछ कर रहे हैं और ये सही और सकारात्मक हो तो चिन्ता की कोई बात नहीं। जिन्दगी में खुश रहना हो तो अपने शत्रुओं को क्षमा करना सीखें। अमेरिका के भूतपूर्व राष्ट्रपति आइजन होवर की बात याद रखें। उनका कहना था कि हमें अपने उन शत्रुओं के बारे में सोचकर जीवन का एक मिनट भी बर्बाद नहीं करना चाहिए जिन्हे हम पसन्द नहीं करते। लब्बोलुआब यह है कि जीवन को सुखमय,आनन्दमय और निरोगी बनाना हो तो खुश रहो,व्यस्त रहो और मस्त रहो।