भ्रष्टाचार को छुपाने के लिए आरटीआई कानून को भी ताक पर रखा निगम के अफसरों ने,राज्य सूचना आयोग तक पंहुचा मामला
रतलाम,10 अक्टूबर (इ खबरटुडे)। नगर विकास के नाम पर लाई जाने वाली योजनाएं असल में सिर्फ और सिर्फ भ्रष्टाचार के लिए लाई जाती है। जब भी कोई इन योजनाओं की वास्तविकता जानने की कोशिश करता है,तो निगम का पूरा अमला इसे छुपाने में जुट जाता है। निगम द्वारा बनाई गई यूआईडीएसएसएमटी और सीवरेज प्रोजेक्ट जैसी योजनाएं इसका सबसे बडा उदहारण है। सूचना के अधिकार के तहत,जब इन योजनाओं की जानकारी मांगी गई,तो निगम के अफसरों ने इस कानून को ही ताक पर रख दिया। आखिरकार मामला राज्य सूचना आयोग तक जा पंहुचा।
निगम के अफसरों और नेताओं ने बडे जोर शोर से शहर में यूआईडीएसएसएमटी और सीवरेज प्रोजेक्ट की योजनाएं लागू की थी। बडे जोर शोर से ढिंढोरा पीटा गया था कि इससे शहर का विकास होगा। इनमें से यूआईडीएसएसएमटी योजना तो पूरी हो गई,जबकि सीवरेज प्रोजेक्ट अभी चल ही रहा है। लेकिन इससे शहर का क्या विकास हुआ,किसी को भी नहीं पता। जब इन योजनाओं की हकीकत जानने की कोशिश की गई तो नगर निगम के अफसर इन्हे छुपाने में जुट गए।
सीवरेज प्रोजेक्ट
एडवोकेट कपिल मजावदिया ने विगत 20 सितंबर 2017 को सीवरेज प्रोजेक्ट की जानकारियां लेने के लिए सूचना के अधिकार के तहत एक आवेदन नगर निगम के लोक सूचना अधिकारी के समक्ष प्रस्तुत किया। इस आवेदन में श्री मजावदिया ने सीवरेज प्रोजेक्ट की तमाम जानकारियां 40 बिंदुओं के तहत मांगी थी। निगम के लोक सूचना अधिकारी को 30 दिनों के भीतर ये जानकारियां उपलब्ध करा देना थी,लेकिन उन्होने आवेदक को कोई जवाब तक नहीं दिया। कानूनी प्रावधानों के मुताबिक श्री मजावदिया ने 17 नवंबर 2017 को निगम के अपीलीय अधिकारी निगम आयुक्त को इसकी अपील की। लेकिन चूंकि खतरा भ्रष्टाचार के उजागर हो जाने का था,इसलिए अपीलीय अधिकारी निगम आयुक्त ने भी इस पर ना तो कोई जवाब दिया और ना ही अपील का निराकरन किया।
इससे व्यथित होकर श्री मजावदिया ने राज्य सूचना आयोग को इसकी द्वितीय अपील की। राज्य सूचना आयोग के सामने भी निगम के अधिकारी उपस्थित नहीं हुए। राज्य सूचना आयुक्त डॉ. जी कृष्णमूर्ति ने 19 अगस्त 2019 को पारित अपने आदेश में रतलाम नगर निगम को निर्देश दिया है कि वे पन्द्रह दिनों के भीतर आवेदक कपिल मजावदिया को समस्त अभिलेखों का अवलोकन करवाएं और उनके द्वारा चिन्हांकित अभिलेखों की निशुल्क प्रतिलिपियां उन्हे उसी समय उपलब्ध करवाएं।
यूआईडीएसएसएमटी
नगर की पेयजल वितरण व्यवस्था को चुस्त दुरुस्त करने के लिए करोडों रुपए लागत की यूआईडीएसएसएमटी योजना लागू की गई थी। यह योजना पूरी भी हो गई और इसके भुगतान भी कर दिए गए। लेकिन शहर की पेयजल वितरण व्यवस्था में कोई सुधार नहीं हुआ। इस योजना की हकीकत जानने के लिए सामाजिक कार्यकर्ता नितिराज सिंह राठौर ने सूचना के अधिकार के तहत एक आवेदन नगर निगम के लोक सूचना प्राधिकारी को प्रस्तुत किया।
अपने आवेदन में श्री राठौर ने बीस बिंदुओं के तहत यूआईडीएसएसएमटी योजना से संबंधित तमाम जानकारियां निगम से मांगी थी। उन्होने निगम से जानना चाहा था कि इस योजना पर कुल कितनी राशि व्यय की गई है। काम किस कंपनी ने किया है। इस योजना का पूर्णता प्रमाणपत्र किस अधिकारी ने जारी किया। इसी तरह की कई अन्य जानकारियां श्री राठौर ने मांगी थी।
लेकिन नगर निगम के लोक सूचना प्राधिकारी ने उन्हे ना तो कोई उत्तर दिया और ना ही जानकारियां उपलब्ध कराई। इससे व्यथित होकर श्री राठौर ने निगम के अपीलीय अधिकारी निगम आयुक्त को 6 जुलाई 2019 को अपील प्रस्तुत की। लेकिन निगम आयुक्त ने भी इस पर कोई कार्यवाही नहीं की। आखिरकार आवेदक नितिराज सिंह ने 16 सितंबर 2019 को राज्य सूचना आयोग के समक्ष इसकी द्वितीय अपील प्रस्तुत कर दी। यह अपील अभी विचाराधीन है।
राशन घोटाला
निगम का राशन घोटाला अब तक चर्चाओं में है। लेकिन नगर निगम के अधिकारी इस घोटाले को पूरी तरह छुपाने के प्रयास में लगे हुए है। आरटीआई एक्टिविस्ट नितिराज सिंह राठौर ने राशन घोटाले के संबंध में भी नगर निगम में सूचना के अधिकार के तहत आवेदन दिया। लेकिन नगर निगम के अधिकारियों ने इस पर कोई कार्यवाही नहीं की। श्री राठौर ने निगमायुक्त के समक्ष प्रथम अपील 6 जुलाई 2019 को प्रस्तुत की। लेकिन निगमायुक्त का रवैया भी वही था। उन्होने ना तो कोई जवाब दिया और ना ही इस अपील पर कोई कार्यवाही की। इसके बाद श्री राठौर ने 16 सितंबर 2019 को राज्य सूचना आयोग के समक्ष द्वितीय अपील प्रस्तुत की,जो कि विचाराधीन है।
मेयर इन कौंसिल
नगर निगम की योजनाएं ही नहीं,मेयर इन कौंसिल भी भ्रष्टाचार का गढ बन चुकी है। मेयर इन कौंसिल की प्रोसिडिंग्स को भी नगर निगम सार्वजनिक करने में डरता है। आईटीआई एक्टीविस्ट नितिराज सिंह राठौर ने मेयर इन कौंसिल के गठन और उसके प्रस्तावों की जानकारी लेने के लिए सूचना के अधिकार के तहत आवेदन दिया। लेकिन इसको भी छुपाया गया। लोक सूचना अधिकारी के साथ साथ अपीलीय अधिकारी निगम आयुक्त ने भी इन जानकारियों को देने में कोई रुचि नहीं ली। आखिरकार इसके संबंध में भी राज्य सूचना आयोग को अपील की गई है।
कुल मिलाकर नगर निगम अधिकारियों का रवैया यही प्रदर्शित करता है कि चाहे पूरे देश में सूचना का अधिकार कानून लागू है,लेकिन रतलाम नगर निगम के अधिकारी इसे नहीं मानते। उन्हे इस बात की कतई चिंता नहीं है कि इस कानून का उल्लंघन करने से उन्हे दंडित भी किया जा सकता है।