भगवान शंकर के धाम जाने वाले कैलाश मानसरोवर यात्रियों के लिए ख़ुशख़बरी
तिब्बत,13 अगस्त(इ ख़बर टुडे)। कैलाश मानसरोवर की यात्रा पर आने वाले तीर्थयात्रियों के लिए यह एक ख़ुशख़बरी है। अब उन्हें अत्यधिक ऊंचाई पर ऑक्सीजन की कमी के कारण होने वाली स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों का सामना नहीं करना होगा।
चीन सरकार अब यात्रियों की परेशानियों को देखते हुए यात्रा मार्ग पर ऑक्सीजन बूथ लगाने जा रही है। इसके साथ ही यात्रियों के विश्राम के लिए अत्याधुनिक शिविरों का निर्माण भी किया जा रहा है। ऐसे दो शिविर बनकर तैयार हैं और उन्हें यात्रियों के लिए खोल दिया गया है। वही अन्य दो शिविर अगली यात्रा तक बन कर तैयार हो जाएंगे।
दरअसल, भारत से आनेवाले अधिकांश यात्री मैदानी इलाक़े से होते हैं और कैलाश पर्वत की परिक्रमा का पथ समुद्र तल से 15 हज़ार फ़ीट से भी अधिक की ऊंचाई पर होने के कारण उन्हें थकान, सिरदर्द जैसी तकलीफ़ों का सामना करना पड़ता है।
ऑक्सीजन की कमी वाले इस ऊंचाई पर कैलाश पर्वत की लगभग 50 किलोमीटर की परिक्रमा उनके लिए बड़ी चुनौती होती है। इस परिक्रमा में लगभग तीन दिन लग जाते हैं। ज़ाहिर है ऑक्सीजन की कमी यात्रियों की मुश्किलों को और बढ़ा देती है।
यात्रा के दौरान ऑक्सीजन बूथ की ज़रूरत को इस बात से समझा जा सकता है कि भारत से हर साल विदेश मंत्रालय द्वारा आयोजित यात्रा में करीब डेढ़ हजार यात्री भगवान शंकर के धाम आते हैं जबकि नेपाल के निजी टूर ऑपरेटरों के माध्यम से ल्हासा या हिल्सा सिमीकोट के रास्ते भी हजारों यात्री आते हैं। अधिकांश यात्री मैदानी इलाकों के होते हैं और समुद्रतल से करीब 15 हजार फुट की ऊंचाई पर ऑक्सीजन की कमी के कारण उनमें से कई लोग बीमार भी पड़ जाते हैं।
कैलास मानसरोवर की यात्रा में यात्री सुविधाओं के विस्तार का जायजा लेने आये भारतीय पत्रकारों के एक प्रतिनिधिमंडल से बातचीत में तिब्बत स्वायत्तशासी क्षेत्र में अली प्रीफैर के विदेश विभाग के महानिदेशक आवांग ने कहा कि यात्रा के मार्ग में कुछ स्थानों पर ऑक्सीजन बूथ लगाने का फैसला हुआ है।
लगभग एक दर्जन ऑक्सीजन बूथ ख़रीदे भी जा चुके हैं, लेकिन अभी तक उन्हें लगाया नहीं जा सका है। फि़लहाल यात्रा के रूट और यात्रियों की ज़रूरतों का वैज्ञानिक विश्लेषण किया जा रहा है। इसके माध्यम से यह तय किया जाएगा कि 50 किलोमीटर के परिक्रमापथ पर कहां-कहां और कितने ऑक्सीजन बूथ की ज़रूरत है।
ऑक्सीजन बूथ के अलावा चीन सरकार और तिब्बत प्रशासन अन्य अत्याधुनिक सुविधाएँ मुहैया कराने कराने की तैयारी में जुटा है। इसके तहत परिक्रमा पथ पर दारचेन, डेरापुक, ज़ुटुरपुक और मानसरोवर के निकट चार अतिथिगृह बनाये जा रहे है हैं, जिनमें आधुनिक शौचालय एवं रसोईघर भी है। इनमें डेरापुक तथा ज़ुटुरपुक में यात्री विश्राम गृहों को खोल दिया गया है, जबकि मानसरोवर का यात्री विश्राम गृह बनकर तैयार है, उसे अगले साल से खोला जाएगा।
यात्री विश्रामगृहों में एक समय में 160 यात्री ठहर सकते हैं। हर कमरे में रज़ाई व बिस्तर सहित तीन बेड हैं। उनके लिए अलग से शौचालय भी बनाए गए है। ज़ाहिर है इसके लिए उन्हें बाहर खुले में या गंदे शौचालय में नहीं जाना पड़ेगा। साथ ही विश्रामगृह के भीतर ही एक बड़ा किचन भी बनाया गया है, जिसमें 150 लोगों के लिए खाना बनाने का पर्याप्त इंतज़ाम है।
पिछले कुछ सालों से यात्री सुविधाओं के विस्तार की चीन सरकार की कोशिशों का असर भी दिख रहा है। यात्रा पूरी करने के बाद लिपुलेख दर्रे से लौट रहे 13वें दल का तकरीबन हर यात्री चीन सरकार के इंतजामों से संतुष्ट नज़र आया।